II. संस्कृत रचना: नादस्य विश्वनादः ।।
श्लोक
1मौनं किमस्ति नादः स्वरति न कथं विश्वजन्मकृत्,
नीलं नभस्तव प्रभया परिभाषति सर्वं मायामयम्।
पृथ्वी तवैव शोभति च संनादति मायया स्वरम्,
ब्रह्म त्वमेव सर्वं समुच्छ्रति स्वयमाश्रितं यत्॥
हिंदी अनुवाद:
हे नाद, तेरा मौन क्यों, विश्व के जन्म में स्वर क्यों नहीं गूंजता?
नीला आकाश तेरी प्रभा से मायामय सब कुछ परिभाषित करता है।पृथ्वी तेरे कारण सुशोभित है, माया से स्वर गूंजता है,तू ही ब्रह्म है, जो स्वयं सब कुछ समेटता और आश्रित करता है।
श्लोक 2
अग्निस्तवैव दीपति स्म शोभति पंचमहां यथा,
आपस्त्वमेव संनादति विश्वस्य जन्महेतुकम्।
अनिलस्तवैव चंचलति पंचमं तत्समीरजात्,
नादः त्वमेव पंचमहाभृतं प्रकृतौ संनादति॥
हिंदी अनुवाद:
अग्नि तेरे कारण प्रज्वलित है, पंचतत्वों में शोभित है।
जल तुझमें गूंजता है, तू विश्व के जन्म का कारण है।
वायु तेरे कारण चंचल है, पंचतत्वों में उत्पन्न,
हे नाद, तू प्रकृति में पंचतत्वों को गूंजायमान करता है।
श्लोक 3
शून्यात् त्वमेव जायसि दिशां विदिशां च वहसि यत्,
मौनस्य नद्या विश्वमिदं मायया संनादति स्म।
अरूपरूपं त्वं सर्वं समीक्षसि ब्रह्म च रूपकम्,
नादः त्वमेव प्रकृतिपुरुषौ स्वयमाश्रितं स्वरम्॥
हिंदी अनुवाद:
तू शून्य से उत्पन्न होता है, दिशा-विदिशा में बहता है।
मौन की नदी से माया द्वारा यह विश्व गूंजता है।
अरूप होकर रूप रचता है, तू ब्रह्मरूप है,
हे नाद, तू प्रकृति-पुरुष को स्वयं में आश्रित स्वर है।
श्लोक 4
मौनं तवैव छंदसि च जीवनं स्मृतं त्वया सदा,
मायया विश्वमेतत् जल्पति च संनादति स्वरम्।
ब्रह्म त्वमेव सर्वं समाश्रितं विश्वजन्मनः स्म,
नादः त्वमेव काव्यं सदा सर्वस्य कारणं हि॥
हिंदी अनुवाद:
तेरा मौन छंदों में गूंजता है, जीवन तुझसे स्मृत है।
माया से यह विश्व बोलता और स्वर से गूंजता है।
तू ही ब्रह्म है, जो विश्व के जन्म को समेटता है,
हे नाद, तू ही काव्य और सदा सबका कारण है।
श्लोक 5
वर्तमानं भ्रमच्छायया त्वया स्वप्नं जाग्रति स्म,
कालस्य सर्वं तद्भवति मायया संनादति स्वरम्।
ब्रह्म त्वमेव जनकः सदा विश्वजन्मस्य नाद,
नादः त्वमेव सर्वं समुच्छ्रति मायया स्वयम्॥
हिंदी अनुवाद:
वर्तमान माया की छाया है, स्वप्न और जागरण तुझसे है।
काल के सभी रूप तुझसे हैं, माया से गूंजते हैं।
तू ही ब्रह्म, विश्व का जनक है, हे नाद,
तू माया से सब कुछ स्वयं समेटता है।
शब्दः स एकः बहुधा स्म गीतं समुच्छ्रति स्वरम्,
डोरी सनादति न च छिद्यते विश्वजन्मनि यत्।
जीवन्मृतं च विलयति रंगं रंगहीनके स्म,
नादः त्वमेव मायया स्मृतं ब्रह्मस्वरनादकः॥
हिंदी अनुवाद:
एक शब्द, पर अनेक गीतों में स्वर गूंजता है।
डोर गूंजती है, पर विश्व के जन्म में उसका छोर नहीं।
जीवन और मृत्यु विलय होते हैं, रंगहीन में रंग हैं,
हे नाद, तू माया से स्मृत है, ब्रह्म का स्वरनादक है।
श्लोक 7
अनंतमाश्रितं त्वं स्म पुनरंतहीनता सदा,
पंचमहाभृतगीतं तव स्वनादेन संनादति।
ब्रह्म त्वमेव सर्वं स्वयं स्वसंनादति स्वरम्,
नादः त्वमेव प्रकृतिपुरुषौ विश्वस्य कारणम्॥
हिंदी अनुवाद:
तू अनंत को समेटता है, फिर भी सदा अंतहीन है।
