महाशून्य से ब्याह रचायें
क्रिया- कर्म से ऊपर उठ कर
अहम् और त्वम् यहीं छोड़कर
काल प्रबल के सबल द्वार को,तोड़ नये आयाम बनायें
महाशून्य से व्याह रचायें
स्वाहा और स्वास्ति में अंतर
भ्रमित रहा मन यहाँ निरंतर
माया से विभ्रांत चेतना को अवचेतन पथ पर लायें
महाशून्य से व्याह रचायें
निर्गुण और सगुण मिल जायें
महामौन जब पास बुलायें
दृगांचल अनंत हो जाये , प्रिय जब मुझसे नैन मिलायें
महाशून्य से ब्याह रचायें
विक्रम
(आज जीवन यात्रा के 63 वर्ष पुरे करने पर😊)
क्रिया- कर्म से ऊपर उठ कर
अहम् और त्वम् यहीं छोड़कर
काल प्रबल के सबल द्वार को,तोड़ नये आयाम बनायें
महाशून्य से व्याह रचायें
स्वाहा और स्वास्ति में अंतर
भ्रमित रहा मन यहाँ निरंतर
माया से विभ्रांत चेतना को अवचेतन पथ पर लायें
महाशून्य से व्याह रचायें
निर्गुण और सगुण मिल जायें
महामौन जब पास बुलायें
दृगांचल अनंत हो जाये , प्रिय जब मुझसे नैन मिलायें
महाशून्य से ब्याह रचायें
विक्रम
(आज जीवन यात्रा के 63 वर्ष पुरे करने पर😊)
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