शिवतांडवमहिमा स्तोत्रम्
लेखक: विक्रम सिंह
प्रस्तावना
ॐ नमः शिवाय।।
हे नटराज, विश्वचक्रनायको, चिदानंदघन शंभु!
यस्य तांडवेन विश्वं प्रकम्पति चेतन्यलयेन संनादति,
तं प्रणमामि शंकरं सत्यसौम्यं मोक्षप्रकाशकम्।
श्लोक 1
जटाकलापे गङ्गया तरङ्गति चन्द्रार्धशीर्षको यः,
सहस्रसूर्याग्निसमं त्रिनेत्रं वहति शंभुरुग्ररूपी।
नादति डमरुं यदीये विश्वं प्रकम्पति ब्रह्मलयेन,
प्रणमामि शंकरं परं हृदये चिदानंदमोक्षदायिनम्।
ॐ नमः शिवाय ॥
अनुवाद:
जटाओं में गंगा तरंगित होती, चंद्रमा मस्तक पर शोभित,
सहस्र सूर्यों-सी अग्नि त्रिनेत्र में धारण करने वाला उग्र शंभु।
उनके डमरु का नाद विश्व को ब्रह्म की लय में कम्पित करता है,मैं परम चिदानंद और मोक्ष देने वाले शंकर को हृदय में प्रणाम करता हूँ।
श्लोक 2
नीलकण्ठः कालहन्ता कामारिर्विश्वमूर्तिरुमाप्रियः,
कपालमालाधरः पिनाकहस्तः कैलासे विहरति सदा।
शक्त्या संनादति विश्वं यस्य तेजसि लीनति चेतनम्,
ध्यायामि शंभुं हृदये सौम्यं सत्यं परमं शिवम्।
ॐ नमः शिवाय ॥
अनुवाद:
नीलकण्ठ, काल का संहारक, काम का शत्रु, विश्वमूर्ति, उमा का प्रिय,कपालमाला धारण करने वाला, पिनाकधारी, कैलास पर विहरने वाला।उनकी शक्ति से विश्व संनादति और उनके तेज में चेतना लीन होती है,मैं सौम्य, सत्य, परम शिव शंभु का हृदय में ध्यान करता हूँ।
श्लोक 3
नटति विश्वं यदङ्घ्रौ त्रिपुरान्तकारी परः प्रभुः,
शूलपाणिः सर्पहारो गङ्गया क्रीडति नादति यः।
गजचर्मवासा महायोगिनाथः कृपाकरः सनातनः,
प्रणमामि शंभुं हृदये चेतन्यं मोक्षप्रकाशकम्।
ॐ नमः शिवाय ॥
अनुवाद:
जिनके चरणों में विश्व नृत्य करता, त्रिपुर का संहारक परम प्रभु,
शूलधारी, सर्पों से अलंकृत, गंगा के साथ क्रीडति और नादति।
गजचर्म पहनने वाला, महायोगियों का नाथ, करुणा का सागर, सनातन,
मैं चेतना और मोक्ष का प्रकाश देने वाले शंभु को हृदय में प्रणाम करता हूँ।
श्लोक 4
वृषध्वजः परशुहस्तः कैलासे स्मितचन्द्रशेखरः,
सहस्रनाम्ना कविवन्द्यगीतः सर्वं सुखंकरति यः।
कृपासमुद्रं विश्वरक्षी यस्य तेजसि विश्वं लयति,
नमामि शंकरं सदा सौम्यं सत्यं परं चिदानंदम्।
ॐ नमः शिवाय ॥
अनुवाद:
वृषभ ध्वज वाला, परशुधारी, कैलास पर स्मित-चंद्रशेखर,
सहस्र नामों से कवियों द्वारा गाया, सभी को सुख देने वाला।
करुणा का समुद्र, विश्व का रक्षक, जिनके तेज में विश्व लय करता,
मैं सदा सौम्य, सत्य, चिदानंदमय शंकर को प्रणाम करता हूँ।
श्लोक 5
स्फुरति शीर्षे शशांकः डमरुं नादति यः प्रभुरुग्रः,
नीललोहितः पञ्चवक्त्रः सनातनः शूलहस्तः परः।
शक्त्या यस्य विश्वं संनादति चेतन्यं प्रकाशति सदा,
ध्यायामि शंभुं हृदये मोक्षाय परं चिदानंदरूपम्।
ॐ नमः शिवाय ॥
अनुवाद:
मस्तक पर चंद्रमा स्फुरति, डमरु नाद करता, उग्र प्रभु,
नीललोहित, पंचमुखी, सनातन, शूलधारी, परम।
उनकी शक्ति से विश्व संनादति और चेतना सदा प्रकाशित होती है,
मैं परम चिदानंदमय शंभु का हृदय में मोक्ष के लिए ध्यान करता हूँ।
श्लोक 6
हलाहलं कण्ठगतं समुद्रजं धृतं येन सनातनः,
