दिन हौले-हौले ढलता है
बीती रातों के ,कुछ सपने
सच करनें को उत्सुक इतने
आशाओं के गलियारे में,मन दौड़-दौड़ के थकता है
दिन हौले-हौले ढलता है
पिछले सारे ताने -बाने
सुलझे कैसे ये न जानें
हाथों में छुवन है फूलों की,पर पग का गुखरु दुखता है
दिन हौले-हौले ढलता है
दिन के उजियाले में जितने
थे मिले यहाँ बनकर अपने
जब शाम हुई सब चले गये ,सूनापन कितना खलता है
दिन हौले-हौले ढलता है
विक्रम
बीती रातों के ,कुछ सपने
सच करनें को उत्सुक इतने
आशाओं के गलियारे में,मन दौड़-दौड़ के थकता है
दिन हौले-हौले ढलता है
पिछले सारे ताने -बाने
सुलझे कैसे ये न जानें
हाथों में छुवन है फूलों की,पर पग का गुखरु दुखता है
दिन हौले-हौले ढलता है
दिन के उजियाले में जितने
थे मिले यहाँ बनकर अपने
जब शाम हुई सब चले गये ,सूनापन कितना खलता है
दिन हौले-हौले ढलता है
विक्रम
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