हे प्रभात तेरा अभिनंदन
किरण भोर की, निकल क्षितिज से
उलझी ओस कणों के तन से
फूलों की क्यारी तब उसको, देती अपना मौंन निमंत्रण
भौरों के स्वर हुये गुंजरित
खग-शावक भी हुए प्रफुल्लित
श्यामा भी अपनी तानों से,करती जैसे रवि का पूजन
ज्योति-दान नव पल्लव पाया
तम की नष्ट हुयी हैं काया
गोदी में गूजी किलकारी, करती हैं तेरा ही वंदन
विक्रम
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