शिवमहिमा
त्रिपुरांतकारी तांडवस्तुतिः
ॐ नमः शिवाय
1.
जटाजालसङ्गं गङ्गया संनादति विश्वनाथकः,
कर्पूरगौरं त्रिनयनं डमरुं नादति प्रभुः।
शिवः शंभुः पशुपतिः स्थाणुः विश्वेशः सनातनः,
महेश्वरः कालहा च रुद्रः पिनाकी सर्वदा सदा।
महातांडवेन विश्वमेतत् कम्पति तस्य पादतः,
नमामि शंभुं सत्यरूपं हृदये मोक्षदायकम्॥
2.
सहस्रचन्द्रार्चि भालदेशे शशांकं ज्वलति प्रभम्,
नीलकण्ठः कामहा च विश्वरक्षः स्मरारिहा।
हरः भवः शूलपाणिः पशुपतिर्मृत्युंजयः परः,
सदाशिवः विश्वकर्ता योगिनां चित्तसंनादति।
सृष्ट्यंतकर्तारं विश्वरूपं सर्वं त्वयि संनादति,
ध्यायामि शंभुं हृदये मे शांतये सर्वसिद्धिदम्॥
3.
सनातनं शंभुं गजचर्मं कपालमालिनं परम्,
कैलासवासः योगिनाथः सुरासुरैः संस्तुतं सदा।
नटराजः त्रिपुरहा च विश्वपः सर्वदायकः,
महाकालः शङ्करः च भस्माङ्गः कृत्तिवासकः।
त्रिपुरं संहृत्य नृत्यति यः विश्वं तस्य चरणयोः,
नमामि शरण्यं पापहं च करुणासिन्धुमीश्वरम्॥
4.
विरूपनेत्रं तेजसंनादं शक्त्या संयुतं महान्,
उमापतिः शर्वः चैव विश्वनाथः स्मरांतकः।
पशुपतिर्महादेवः सर्वज्ञः सर्वगोचरः,
सदाशिवः विश्वमूर्तिः सर्वं त्वयि संनादति सदा।
महातमोहं विश्वरूपं चराचरस्य नायकम्,
ध्यायामि शंभुं हृदये मे मोक्षाय सर्वदा सदा॥
5.
सहस्रनामं गंधर्वगीतं मुनयो यस्य कीर्तति,
त्रिलोकीनाथः कामनाशी चन्द्रमौलिः जटाधरः।
वृषभध्वजः कालकालः सर्वलोकप्रियंकरः,
भवभयहा मृत्युहा च त्रिपुरारिः स्मरारिहा।
स्मरणमात्रं पावनं च मोक्षदं सर्वसिद्धिदम्,
नमामि शंभुं तांडवेन विश्वं यस्य संनादति॥
6.
स्फुरति भालं चन्द्ररूपं डमरुं नादति प्रभुः,
नीललोहितः शूलधारी विश्वपतिर्महेश्वरः।
गङ्गाधरः पञ्चवक्त्रः सर्वदा सर्वसाक्षिकः,
महामृत्युहा विश्वरक्षः सर्वं त्वयि संनादति।
महानृत्येन विश्वमेतत् तव पादतले नृतति,
नमामि शंभुं हृदये मे शांतये मोक्षदायकम्॥
7.
सत्यं शिवं च सुन्दरं च परमं योगिनां गतिः,
सनातनधामं विश्वकर्तारं सर्वं त्वयि संनादति।
पिनाकधारी विश्वनाथः सर्वदः सर्वसङ्ग्रही,
कृपासिन्धुः शङ्करः च भवानीपतिः स्मरारिहा।
कृपया महादेव विश्वमेतत् तव पादे समर्पितम्,
नमामि शंभुं सर्वदा मे हृदये त्वं समुज्ज्वलति॥
8.
समुद्रमंथनं कृत्वा यः हलाहलं बिभर्ति कण्ठे,
नीलकण्ठः विश्वरक्षः सर्पमालिनः स्मरारिहा।
गङ्गाधरः कैलासवासः सर्वदा सर्वसाक्षिकः,
महायोगी विश्वपतिर्महादेवः सनातनः।
गङ्गां वहति जटायां यः कैलासे संनादति सदा,
नमामि शंभुं हृदये मे सर्वदा मोक्षदायकम्॥
9.
