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शुक्रवार, 10 जनवरी 2020

साथी दूर विहान हो रहा

 रवि रजनी का कर आलिंगन
 अधरों को दे क्षण भर बन्धन 

 कर पूरी लालसा प्रणय की, मंद-मंद मृदु गान कर रहा 

 साथी दूर विहान हो रहा 

 अपना सब कुछ आज लुटाकर
 तृप्ति  हुयी  यौवन सुख  पाकर 

 शरमाई रजनी से रवि को, प्रेम भरा प्रतिदान मिल रहा 

 साथी दूर विहान हो रहा

 रजनी पार क्षितिज के जाती 
 आँखों   से आँसू  छलकाती 

 झरते आँसू पोछ किरण से, रवि रजनी का मान रख रहा 

 साथी दूर विहान हो रहा 

 विक्रम

सोमवार, 12 नवंबर 2018

तुमने पूछा
कौन हैं हम आपके
शब्द और प्रश्न
सरल और सीधे हैं
उत्तर कठिन
जटिल है अभिब्यक्ति
भाषा और भावनाओं से
यह भी बधें होते
सीमाओं के दायरे में
सुनो
जानना ही चाहती हो
तो किसी -
पहाड़ी नदी के कलकल में
बाँसुरी के स्वर-लहरियों में
टूटते तारों की चमक में
सूर्य की पहली किरण में
मदिर बयारों में
किसी मासूम की हँसी में
मिल जाएगा
 प्रश्न का उत्तर
कोशिश करके देखो
दिखाई पड़ जाऊँगा तुम्हारे ही अंदर
थामें तेरी असीम भुजाओं को
एकाकार होती चन्द्र की धवल रश्मियों में
तुझमे ही जन्मा
तुझमें ही खेला
तुझमे  ही पला
तुझमे विलीन हो जाऊँगा
न मैं था
न मैं हूँ
न मैं रहूंगा
तुम थी
तुम हो
तुम रहोगी
और मैं तुझमे

विक्रम

शनिवार, 22 जुलाई 2017

दर्द गाढ़ा हो रहा है.....

दर्द गाढा  हो  रहा  है, आसमां  बदरंग है
टूटती हर साँस की,आशा अभी सतरंग है 

तुम कभी मिलने न आना,मौज का सागर नहीं
दो  किनारों  का यहाँ बस, दूर ही  का संग है 

दर्द  को आगोश  में लेकर सदा  सोता रहा 
अब ख़ुशी के साथ पर,मेरा नजरिया तंग है 

रात का घूँघट उठा कर,क्या किया मैने यहाँ 
टूटते  तारों से  निकली, रोशनी  से  जंग  है 

जर्रे -जर्रे  में  तुम्हारे , नूर  की   चर्चा   बड़ी
सबको छलने का तुम्हारा,कौन सा यह ढंग है 

विक्रम

बुधवार, 17 मई 2017

आज फिर कुछ खो रहा हूँ.....

आज फिर कुछ खो रहा हूँ

करुण तम  में है विलोपित
हास्य से हो काल कवलित

अधर में हो सुप्त,सपनों से बिछुड़ कर सो रहा हूँ

आज फिर कुछ खो रहा हूँ

नग्न  जीवन  है प्रदर्शित
काल के हाथों विनिर्मित

टूटते हर खण्ड का,चेहरा यहाँ मै हो रहा हूँ

आज फिर कुछ खो रहा हूँ

आज से है कल  हताहत
अब कहाँ जाऊँ तथागत

नीर से मै नीड़ का,निर्माण करके रो रहा हूँ

आज फिर कुछ खो रहा हूँ

विक्रम

अपनी तृष्णा से जलते हैं....

