पंक्षी क्या पर थके तुम्हारे
थे नीले अम्बर के राही
सबल-सलिल सुख दुःख के ग्राही
वायु वेग से सहम गए क्यूं ,सबल पंख ये आज तुम्हारे
उत्पीडन, निंदा के डर से
या मन मलिन विसर्जित कल से
किस कुंठा से ग्रसित हो गये,सुर शोभित ये कंठ तुम्हारे
आ बीते कल को झुठला दे
जीवन को मिल नई दिशा दे
क्यूं अतीत से घिरे हुए हो,आज चलो तुम साथ हमारे
vikram
थे नीले अम्बर के राही
सबल-सलिल सुख दुःख के ग्राही
वायु वेग से सहम गए क्यूं ,सबल पंख ये आज तुम्हारे
उत्पीडन, निंदा के डर से
या मन मलिन विसर्जित कल से
किस कुंठा से ग्रसित हो गये,सुर शोभित ये कंठ तुम्हारे
आ बीते कल को झुठला दे
जीवन को मिल नई दिशा दे
क्यूं अतीत से घिरे हुए हो,आज चलो तुम साथ हमारे
vikram
क्यूं अतीत से घिरे हुए हो,आज चलो तुम साथ हमारे
जवाब देंहटाएं-बहुत सही!
वाह ! वाह ! वाह !
जवाब देंहटाएंबहुत ही सुंदर लगी आपकी यह रचना.शब्द संयोजन और विम्ब प्रयोग बड़ा ही सुंदर और मनमोहक है.