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बुधवार, 17 मई 2017

वर्षा-बूँदों की ये लोरी .......

वर्षा-बूँदों   की  ये  लोरी

पावस रातों की ये छोरी
तन्हाँ-तन्हाँ  कोरी-कोरी

मेरे मन आँगन बरस-बरस,क्यूँ छेड़ रही श्यामल गोरी

वर्षा-बूँदों    की   ये  लोरी

है रात  समंदर  का  आँचल
जाये भी कहाँ ये मन-पागल

आलिंगन  में   लेकर  उसको, सहलाती  तन्हाई  मेरी

वर्षा - बूँदों  की   ये   लोरी

घन  का घमंड  जब इतराता
उर मथकर कंठों तक आता

लहरों में मचलते यौवन से,बह जाए न आशा की डोरी

वर्षा-बूँदों   की   ये  लोरी

विक्रम 

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