सर्पालंकारो भस्मलिप्तः कैलासे संनादति प्रभुः।
सर्वसाक्षी विश्वरक्षी यस्य तेजसि विश्वं प्रकम्पति,
नमामि शंभुं सत्यरूपं हृदये मोक्षप्रकाशकम्।
ॐ नमः शिवाय ॥
अनुवाद:
जिन्होंने समुद्रजात हलाहल को कण्ठ में धारण किया, सनातन,
सर्पों से अलंकृत, भस्मलिप्त, कैलास पर संनादति प्रभु।
सर्वसाक्षी, विश्वरक्षक, जिनके तेज में विश्व कम्पित होता,
मैं सत्यरूप, मोक्ष का प्रकाश देने वाले शंभु को हृदय में प्रणाम करता हूँ।
श्लोक 7
अर्धनारीश्वररूपं शक्तिशिवं संनादति परं यत्,
उमापतिः सर्ववित् स्मरहन्ता सनातनः प्रभुरुग्रः।
सदाशिवः विश्वचक्रं यत्र संनादति चेतन्यलयेन,
ध्यायामि शंभुं हृदये शान्तये परं चिदानंदमयम्।
ॐ नमः शिवाय ॥
अनुवाद:
अर्धनारीश्वर, शक्ति-शिव का परम रूप जिसमें विश्व संनादति,
उमा के पति, सर्वज्ञ, स्मर का शत्रु, सनातन, उग्र प्रभु।
सदाशिव, जिसमें विश्व का चक्र चेतना की लय में संनादति,
मैं शांति और परम चिदानंदमय शंभु का हृदय में ध्यान करता हूँ।
श्लोक 8
पिनाकहस्तः कृपाब्धिः भवानीपतिः परः प्रभुर्यत्,
सत्यं शिवं सुंदरं च योगिनां परमं गतिप्रदम्।
नृत्यति विश्वं यदीये तांडवे क्षणमात्रतो यथा,
प्रणमामि शंभुं हृदये सर्वं सिद्धिप्रकाशकम्।
ॐ नमः शिवाय ॥
अनुवाद:
पिनाकधारी, करुणा का सागर, भवानी के पति, परम प्रभु,
सत्य, शिव, सुंदर, योगियों को परम गति देने वाला।
जिनके तांडव में विश्व क्षणमात्र में नृत्य करता,
मैं सर्वसिद्धि का प्रकाश देने वाले शंभु को हृदय में प्रणाम करता हूँ।
श्लोक 9
सहस्रनामं विश्वरूपं यदङ्घ्रौ नटति विश्वं सदा,
नटेशः पशुपतिः रुद्ररूपी महेशः स्मरहन्ता यः।
कालस्य यमः सर्वलोकप्रियंकरः कृपासिन्धुरद्वैतः,
नमामि शंभुं हृदये मोक्षगतिं सत्यचिदानंदम्।
ॐ नमः शिवाय ॥
अनुवाद:
सहस्र नामों वाला विश्वरूप, जिनके चरणों में विश्व सदा नृत्य करता,
नटेश, पशुपति, रुद्ररूपी, महेश, स्मर का संहारक।
काल का भी यम, सभी लोकों को प्रिय, करुणा का सागर, अद्वैत,
मैं मोक्ष की गति, सत्य-चिदानंद शंभु को हृदय में प्रणाम करता हूँ।
श्लोक 10
त्रिनेत्रः भस्मलिप्ताङ्गः सनातनः परशुहस्तः प्रभुः,
महातांडवेन विश्वं नटति स्मितचन्द्रशेखरस्य यः।
शिवः शंभुः रुद्रः पशुपतिः सर्वं यत्र संनादति,
नमामि विश्वनाथं हृदये शान्तये मोक्षप्रकाशकम्।
ॐ नमः शिवाय ॥
अनुवाद:
त्रिनेत्र, भस्मलिप्त, सनातन, परशुधारी प्रभु,
महातांडव से विश्व स्मित-चंद्रशेखर के साथ नृत्य करता।
शिव, शंभु, रुद्र, पशुपति, जिसमें सारा विश्व संनादति,
मैं विश्वनाथ को हृदय में शांति और मोक्ष के लिए प्रणाम करता हूँ।
श्लोक 11
भवानीसहितं भवं यत् सर्वं विश्वं संनादति सदा,
कामारिः योगीन्द्रनाथः स्मितार्धेन्दुशेखरः प्रभुः।
वृषध्वजः सर्वलोकसुखंकरः कृपासिन्धुरद्वैतः,
नमामि शंभुं हृदये सदा सर्वसिद्धिप्रदायिनम्।
ॐ नमः शिवाय ॥
अनुवाद:
भवानी सहित भव, जिसमें सारा विश्व सदा संनादति,
काम का शत्रु, योगींद्रों का नाथ, अर्धचंद्र से शोभित प्रभु।
वृषभ ध्वज वाला, सभी लोकों को सुख देने वाला, करुणा का सागर, अद्वैत,