अपनी तृष्णा से जलते हैं

विष -दंश भरे  पथ में  चलके
सत्-असत् ज्ञान में जड़ बनके

पुष्पों की मृदूता में खोकर कुछ काटें ही तो चुनते हैं

अपनी तृष्णा से जलते हैं

नश्वर जीवन  की  चाह लिये
बस कल्पद्रुम की आश किये

इस कर्महीन सुख में रहकर कितना खुद को ही छलते हैं

अपनी तृष्णा से जलते हैं

संयम और संतुलन तजके
कर्म यज्ञ के पथ से हटके

मन कल्पित आमोद सदन में चीर हरण अपना करते हैं

अपनी तृष्णा से जलते हैं

विक्रम

तन्हाई के इस आलम में ....

तन्हाई  के    इस  आलम  में ,खामोश  तरानें  गाते  हैं
यादों के भंवर में फस करके,कुछ अपने मिलने आते हैं

ऐ वक्त जरा तुम थम जाओ,थोडा मुझ पर एतबार करो
मेरी  परछाई  भटक  रही  ,उसको  जाकर हम लाते हैं

खामोश निगाहें थम करके,जब भी बरसीं जम कर बरसीं
उसके अश्कों  के संग  जाने, कितने  चेहरे  बह  जाते हैं

न  दर्द  नया न प्रीत नई,न ये दुनिया की रीत नई
दर्पण  के टूटे टुकड़ों  में, अपना चेहरा ही पाते  हैं

मै भटक रहा इन राहों में मंजिल की मुझे पहचान नहीं
फिर भी चलने की चाहत में,हर मोड़ पे ठोकर खाते हैं

विक्रम

चलो सुखी फिर से हो जाएँ.........



चलो सुखी फिर से हो जाएँ

मृदुल भाव से देती ताना
कोई भूला  गीत  सुनाना

जीवन के बीते लम्हों को,संग आज हम अपने पाएँ

चलो सुखी फिर से हो जाएँ

वही पुरानी बिदिंया लाना
मेरी निंदिया आज चुराना

मौसम कितने ही गुजरें, पर अधर नहीं तेरे कुम्हलाएँ

चलो सुखी फिर से हो जाएँ

सुख-दुःख से है साथ पुराना
तुम  ऐसे ही  साथ   निभाना

साँसों की इस पगडंडी से,हट कर अपनी राह बनाएँ

चलो सुखी फिर से हो जाएँ

विक्रम

झील का निर्जन किनारा.......

झील का निर्जन किनारा

मौन    होकर   बैठ   जायें
तपिस मन की कुछ बुझायें

एक क्षण ऐसा लगा क्यूँ ,अब यही मेरा सहारा

झील का निर्जन किनारा

टूटती हर  साँस ले  मै
कुछ अधूरी आश ले मै

उस अकल्पित शक्ति को बस,मौन हो मैने पुकारा

झील का निर्जन किनारा

शब्द सारे याद आये
अर्थ ही न ढूँढ  पाये

झील में उठती लहर सा,डोलता है  मन हमारा

झील का निर्जन किनारा

विक्रम 

आड़ी तिरछी रेखाओँ में ........

आड़ी तिरछी  रेखाओँ में  भाग्य ढूढते  लोग  यहॉं
पाप पूण्य की परछाई की गिनती करते लोग यहाँ

मासूमों की किलकारी अब आँचल  में ही सहम रही
शिथिल पगों से अरमानों का बोझ उठाते लोग यहाँ

कोरी चुनरी के कोरों से झर-झर आँसू टपक रहे
आँख कान को बंद कराके  ज्ञान बाटते लोग यहाँ

तृष्णा के पर लगा कबूतर  आसमान में भटक रहा
अपनी  ही छाया से  सहमें  भगते डरते लोग यहाँ

कर्म मर्म को बिन समझे ही  जीवन की कविता वाँची
स्वर्ण-कलश के रक्तिम मधु से रोज नहाते लोग यहाँ

विक्रम

जब वक्त था......

जब
वक्त था
तब
सब्र नही
जब
सब्र है
तो
वक्त नही
अजीब फंडा हैै
जिंदगी का
जब
चाह थी
तब
राह नही
जब
राह है
तो
चाह नही

विक्रम

दर्द कभी छलके.....

