संनादति विश्वम्:
श्रीकृष्ण-अर्जुन संवाद
अध्याय प्रथम: ब्रह्मसृष्टितत्त्वविमर्शः
श्रीकृष्ण उवाच:
न मे रूपं न च सीमा विश्वविस्तारसंग्रहम्।
न दृश्यं न च बोध्यं च न वर्ण्यं कारणं मम।।
यथा सिन्धौ तरङ्गाणां स्वरूपं न स्थिरं भवेत्।
सर्वं मया समुद्भूतं, सर्वज्ञः स्वयमेवाहम्।।१।।
हिंदी अनुवाद:
मेरा न कोई रूप है, न मेरे विस्तार की सीमा। जैसे सागर में तरंगों का स्वरूप स्थिर नहीं, वैसे ही मेरा स्वरूप न देखा जा सकता, न समझा, न वर्णित। मैं विश्व का कारण हूँ, सर्व कुछ मुझसे उत्पन्न, और मैं स्वयं सर्वज्ञ हूँ।
कल्पनाः सर्वथा कुर्या यथाशक्ति यथाबलम्।
ज्ञानेन साधनेनैव प्राप्नुहि तव प्रियं सदा।।
यथा तमसि दीपेन संनादति प्रकाशति।
चेतन्यं मे समुद्भूतं तपोध्यानस्य संनादति।।२।। हिंदी अनुवाद:
अपनी शक्ति और सामर्थ्य से सभी प्रकार की कल्पनाएँ कर, और ज्ञान व साधनों से वह प्राप्त कर जो तुझे प्रिय है। जैसे अंधेरे में दीपक प्रकाश से संनादता है, वैसे ही गहन अवचेतना से चेतना में प्रवेश तप और ध्यान की परम अवस्था है, जो मेरे साथ तुम्हारे संनाद को दर्शाती है।
अहं शून्यस्य सृष्टा वै कल्पनाजल्पनात्मकः।
वर्तमानस्य जनकः स्याम् स्वप्नजागृतिभासकः।।
यथा स्वप्ने न सत्यं च न च मिथ्या प्रतीति सा।
मायामयं विश्वं मम कालसङ्कल्पसंनादति।।३।। हिंदी अनुवाद:
मैं महाशून्य का सृष्टिकर्ता हूँ, कल्पना (भविष्य), जल्पना (भूतकाल), और वर्तमान का जनक। जैसे स्वप्न न सत्य है, न मिथ्या, वैसे ही यह विश्व मेरी माया से स्वप्न-प्रेरित जागरण है। काल का संकल्प मुझसे उत्पन्न और मेरे साथ संनादता है।
पञ्चतत्त्वं मया सृष्टं क्षितिजलपावकादिकम्।
यथा सिन्धौ नदीसङ्गं सर्वं मयि समाहितम्।।
प्रकृत्या पञ्चधा युक्तं विश्वगीतं ममात्मकम्।
सृष्टिरहस्यं गर्भितं स्वयं संनादति मम।।४।।
हिंदी अनुवाद:
पृथ्वी, जल, अग्नि, आकाश, और वायु—ये पाँच तत्त्व मुझसे उत्पन्न, और जैसे नदी सागर में समाहित होती है, वैसे ही मुझमें विलीन हैं। प्रकृति के इन तत्त्वों का यह गीत विश्व-सृष्टि का रहस्य समेटे है, जो मेरे साथ संनादता है।
अहं अखण्डः प्रभामयः मौनी स्वयम्भूः परं यत्।
अदृश्ये दृश्यसङ्कल्पः दृष्टेस्तु परतोऽहम्।।
यथा सूत्रे मणिगणा नादिरन्तो न मे क्वचित्।
जीवनं मृत्युरूपं च मया सृष्टं विलीयति।।५।।
हिंदी अनुवाद:
मैं अखण्ड, प्रभामय, मौन, और स्वयम्भू परम ब्रह्म हूँ। अदृश्य में दृश्य का संकल्प और दृष्टि से परे हूँ। जैसे माला के मणियों में सूत्र का न आदि है, न अंत, वैसे ही मेरा न आदि है, न अंत। जीवन और मृत्यु मुझसे उत्पन्न और मुझमें विलीन हैं।