पंचतत्वों का गीत तेरा नाद गूंजता है।
तू ही ब्रह्म है, जो स्वयं से स्वरनाद करता है,
हे नाद, तू प्रकृति-पुरुष और विश्व का कारण है।
श्लोक 8
अखंडमाश्रितं प्रभया तव मौनं च ब्रह्म हि,
अदृश्यदृश्यरूपं त्वं चक्षुषः स्म तिरोहसि।
मायया विश्वमेतत् त्वं स्फुरति स्म स्वरनादकः,
नादः त्वमेव सर्वं विश्वस्य जनकः सदा॥
हिंदी अनुवाद:
तेरा अखंड प्रकाश और मौन ही ब्रह्म है।
अदृश्य में दृश्यरूप होकर तू दृष्टि से ओझल है।
माया से यह विश्व स्फुरित है, तू स्वरनादक है,
हे नाद, तू ही सर्वस्व और विश्व का सदा जनक है।
श्लोक 9
सृष्टिस्तवैव संजाता संनादति तव स्वरात् स्म,
संहारकालस्त्वय्येव विश्वं याति विलीनताम्।
मायया सर्वं संनादति त्वं ब्रह्मस्य कारणकम्,
नादः त्वमेव सृष्ट्यंतं विश्वस्य स्वरनादकः॥
हिंदी अनुवाद:
सृष्टि तुझसे उत्पन्न हुई, तेरा स्वर गूंजता है।
संहार का काल तुझमें विश्व को विलीन करता है।
माया से सब कुछ गूंजता है, तू ब्रह्म का कारण है,
हे नाद, तू सृष्टि और अंत का स्वरनादक है।
श्लोक 10
चित्तं निरोधति त्वं स्म योगेन संनादति स्वरम्,
समाधिस्थं त्वया सर्वं ब्रह्म त्वं चिद्रूपकः।
मायया चित्तवृत्तिस्त्वं विश्वं संनादति स्वयम्,
नादः त्वमेव योगस्य मार्गं प्रकाशति सदा॥
हिंदी अनुवाद:
तू योग से चित्त को शांत करता है, तेरा स्वर गूंजता है।
समाधि में सब कुछ तुझसे है, तू चेतना का ब्रह्म है।
माया से चित्त की तरंगें गूंजती हैं,हे नाद, तू योग के मार्ग को सदा प्रकाशित करता है।
श्लोक 11
ब्रह्मांडमाश्रितं त्वं पुनरनंतता सदा स्म यत्,
नक्षत्रखं तव प्रभया विश्वं संनादति स्वरम्।
मायया सर्वमेतत् त्वं स्फुरति स्म ब्रह्मरूपकः,
नादः त्वमेव सर्वं समुच्छ्रति विश्वजन्मनः॥
हिंदी अनुवाद:
तू ब्रह्मांड को समेटता है, फिर भी सदा अनंत है।
नक्षत्रों का आकाश तेरी प्रभा से विश्व को गूंजायमान करता है।
माया से यह सब स्फुरित है, तू ब्रह्मरूप है,
हे नाद, तू विश्व के जन्म को समेटता है।
श्लोक 12
सत्त्वं रजस्तमस्त्वं त्रिगुणेन संनादति स्वयम्,
मायया विश्वमेतत् त्वं प्रकृत्या संनादति सदा।
ब्रह्म त्वमेव सर्वं स्वयं स्वसंनादति स्वरम्,
नादः त्वमेव त्रिगुणातीतं विश्वस्य कारणम्॥
हिंदी अनुवाद:
सत्त्व, रज, और तम तुझसे गूंजते हैं।
माया से यह विश्व प्रकृति द्वारा गूंजायमान है।
तू ही ब्रह्म है, जो स्वयं से स्वरनाद करता है,
हे नाद, तू त्रिगुण से परे और विश्व का कारण है।
श्लोक 13
प्रणवस्त्वमेव नादः स्म विश्वस्य मूलं सनातनम्,
ॐकाररूपं संनादति सर्वं त्वया स्वरनादकः।
ब्रह्म त्वमेव नादस्य रूपं समाश्रितं सर्वदा यत्,
नादः त्वमेव सर्वस्य संनादः कारणं सदा॥
हिंदी अनुवाद:
तू ही प्रणव (ॐ) है, नाद, विश्व का सनातन मूल।
ॐ के रूप में सब कुछ तुझसे गूंजता है, तू स्वरनादक है।
तू ही ब्रह्म है, नाद का रूप, जो सब कुछ समेटता है,
हे नाद, तू ही सबके गूंजने का सदा कारण है।
श्लोक 14
नासत् सत् नो सत् आसद् विश्वं त्वं संनादति स्वयम्,
नादेन विश्वमेतत् त्वं सृष्टेः प्रभवति स्वरम्।
मायया सर्वं संनादति त्वं हि ब्रह्मस्य कारणकम्,
नादः त्वमेव सृष्टिसूक्तं विश्वस्य मूलनादकः॥
हिंदी अनुवाद:
