मै अधेरों में घिरा ,पर दिल में इक राहत सी है
जो शमां मैने जलाई वह अभी महफिल में है
गम भी हस कर झेलना ,फितरत में दिल के है शुमार
आशनाई सी मुझे ,होने लगी इनसे यार
महफिलों में चुप ही रहने की मेरी आदत सी है
मै अधेरों में घिरा पर दिल में इक राहत सी है
एक दर पर कब रुकी है,आज तक कोई बहार
गर्दिशों में हूँ घिरा,कब तक करे वो इंतज़ार
जिंदगी को मौसमों के दौर की आदत सी है
मै अधेरों में घिरा पर दिल में इक राहत सी है
अपना दामन तो छुड़ा कर जाना है आसां यहाँ
गुजरे लम्हों से निकल कोई जा सकता कहा
कल से कल को जोड़ना भी आज की आदत सी है
मै अधेरों में घिरा पर दिल में इक राहत सी है
विक्रम
जो शमां मैने जलाई वह अभी महफिल में है
गम भी हस कर झेलना ,फितरत में दिल के है शुमार
आशनाई सी मुझे ,होने लगी इनसे यार
महफिलों में चुप ही रहने की मेरी आदत सी है
मै अधेरों में घिरा पर दिल में इक राहत सी है
एक दर पर कब रुकी है,आज तक कोई बहार
गर्दिशों में हूँ घिरा,कब तक करे वो इंतज़ार
जिंदगी को मौसमों के दौर की आदत सी है
मै अधेरों में घिरा पर दिल में इक राहत सी है
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गुजरे लम्हों से निकल कोई जा सकता कहा
कल से कल को जोड़ना भी आज की आदत सी है
मै अधेरों में घिरा पर दिल में इक राहत सी है
विक्रम
Nihayat khoobsoorat!
जवाब देंहटाएंबहुत सुंदर उम्दा अभिव्यक्ति ,,,
जवाब देंहटाएंRECENT POST : जिन्दगी.
कल से कल को जोड़ना भी आज की आदत सी है
जवाब देंहटाएंso true!