दर्द कभी  छलके आँखों से  उसको रोना मत कहना
प्यार बसा है हर कतरे में उससे गजल कोई लिखना

लगता  है ख़ामोश  ख़ियाबां  तेरे  चले  जाने के बाद
साँसों  में  अटके  लम्हों  के साथ मुझे है अब चलना

अब  तक जो न  कह पाये थे  आज मुझे है कह देना
तन्हाई  में  दर्द  से  बढ़कर  कोई  नही  होता अपना

नर्गिस  पर  निसार  निहां  हो  जाने की  हसरत मेरी
काश  नवाज़िश  उनकी  होती फ़ुऱ्कत में कैसा रहना

देकर  ए    ईशाद    बज़्म   में   आने   से   रोका    उसने
अब तो गम-ए-दरिया में लगता दा'इम तक मुझको बहना

विक्रम

1-ख़ियाबां=पुष्पवाटिका 2-निसार=न्योछावर करना,फेकना3-निहां=गुप्त ,परोक्ष4-नवाज़िश=कृपा,दयालुता 5-फ़ुऱ्कत=जुदाई,विरह 6-ईशाद=आज्ञा,आदेश 7-दा'इम=अनंत,स्थायी

आ, साथी


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आ, साथी नव वर्ष मनाएं

 बीता कल अलविदा कह गया
 जो भोगा, वह  संग  रह  गया

धन्यवाद उसका भी करके,चिर-वसंत के स्वप्न सजाएं

आ, साथी नव वर्ष मनाएं

स्वागत नूतन वर्ष तुम्हारा
कैसा होगा  साथ हमारा?

दीप नये नव-आशाओं के, आ तेरे संग आज जलाएं

आ साथी नव वर्ष मनाएं

सब कुछ खोकर जीने वाला
जैसे   हो,  कहनें  ही  वाला

अतुल  वेदनाएँ जीवन में, फिर भी  मंगल-गीत लुभाएं

आ, साथी नव वर्ष मनाएं

विक्रम

प्यार जब......

प्यार जब आँसू बनकर छ्लक जाता है
मोतियों  की  तरह  वो चमक  जाता है

थोडा रुसवा किया  थोडा रुसवा हुए
मुझसे मिल के वो थोडा बहक जाता है

हम  फ़िदाई   हुए  उसने  फ़त्वा  दिया
उसकी ज़िन्दां में दिल ये चहक जाता है

पारदारी  किसी  की  मैं  करता  नही
उसकी साँसों से आलम महक जाता है

जब  पशेमान   फ़ाख़िर   परस्तिश   करे
उससे ज़ाबित का दिल भी धड़क जाता है

विक्रम

1-फ़िदाई = प्रेमी 2- फ़त्वा= न्यायिक  आदेश 3-ज़िन्दां =कारागार 4- पारदारी = पक्षपात 5- पशेमान= लज्जित 6- फ़ाख़िर = अभिमानी 7-परस्तिश = आराधना ,पूजा 8-ज़ाबित = स्वामी , अधिकारी

कुसुम-काय कामिनी.....

कुसुम-काय कामिनी दृगों में जब मदिरा भर आती है
खोल अधर पल्लव अपने,मधुमत्त  धरा कर जाती है

कंचन वदन षोडसी जब,कटि पर वेणी लहराती है
पौरुष प्रभुता को भुजंग की,क्षमता से धमकाती है

श्वास सुरभि से वक्षस्थल के,काम कलश सहलाती है
द्रष्टि  काम में भ्रमर  भाव ,जागृति  करके भरमाती है

खुले केश अधखुले नयन में,नींद लिये बलखाती है
रक्त वर्ण अधरों से अपने ,पुरुष दम्भ पिघलाती है

प्रणय प्राश में बांध प्रभा को,विभा सदा इठलाती है
कभी केलि उसके संग करती,कभी उसे दुलराती है

पुरुष प्रकृति का अंश, त्रिया सम्पूर्ण सृष्टि कहलाती है
सृष्टि  कर्म में  देह  धर्म  का , मर्म  उसे  समझाती है

विक्रम

तन्हाई में मै गाता हूँ.....