अध्याय द्वितीय:
विश्वरचनारहस्यविमर्शः
निष्कामं कर्म कुर्यास्त्वं मम तत्त्वं विमुच्य वै।
सत्यं चासत्यं सर्वं मम मायाविलासति।।
यथा स्वप्ने चित्रं विश्वं भ्रमति न च तत् स्थिरम्।
सर्वं मया समुद्भूतं मयि सर्वं विलीयति।।६।।
हिंदी अनुवाद:
निष्काम कर्म द्वारा कर्तव्य पालन कर, मेरे तत्त्व को छोड़। सत्य और असत्य मेरी माया का विलास है। जैसे स्वप्न में चित्र सत्य-सा प्रतीत होता, किन्तु स्थिर नहीं, वैसे ही यह विश्व भ्रममय है। सब कुछ मुझसे उत्पन्न और मुझमें विलीन होता है।
विश्वस्य विशालं यद् वै परिवर्तनबिखरति।
तत्र मे स्वरूपं स्यात् न च दृश्यति मानवैः।।
दशायामेषु सृष्टिश्च भौतिकज्ञानगोचरा।
चराचरस्य संभूतिः रसायनक्रियाफलम्।।७।।
हिंदी अनुवाद:
विश्व की विशालता, इसके परिवर्तन और बिखराव में मेरे स्वरूप की अनुभूति है, किन्तु मानव मुझे देख नहीं सकता। सृष्टि दस आयामों में विभक्त है, जो भौतिक ज्ञान से समझी जा सकती है। चर और अचर की उत्पत्ति रासायनिक क्रियाओं का परिणाम है।
परिवर्तनमेव सृष्टिविस्तारस्य कारणम्।
जीवनं मृत्युरूपं च विकासस्य निरन्तरम्।।
यथा तरङ्गाः सिन्धौ वै परस्परं प्रभावति।
रहस्यं सूक्ष्ममेतद् वै जटिलं शक्तिशालि च।।८।।
हिंदी अनुवाद:
परिवर्तन ही सृष्टि के विस्तार का कारण है। जीवन और मृत्यु विकास की निरंतरता को बनाए रखते हैं। जैसे सागर में तरंगें एक-दूसरे को प्रभावित करती हैं, वैसे ही आयाम एक-दूसरे को प्रभावित करते हैं। यह रहस्य सूक्ष्म, जटिल, और शक्तिशाली है।
एकादशमायामोऽहं विश्वस्य जनकः स्वयम्।
मानवस्य बोधाकाङ्क्षा गर्भस्थशिशुजं यथा।।
यथा गर्भे मातुः स्वरूपं न दृश्यति कदाचन।
मम तत्त्वं न बुद्ध्या वै मानवेन समाप्यते।।९।।
हिंदी अनुवाद:
मैं स्वयं ग्यारहवाँ आयाम हूँ, विश्व का जनक। मानव की मेरे स्वरूप को जानने की आकांक्षा गर्भस्थ शिशु के समान है, जो माता के स्वरूप को नहीं देख सकता। बुद्धि से मेरा तत्त्व प्राप्त नहीं किया जा सकता।
हिमशिखरे मन्त्रसाध्या श्रद्धायां तत्त्वचिन्तनम्।
अण्वणौ रहस्यं खोजति सर्वशक्तिमान् मतः।।
प्राणबुद्बुदगिड़गिड़ं सर्वं बोधति मानवः।
श्रद्धां कृतज्ञतां दृष्ट्वा परितापं च मौन्यहम्।।१०।।
हिंदी अनुवाद:
हिमशिखरों पर मंत्र-साधना और श्रद्धा से तत्त्व का चिंतन करता है। अणु-अणु में उत्पत्ति के रहस्य खोजता, स्वयं को सर्वशक्तिमान मानता है। प्राणों के बुलबुले के लिए गिड़गिड़ाता, सब समझने की लालसा रखता है, फिर भी मैं मौन हूँ।