मैं सदा सर्वसिद्धि देने वाले शंभु को हृदय में प्रणाम करता हूँ।
श्लोक 12
सहस्रसूर्यार्चितं भालचन्द्रं यदङ्घ्रौ नटति विश्वम्,
त्रिलोकीनाथः स्मरान्तः सर्वसाक्षी महायोगिनाथः।
शिवं शंभुं परं तं नमामि हृदये सदा सत्यरूपम्,
महातांडवेन यदीये विश्वं संनादति मोक्षदायिनम्।
ॐ नमः शिवाय ॥
अनुवाद:
सहस्र सूर्यों से अर्चित भाल का चंद्रमा, जिनके चरणों में विश्व नृत्य करता,
त्रिलोकनाथ, स्मर का शत्रु, सर्वसाक्षी, महायोगियों का नाथ।
मैं परम शिव, सत्यरूप शंभु को हृदय में सदा प्रणाम करता हूँ,
जिनके महातांडव से विश्व संनादति, मोक्ष देने वाला।
श्लोक 13
कैलासशृङ्गे विहरति यः स्मितचन्द्रशेखरः प्रभुः,
सर्पालंकारः परशुहस्तः सर्वलोकसुखंकरः सदा।
विश्वं यदीये तांडवे प्रकम्पति गङ्गया सह नादति,
प्रणमामि शंभुं हृदये सदा सौम्यं मोक्षप्रकाशकम्।
ॐ नमः शिवाय ॥
अनुवाद:
कैलास शिखर पर विहरने वाला, स्मित-चंद्रशेखर प्रभु,
सर्पों से अलंकृत, परशुधारी, सभी लोकों को सुख देने वाला।
जिनके तांडव में विश्व गंगा के साथ कम्पित और नादति है,
मैं सदा सौम्य, मोक्ष का प्रकाश देने वाले शंभु को हृदय में प्रणाम करता हूँ।
श्लोक 14
सद्योजातः विश्वकर्ता पञ्चवक्त्रः सनातनः प्रभुः,
कामारिः त्रिनेत्रधारी भस्मलिप्तः कृपानिधिः सदा।
नृत्यति यस्य शक्त्या विश्वं संनादति प्रकाशति सदा,
नमामि शंभुं परमं हृदये मोक्षगतिप्रदायिनम्।
ॐ नमः शिवाय ॥
अनुवाद:
सद्योजात, विश्व का कर्ता, पंचमुखी, सनातन प्रभु,
काम का शत्रु, त्रिनेत्रधारी, भस्मलिप्त, करुणा का खजाना।
जिनकी शक्ति से विश्व सदा नृत्य करता और प्रकाशित होता है,
मैं परम शंभु को हृदय में मोक्ष की गति देने वाले को प्रणाम करता हूँ।
श्लोक 15
यस्य तांडवेन विश्वं प्रकम्पति सौम्यचिदानंदरूपम्,
शिवः शंभुः पशुपतिः सर्वं यत्र संनादति लीनति।
कृपासमुद्रं विश्वनाथं सहस्रनामं सनातनम्,
प्रणमामि तं हृदये शान्तये सर्वसिद्धिप्रदायिनम्।
ॐ नमः शिवाय ॥
अनुवाद:
जिनके तांडव से विश्व सौम्य चिदानंद रूप में कम्पित होता,
शिव, शंभु, पशुपति, जिसमें सारा विश्व संनादति और लीन होता।
करुणा का समुद्र, विश्वनाथ, सहस्रनाम, सनातन,
मैं शांति और सर्वसिद्धि देने वाले को हृदय में प्रणाम करता हूँ।
फलश्रुतियः
पठति शिवतांडवमहिमा स्तोत्रमिदं सौम्यं नवचेतनम्,
स लभति ज्ञानं सिद्धिं शान्तिं च सनातनं शिवसान्निध्यम्।
हृदये ध्यायति शंभुं यः सदा भक्त्या कृपापात्रं भवति,
विश्वं तस्य कृपया संनादति चिदानंदलयेन सौम्यम्।
ॐ नमः शिवाय ॥
अनुवाद:
जो इस सौम्य और नवचेतना युक्त शिवतांडवमहिमा स्तोत्र का पाठ करता है,
वह ज्ञान, सिद्धि, सनातन शांति, और शिव की सान्निध्यता प्राप्त करता है।
जो भक्तिपूर्वक हृदय में शंभु का ध्यान करता है, वह कृपा का पात्र बनता है,
और उसका विश्व चिदानंद की लय में सौम्यता से संनादति है।
🙏ॐ नमः शिवाय 🙏
विक्रम सिंह
(अयं स्तोत्रः स्वरचितः अस्ति)
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