तन्हाई में मै गाता हूँ

यादों  के  बादल   जब आते
मदिर-मदिर रस हैं  बरसाते

शीतल मंद पवन के संग मै,अक्षय सुधा पीने जाता हूँ

तन्हाई में मै गाता हूँ

ज्वार मदन के जब हैं आते
मादक  सपनें  देकर  जाते

मै भी कुंज,प्रणय उपवन से ,सौरभ सुमनों के लाता हूँ

तन्हाई में मै गाता हूँ

स्वप्न सदा छलने को आते
अंर्तमन  को    हैं   भरमाते

तब करके अंत्येष्टि ह्रदय की ,परम सुखी मै हो जाता हूँ

तन्हाई में मै गाता हूँ

विक्रम

बड़े खामोश लम्हें हैं .....

बड़े   खामोश लम्हें हैं जरा  चुपके से आ  जाना
तेरे साँसों की सरगम पर मुझे कोई गजल गाना

अज़ल  से  आरज़ू  मेरी  तू मेरे  बज़्म  में  आए
बड़ी मासूम हसरत है जरा घर से निकल आना

तेरे चिलमन पे जा करके मेरी नजरें ठहर जाती
बड़ा  नादाँ  है दिल मेरा  न तू  आए न  ए माना

मेरा  पयाम   ले  करके  हवाएँ  रोज  जाती   हैं
दानिस्ता है बहुत मुश्किल तेरे दर पर पहुच पाना

मैं तेरे गेसुओं  की इस घनी  सी छांव में  आकर
कहा दिल से धड़क करके मुझे मत होश में लाना

विक्रम

वर्षा-बूँदों की ये लोरी .......

वर्षा-बूँदों   की  ये  लोरी

पावस रातों की ये छोरी
तन्हाँ-तन्हाँ  कोरी-कोरी

मेरे मन आँगन बरस-बरस,क्यूँ छेड़ रही श्यामल गोरी

वर्षा-बूँदों    की   ये  लोरी

है रात  समंदर  का  आँचल
जाये भी कहाँ ये मन-पागल

आलिंगन  में   लेकर  उसको, सहलाती  तन्हाई  मेरी

वर्षा - बूँदों  की   ये   लोरी

घन  का घमंड  जब इतराता
उर मथकर कंठों तक आता

लहरों में मचलते यौवन से,बह जाए न आशा की डोरी

वर्षा-बूँदों   की   ये  लोरी

विक्रम 

नया चित्र तू बना चितेरे......

नया चित्र तू बना चितेरे

शून्य श्याम नव अंकित कर दे
अणु विहीन आलोकित  कर दे

सृष्टि और सृष्टा दोने के,भेद मिटाना आज चितेरे

नया चित्र तू बना चितेरे

अहम् और त्वम् नहीं दिखाना
पथिक  पंथ दोनों  बन  जाना

जीवन मरण संधि रेखा ही,नहीं बनाना आज चितेरे

नया चित्र तू बना चितेरे

जड़, चेतन, चेतन,जड़ रखना
भूत भविष्य विलोपित करना

अंतहीन काया की छाया,नही दिखाना आज चितेरे

नया चित्र तू बना चितेरे

विक्रम

My young friend.....

My young friend
In the journey of life
Many people,meet,would lost
You have to continue journey
Without stopping tired
For loved ones
For your dreams,what you have seen
You have to fulfill those dreams
For themselves
For those who love you
Travel is not easy
Even deceived in this way?
Just listen to the voice of your spirit
Who taught you to walk to their opinion
Tomorrow is yours
You can touch the sky
My prayers are with you
Every happiness in the world is yours
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VIKRAM SINGH
(twitter में स्पेनिश फॉलोअर्स Caroline को मेरा भेजा सन्देश)

आ,साथी नव दीप जलाएँ......