सर्वं मम चेतन्यस्य अङ्गं निरन्तरं गतम्।
अवचेतन्यतो नव्यं चेतन्यं समुद्भवति मम।।
यथा दीपस्य सङ्कल्पः प्रकाशति तमसि सदा।
मौनमेवाहं विश्वस्य रहस्यं धरे सदा।।११।।
हिंदी अनुवाद:
सब कुछ मेरी चेतन अवस्था का अंग है, जो अवचेतना से नई चेतना की सृष्टि करता है। जैसे दीपक का संकल्प अंधेरे में प्रकाश देता है, वैसे ही मैं मौन हूँ, विश्व के रहस्य को धारण करता हूँ।
अध्याय तृतीय:
निष्कामकर्मप्रेरणाविमर्शः
विश्वं कर्माधारितं वै कर्मणि फलमस्ति च।
कर्म त्रिविधं प्रोक्तं कर्म कुकर्ममकर्म च।।
यथा बीजं फलं याति कर्मणा फलमस्ति च।
सत्कर्मं ज्ञानविना न स्याद् भक्त्या ज्ञानमर्जति।।१२।।
हिंदी अनुवाद:
विश्व कर्म पर आधारित है, और कर्म में ही फल निहित है। कर्म तीन प्रकार के हैं—कर्म, कुकर्म, और अकर्म। जैसे बीज से फल उत्पन्न होता है, वैसे ही कर्म से फल मिलता है। सत्कर्म ज्ञान के बिना संभव नहीं, और ज्ञान भक्ति से अर्जित होता है।
ज्ञानं चानन्तमस्ति वै वैराग्येन च सार्थकम्।
न कोऽपि सर्वं प्राप्नोति यतोऽहं ज्ञानमेव च।।
यथा सूर्यस्य किरणाः सर्वं विश्वं प्रकाशति।
तमोगुणं परित्यज्य सत्त्वेन कर्म निर्वह।।१३।।
हिंदी अनुवाद:
ज्ञान अनंत है, और वैराग्य से इसका सार्थक उपयोग होता है। कोई भी सम्पूर्ण ज्ञान प्राप्त नहीं कर सकता, क्योंकि मैं स्वयं ज्ञान हूँ। जैसे सूर्य की किरणें विश्व को प्रकाशित करती हैं, वैसे ही तमोगुण त्यागकर सत्त्वगुण से कर्म कर।
कर्म कुरु मम प्रेर्य्या मम कृते सदा सति।
मिथ्याभावविमुक्तस्त्वं सत्यकर्मणि सङ्गतः।।
यथा सेतुं समुद्रस्य धर्मरक्षायै निर्मितम्।
धर्मरक्षायै दुष्टानां विनाशं कुरु कौन्तेय।।१४।।
हिंदी अनुवाद:
मेरी प्रेरणा से मेरे लिए सदा कर्म कर। मिथ्या विचारों से मुक्त होकर सत्य कर्म में संलग्न हो। जैसे समुद्र पर सेतु धर्म की रक्षा के लिए बनाया गया, वैसे ही धर्म की रक्षा के लिए दुष्टों का विनाश कर, हे कुन्तीपुत्र।
सृष्टेः रहस्यं बोध त्वं सत्यकर्मणा संनादति।
न मे रूपं न चाकाङ्क्षा सृष्टौ च मम संनादति।।
कर्मयोगेन संनादति मम तत्त्वं प्राप्यते।
हे अर्जुन, मम प्रभायां धर्ममार्गं समाप्नुहि।।१५।।
हिंदी अनुवाद:
सत्य कर्म से सृष्टि के रहस्य को समझ। मेरा कोई रूप नहीं, न आकांक्षा, किन्तु सृष्टि में मेरी स्थिति है। कर्मयोग से मेरा तत्त्व प्राप्त होता है। हे अर्जुन, मेरे प्रकाश में धर्म के मार्ग को प्राप्त कर।
उपसंहार
"संनादति विश्वम्"
लेखक
विक्रम सिंह
केशवाही
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