वर्षा-बूँदों की ये लोरी
पावस रातों की ये छोरी
तन्हाँ-तन्हाँ कोरी-कोरी
मेरे मन आँगन बरस-बरस,क्यूँ छेड़ रही श्यामल गोरी
वर्षा-बूँदों की ये लोरी
है रात समंदर का आँचल
जाये भी कहाँ ये मन-पागल
आलिंगन में लेकर उसको, सहलाती तन्हाई मेरी
वर्षा - बूँदों की ये लोरी
घन का घमंड जब इतराता
उर मथकर कंठों तक आता
लहरों में मचलते यौवन से,बह जाए न आशा की डोरी
वर्षा-बूँदों की ये लोरी
विक्रम
बहुत सुंदर रचना --
जवाब देंहटाएंहै रात समंदर का आँचल
जवाब देंहटाएंजाये भी कहाँ ये मन-पागल
आलिंगन में लेकर उसको, सहलाती तन्हाई मेरी
लोरी बहुत ही सुन्दर
साभार !
शानदार।।।
जवाब देंहटाएंवर्षा की बूंदों के इर्द-गिर्द बुना ताना बाना ... बहुत लाजवाब सुन्दर रचना ...
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