आ,साथी नव दीप जलाएँ

आ,साथी नव दीप जलाएँ

दूर घ्रणा का करें अँधेरा
प्रेम राग का रहे  बसेरा

युग-युग की वेदना मिटा दे,ऎसी कोई राह बनाएँ

आ,साथी नव दीप जलाएँ

देवगगन में  अब  हम जाएँ
नया दिवाकर ले कर आएँ

तृष्णा के घन अँधियारे को,आ उससे ही दूर भगाएँ

आ,साथी नव दीप जलाएँ

निज विलास से  बाहर आएँ
नर नारायण फिर मिल जाएँ

किरण पुंज प्रज्ञा में चमके,भेद अंनत सुलझ सब जाएँ

आ,साथी नव दीप जलाएँ

विक्रम

इन भीगी भीगी पलकों में.....

इन भीगी भीगी पलकों में,खामोश तराना है
सुन  तेरे  मेरे  दिल  का ए,मासूम फसाना है

तुम चुपके से जो आये,मेरी थम सी गई साँसे
तेरे  चंचल   नयनों   में ,  नादान   बहाना   है

देखो चाँद नही आया,अब तुम ही ठहर जाओ
इस रात की शबनम को ,पलकों पे  सजाना है

चाहे थम जाएं ये पल छिन,या सदियां गुजर जाएं
हमें  रश्म  जुदाई  की , इस  जग   से  मिटाना  है

न कल का पता तुझको,न कल से गिला मुझको
अब  तेरे  मेरे अधरों  को ,बस प्रीति निभाना  है

विक्रम

समय ठहर उस क्षण है जाता...

समय ठहर उस क्षण है जाता

ज्वार मदन का  जब है आता
रश्मि-विभा में रण ठन जाता

तभी उभय नि:शेष समर्पण,ह्रदयों का उस पल हो पाता

समय ठहर उस क्षण है जाता

श्वास सुरभि सी आती जाती
अधरों से मधु रस छलकाती

आलिंगन आबद्ध युगल तब,प्रणय पाश में बँध सकुचाता

समय ठहर उस  क्षण है जाता

कुसुम केंद्र भेदन क्षण आता
मृदुता को,  कर्कशता  भाता

अग्नि शीत के बाहुवलय में,अर्पण अपनें को कर आता  

समय ठहर उस  क्षण है जाता  

विक्रम

मौन हो कितने मुखर हम हो गए....

मौन हो कितने मुखर हम हो गए

 शब्द  मेरे  भाव  तेरे   हो  गए
 इस अनोखे मेल में हम खो गए

नव रचित इस गीत में होकर मगन,प्राण संज्ञा शून्य करके सो गए

मौन हो कितने मुखर हम हो गए

एक अलसाई हुई सी आस थी
वेदना से युक्त कैसी प्यास थी

एककर  संवेदनाएँ  प्राण  की, प्रणय  के  नव  बीज  जैसे  बो गए

मौन हो कितने मुखर हम हो गए

जीत रक्तिम सुयश का क्या अर्थ है
शुष्क सरिता की तरह ही व्यर्थ  है

अहम् के हाथों सृजित पथ तोड़कर,आज तृष्णा हीन सुख में खो गए

मौन हो कितने मुखर हम हो गए

विक्रम 

दिन हौले-हौले ढलता है...



दिन हौले-हौले ढलता है

बीती  रातों के ,कुछ  सपने
सच करनें को उत्सुक इतने

आशाओं के गलियारे में,मन दौड़-दौड़ के थकता है

दिन हौले-हौले ढलता है

पिछले सारे ताने -बाने
सुलझे कैसे ये न जानें

हाथों में छुवन है फूलों की,पर पग का गुखरु दुखता है

दिन हौले-हौले ढलता है

दिन के उजियाले में जितने
थे मिले यहाँ बनकर अपने

जब शाम हुई सब चले गये ,सूनापन कितना खलता है

दिन हौले-हौले ढलता है

विक्रम 

क गया हूँ जिंदगी की मार से......

