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बुधवार, 31 दिसंबर 2008

हे प्रभात तेरा अभिनंदन

हे प्रभात तेरा अभिनंदन

किरण भोर की, निकल क्षितिज से
उलझी ओस कणों के तन से

फूलों की क्यारी तब उसको, देती अपना मौंन निमंत्रण

भौरों के स्वर हुये गुंजरित
खग-शावक भी हुए प्रफुल्लित

श्यामा भी अपनी तानों से,करती जैसे रवि का पूजन

ज्योति-दान नव पल्लव पाया
तम की नष्ट हुयी हैं काया


गोदी में गूजी किलकारी, करती हैं तेरा ही वंदन


विक्रम

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