न सत् था, न असत्, तू ही विश्व को गूंजायमान करता है।
नाद से यह विश्व उत्पन्न होता है, तेरा स्वर सृष्टि है।
माया से सब कुछ गूंजता है, तू ब्रह्म का कारण है,
हे नाद, तू सृष्टि-सूक्त और विश्व का मूल नाद है।
श्लोक 15
हिरण्यगर्भस्त्वमेव स्म विश्वं संनादति त्वया,
सृष्टेः प्रभवति सर्वं मायया तव स्वरनादकः।
ब्रह्म त्वमेव सर्वं स्वयं स्वसंनादति स्वरम्,
नादः त्वमेव विश्वस्य सृष्टेः कारणं सदा हि॥
हिंदी अनुवाद:
तू ही हिरण्यगर्भ है, विश्व तुझसे गूंजता है।
सृष्टि माया से तेरा स्वरनाद उत्पन्न करता है।
तू ही ब्रह्म है, जो स्वयं से स्वरनाद करता है,
हे नाद, तू विश्व की सृष्टि का सदा कारण है।
श्लोक 16
वेदस्य नादस्त्वं हि सर्वं विश्वं संनादति स्वरम्,
ऋग्यजुःसामाथर्वं त्वं सृष्टेः मूलं च कारणम्।
मायया सर्वं त्वं स्मृतं ब्रह्मस्य स्वरनादकः,
नादः त्वमेव सर्वं विश्वस्य जनकः सदा॥
हिंदी अनुवाद:
तू वेदों का नाद है, विश्व तेरा स्वर गूंजता है।
ऋग्, यजुर्, साम, अथर्व—तू सृष्टि का मूल और कारण है।
माया से सब कुछ स्मृत है, तू ब्रह्म का स्वरनादक है,
हे नाद, तू ही सर्वस्व और विश्व का सदा जनक है।
श्लोक 17
पुरुषस्त्वमेव विश्वं स्म सर्वं त्वया संनादति यत्,
सहस्रशीर्षः सर्वं त्वं मायया सृष्टिजन्मकृत्।
ब्रह्म त्वमेव सर्वस्य नादः स्वरनादति स्वयम्,
नादः त्वमेव विश्वस्य मूलं सनातनं परम्॥
हिंदी अनुवाद:
तू ही पुरुष है, विश्व तुझसे गूंजता है।
सहस्र सिरों वाला तू माया से सृष्टि का जन्म करता है।
तू ही ब्रह्म है, जो स्वयं से स्वरनाद करता है,
हे नाद, तू विश्व का सनातन और परम मूल है।
श्लोक 18
विश्वं तवैव रूपं स्म कालः सर्वं त्वया गृहीतम्,
मायया संनादति विश्वं त्वं विश्वरूपस्य नादकः।
ब्रह्म त्वमेव सर्वं स्वयं स्वसंनादति स्वरम्,
नादः त्वमेव सर्वस्य सृष्टेः कारणं परम्॥
हिंदी अनुवाद:
विश्व तेरा ही रूप है, काल तुझमें समाहित है।
माया से विश्व गूंजता है, तू विश्वरूप का नादक है।
तू ही ब्रह्म है, जो स्वयं से स्वरनाद करता है,
हे नाद, तू सृष्टि का परम कारण है।
श्लोक 19 (नया: वैदिक यज्ञ)
यज्ञस्त्वमेव नादः स्म विश्वं हविर्भिः संनादति यत्,
वेदस्य मंत्रैः सर्वं त्वं सृष्टेः प्रभवति स्वरम्।
ब्रह्म त्वमेव यज्ञस्य रूपं समाश्रितं सर्वदा यत्,
नादः त्वमेव विश्वस्य यज्ञः सनातनं परम्॥
हिंदी अनुवाद:
तू ही यज्ञ है, नाद, विश्व हवि से गूंजता है।
वेदों के मंत्रों से तू सृष्टि का स्वर उत्पन्न करता है।
तू ही ब्रह्म है, यज्ञ का रूप, जो सब कुछ समेटता है,
हे नाद, तू विश्व का सनातन और परम यज्ञ है।
श्लोक 20
नादस्त्वमेव सर्वं स्म विश्वं तवैव स्वरनादति,
पूर्णमदः पूर्णमिदं त्वं सृष्टेः मूलं सनातनम्।
ब्रह्म त्वमेव सर्वस्य नादः स्वयं स्वसंनादति,
नादः त्वमेव विश्वस्य कारणं परमं सदा॥
हिंदी अनुवाद:
तू ही नाद है, सर्वस्व, विश्व तेरा स्वर गूंजता है।
यह पूर्ण है, वह पूर्ण है, तू सृष्टि का सनातन मूल है।
तू ही ब्रह्म है, जो स्वयं से स्वरनाद करता है,
हे नाद, तू विश्व का परम और सदा कारण है।
लेखक
विक्रम सिंह
केशवाही
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