थक गया हूँ जिंदगी की मार से
बात थोडा कीजिए  न प्यार से

रूबरू होकर भी तन्हाँ  रह  गए
अब कोई शिकवा नही है यार से

फिर नई  राहों में चलकर  देख लूँ
कितना मुश्किल जीतना है हार से

कारवाँ जब टूट करके  है बिखरता
ख़्वाब बह जाते  समय की धार से

बंद कर ली है पलक इस आश से
शायद कोई आ रहा  उस पार से

विक्रम 

ऋतु वसंत दिग्भ्रमित कर रहा.......

ऋतु वसंत दिग्भ्रमित कर रहा

ये  मेरा  अतीत   ले  आता
ह्रद हिलोर करने लग जाता

कल्प पाँखुरी खोल ह्रदय की,पुष्प मृदुल नव-राग भर रहा

ऋतु वसंत दिग्भ्रमित कर रहा

सुरभि सुमन नव प्राण जगाते
मदन भाव  मन  में भर  जाते

कर अतुलित श्रृंगार सृष्ट्रि का,उर तृष्णा में धार धर रहा

ऋतु वसंत दिग्भ्रमित कर रहा

समय  चक्र तब  है समझाता
महाशून्य का शिविर दिखाता

मौन नदी के तट पर आकर,क्यूँ  सच से तू  आज डर रहा

ऋतु वसंत दिग्भ्रमित कर रहा

विक्रम 

इश्क़ पे इल्लत लगा.......

इश्क़ पे  इल्लत लगा  इश्रत मनाने  आ गए
गोया अपने आपको आदिल बताने आ गए

इत्तिका  इताब  का  लेते   यहाँ  जो  लोग  हैं
क़ब्ल को कर ख़ाक वो खुत्बा सुनाने आ गए

आह से इख्लास का  इज़्हार कैसे  हो गया
अन्जुमन में सब मुझे कातिल बनाने आ गए

बस जरा चिलमन से अपने देख ले तू इम्तियाज़
नाखुदा  की  राह  में  काफिर  जमानें   आ गए

उस बुते-काफिर से मिलकर वो खुदी में खो गया
इक निशेमन  तोड़कर  महफिल  सजाने  आ गए

विक्रम


1-इल्लत=दोष2-इश्रत=आनंद  3आदिल=न्यायपूर्ण,नेक 4-इत्तिका=सहारा 5-इताब=क्रोध6-क़ल्ब=दिल,आत्मा 7-खुत्बा=भाषण,धर्मोपदेश 8-इख्लास=प्रेम 9इम्तियाज़=अंतर,फर्क 10-नाखुदा=मल्लाह,पार लगाने वाला 11-बुते-काफिर=अति खूबसूरत औरत 12-खुदी=घमंड 13-निशेमन=आशियाना.

गगन का ......

गगन का पहला वो तारा

एक झिलमिल झलक देता
नयन  से  फिर  दूर  होता

कह रहा जैसे निशा से, तीर रवि को मैंने मारा

गगन का पहला वो तारा

रवि तभी करता समर्पण
निशा  को  देता निमंत्रण

लालिमा की खींच चूनर,कर रहा नभ से किनारा

गगन का पहला वो तारा

रात्रि  ने  घूँघट  उठाया
दीप नव नभ में जलाया

खो गया इस भीड़ में,लगता मुझे जो सबसे प्यारा

गगन का पहला वो तारा

विक्रम

थोड़ी खुशियाँ.....

थोड़ी खुशियाँ थोड़े से गम थोड़े से अरमान है          
बीते लम्हें  कभी न  लौटें  ऐसे ये  मेहमान  हैं

तन्हाई का दर्द दिलों की पूँजी जब बन जाता है
चुपके-चुपके रोने पर  भी होता बहुत  गुमान है

लम्बी राहें थोड़ी साँसे पग जल्दी थक जाते हैं
खींच  लकीरें  राहें  छोटी  करते वो नादान हैं

खुशियाँ चपल कपोती सी जब भी आँचल में आती हैं
चन्द पलों के  खातिर  कैसे  डिग  जाता  ईमान है

वर्षा की लोरी से जब कोरी चुनरी  सो जाती  है
बन्द पलक के अंदर सजती सपनो की दुकान है

विक्रम

महाशून्य से......