अर्धनारीश्वरं रूपं शक्तिशिवं समन्वितं परम्,
उमासहायः सर्वज्ञः विश्वनाथः स्मरांतकः।
सदाशिवः कामनाशी चन्द्रमौलिः जटाधरः,
महायोगी विश्वरक्षः सर्वं त्वयि संनादति सदा।
यस्य योगेन विश्वमेतत् संनादति सदा सुखम्,
नमामि शंभुं हृदये मे सर्वदा मोक्षदायकम्॥
10.
सहस्रनामं शिवरूपं यस्य स्तोमति विश्वतः,
नटराजः पशुपतिः च विश्वपतिर्महेश्वरः।
कालकालः शूलपाणिः सर्वदा सर्वसाक्षिकः,
भवभयहा मृत्युहा च त्रिपुरारिः स्मरारिहा।
महाकालं विश्वरूपं विश्वं यस्य नृत्यति चरणे,
नमामि शंभुं हृदये मे शांतये सर्वदा सदा॥
11.
भवं भवानीसहितं यः सर्वं त्वयि संनादति,
कामारिः योगिनाथः चन्द्रमौलिः जटाधरः।
वृषभध्वजः कालकालः सर्वलोकप्रियंकरः,
महायोगी विश्वरक्षः सर्वं त्वयि संनादति सदा।
सर्वं तव कृपया शंभो मोक्षाय संनादति सदा,
नमामि शंभुं हृदये मे सर्वदा मोक्षदायकम्॥
12.
जगद्विधातारं त्रिनेत्रं च भस्माङ्गं महेश्वरम्,
शिवः शंभुः पशुपतिः स्थाणुः विश्वेशः सनातनः।
महेश्वरः कालहा च रुद्रः पिनाकी सर्वदा सदा,
नृत्यति यस्य तांडवेन विश्वं संनादति क्षणात्।
सर्वं त्वयि संनादति शंभो सर्वं त्वयि लीनति,
नमामि शंभुं हृदये मे सर्वदा मोक्षदायकम्॥
विक्रम सिंह (स्वरचित)
जटाओं में गंगा संनादति है, विश्वनाथ, करपूर जैसे गौरवर्ण, त्रिनेत्रधारी प्रभु डमरु बजाते हैं। उनके तांडव से विश्व कंपित होता है। मैं सत्यरूप शंभु को नमन करता हूँ, जो हृदय में मोक्ष देते हैं।
2. भाल पर सहस्र चंद्रों की आभा चमकती है, काल का काल, भस्म से रंजित, भक्तों के दुख हरने वाले। मैं विश्वरूप महादेव का ध्यान करता हूँ, जो सदा शांति और सिद्धि देते हैं।
3. सनातन शंभु, गजचर्म धारी, कपालमाला से सुशोभित, कैलास पर विराजमान। त्रिपुर संहार कर विश्व को अपने चरणों में नचाने वाले, मैं करुणा के सागर को नमन करता हूँ।
4. विरूप नेत्रों से तेज संनादित, शक्ति से युक्त, विश्व के नायक। सदाशिव के प्रभाव से सारा लोक संनादति है। मैं उन्हें हृदय में ध्यान करता हूँ।
5. सहस्र नामों वाले, जिनका गान गंधर्व और मुनि करते हैं। भव और मृत्यु का भय हरने वाले, मैं त्रिपुरारि को नमन करता हूँ।
6. भाल पर चंद्र चमकता है, डमरु संनादति है। विश्व उनके चरणों में नाचता है। मैं त्रिलोकनाथ, करुणा के सागर को नमन करता हूँ।
7. सत्य, शिव, सुंदर, योगियों की गति। विश्व उनके चरणों में समर्पित है। मैं सदा प्रकाशित शंभु को नमन करता हूँ।
8. समुद्र मंथन कर हलाहल पीने वाले नीलकण्ठ, गंगा को जटाओं में धारण करने वाले। मैं विश्वरक्षक को नमन करता हूँ।
9. अर्धनारीश्वर, शक्ति और शिव का समन्वय। विश्व उनके योग से सुखी है। मैं सर्वलय शंभु को नमन करता हूँ।
10. सहस्र नाम, नटराज, पशुपति, विश्वपति। विश्व उनके चरणों में नाचता है। मैं शंभु को नमन करता हूँ।
11. भवानी सहित भव, कामारि, योगिनाथ। उनकी कृपा से विश्व मोक्ष के लिए संनादति है। मैं शंभु को नमन करता हूँ।
12. जगत के विधाता, त्रिनेत्र, भस्मांग। उनके तांडव से विश्व संनादति और लीन होता है। मैं सदा मोक्षदायक शंभु को नमन करता हूँ।
विक्रम सिंह
🙏ॐ नमः शिवाय🙏
 
 
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