महाशून्य से ब्याह रचायें

क्रिया- कर्म से  ऊपर  उठ  कर
अहम्  और  त्वम् यहीं  छोड़कर  

काल प्रबल के सबल द्वार को,तोड़ नये आयाम बनायें

महाशून्य से व्याह रचायें

स्वाहा और स्वास्ति में अंतर
भ्रमित  रहा मन  यहाँ निरंतर

माया से  विभ्रांत चेतना को अवचेतन पथ पर लायें

महाशून्य से व्याह रचायें

निर्गुण और सगुण मिल जायें
महामौन  जब  पास   बुलायें

दृगांचल अनंत हो जाये , प्रिय जब  मुझसे नैन मिलायें

महाशून्य से ब्याह रचायें

विक्रम
(आज जीवन यात्रा के 63 वर्ष पुरे करने  पर😊)

आ मृग-जल से...

आ,मृग -जल से प्यास बुझाएं

कहाँ गई मरकत की प्याली
द्रोण-कलश भी  मेरा खाली

चिर वसंत-सेवित सपनों में,खोकर शायद मधु-रस पाएं

आ,मृग-जल से प्यास बुझाएं

गिर निर्झर जैसे हो कहता
समय अनवरत बहता रहता

मन कल्पित आकांक्षित गृह में,रुक अतीत से हाथ मिलाएं

आ,मृग-जल से प्यास बुझाएं

है अतीत इतना  ही कहता
वर्तमान ही जीवित रहता

सासों में अटके जीवन से,जन्म-मरण के प्रश्न चुराएं

आ,मृग-जल से प्यास बुझाएं

विक्रम

क्यूँ तुम मन्द.....

क्यूँ तुम मंद-मंद हँसती हों

मधुबन की हों चंचल हिरणी
बन  बैठी  मेरी  चित- हरणी

कर तुम ये मृदु हास , मेरे जीवन में कितने रंग भरती हों

क्यू तुम मंद-मंद हँसती हों

तुम हों  मैं  हूँ  स्थल  निर्जन
बहक न जाये ये तापस मन

अपने नयनो की मदिरा से, सुध बुध क्यू मेरे हरती हो

क्यूँ तुम मंद मंद हँसती हो

प्यार भरा हैं तेरा  समर्पण
तुझको मेरा जीवन अर्पण

मेरे वक्षस्थल में सर रख क्याँ उर से बातें करती हों

क्यूँ तुम मंद मंद हँसती हों

विक्रम

तुम्हारे जाने के बाद......

तुम्हारे जाने के बाद
तुम्हारे न होने की अनुभूति
ले आई मुझे
बीते लम्हों में
यह जानते हुए
नही हो तुम
न जाने क्यूँ -
याद आ रहा है
तुम्हारी पलकों का कँपना
खुलना झँपना
हाँ याद है
थरथराते होंठो की छुवन
मुस्कराती आँखों के अनकहे कथन
जो बिखरे हैं,यहीं कहीं
मेरे आस-पास
मैं जानता हूँ तुम नही हो
मैं मानता हूँ तुम हो
हम मिलते हैं
प्रतिपल प्रतिदिन
सुनहरी ओस कणों में
दरिया किनारों में
शाम की शांत हवाओं में
संगीत की स्वर लहरियों में
रात्रि के टूटते तारें में
हम मिलते हैं न

विक्रम 

मेरा कुसूर क्या यहाँ.........

मेरा  कुसूर  क्या  यहाँ  आलिम  बताइये
आशुफ़्ता करके बज़्म से मुझको न जाइये

मेरे  अज़ीज़ मैं  हूँ  अजब से  अज़ाब में
अब्तर मुझे अब्सार से करके दिखाइये

ख़ुत्बा दिया  खुदी का  मेरी एक  न सुनी
गुलशन उजाड़ करके न गर्दिश को लाइये

नुक्ताबीं नागवार है  सबकी  निगाह  में
आकर जरा फ़िगार को नादिर बनाइये

दिल में गिरह लगा के गिरिया न कीजिये
मेरे  फ़िदाई  फ़ितरत  में  फत्वा  लगाइये

विक्रम

बुधवार, 25 जनवरी 2017

जन गण मन अधिनायक

जन गण मन अधिनायक

गण का तंत्र, तंत्र के गण से
आहत मन पूछे जन-जन से

राष्ट्रगान में अस्तुति जिसकी,भला कौन वह लायक

जन गण मन अधिनायक

वह  शुभ नामे कब  जगता  है 
कब जन मन की वह सुनता है 

कब आशीष देता है सबको,बन महान सुखदायक

जन गण मन अधिनायक

पगड़ी छत्र चंवल बल्लम से
पश्चिम  के  गोरे  आदम   से

मुक्ति दिलाकर कहाँ गये सब,धीर वीर जननायक

जन गण मन अधिनायक

विक्रम

गणतंत्र दिवस की हार्दिक शुभकामनायें

सोमवार, 21 जुलाई 2014

मौन हो कितने मुखर हम हो गए

मौन हो कितने मुखर हम हो गए

 शब्द  मेरे  भाव  तेरे   हो  गए 
 इस अनोखे मेल में हम खो गए 

नव रचित इस गीत में होकर मगन,प्राण संज्ञा शून्य करके सो गए

मौन हो कितने मुखर हम हो गए

एक अलसाई हुई सी आस थी
वेदना से युक्त कैसी प्यास थी 

एककर  संवेदनाएँ  प्राण  की, प्रणय  के  नव  बीज  जैसे  बो गए 

मौन हो कितने मुखर हम हो गए

जीत रक्तिम सुयश का क्या अर्थ है
शुष्क सरिता की तरह ही व्यर्थ  है

अहम् के हाथों सृजित पथ तोड़कर,आज तृष्णा हीन सुख में खो गए 

मौन हो कितने मुखर हम हो गए 


विक्रम 

मंगलवार, 15 जुलाई 2014

दर्द गाढ़ा हो रहा है,आसमां.......

दर्द  गाढ़ा  हो रहा  है, आसमां  बदरंग है 
टूटती हर सांस की आशा अभी सतरंग है 

तुम कभी मिलने न आना,मौज का सागर नहीं 
दो  किनारों  का यहाँ बस, दूर ही  का संग है

दर्द को आगोश में लेकर सदा सोता रहा 
अब ख़ुशी साथ पर,मेरा नजरिया तंग है 

रात का घूँघट उठा कर,क्या किया मैने यहाँ
टूटते  तारों  से निकली, रोशनी  से  जंग  है 

जर्रे- जर्रे   में  तुम्हारे , नूर   की  चर्चा   बड़ी 
सबको छलने का तुम्हारा,कौन सा यह ढंग ह

विक्रम 

बुधवार, 25 जून 2014

नया चित्र तू बना चितेरे


नया चित्र तू बना चितेरे

शून्य श्याम नव अंकित कर दे 
अणु विहीन आलोकित  कर दे

सृष्टि और सृष्टा दोने के,भेद मिटाना आज चितेरे

नया चित्र तू बना चितेरे

अहम् और त्वम् नहीं दिखाना
पथिक  पंथ दोनों  बन  जाना

जीवन मरण संधि रेखा ही,नहीं बनाना आज चितेरे

नया चित्र तू बना चितेरे

जड़, चेतन, चेतन,जड़ करना
भूत भविष्य विलोपित करना

अंतहीन काया की छाया,नही दिखाना आज चितेरे

नया चित्र तू बना चितेरे


विक्रम


रविवार, 22 जून 2014

झील का निर्जन किनारा

झील का निर्जन किनारा

मौन   होकर    बैठ   जायें
तपिस मन की कुछ बुझायें 

एक क्षण ऐसा लगा क्यूँ,अब यही मेरा सहारा

झील का निर्जन किनारा

टूटती हर साँस  ले  मै                                             
कुछ अधूरी आश ले मै

उस अकल्पित शक्ति को बस,मौन हो मैने पुकारा


झील का निर्जन किनारा

शब्द सारे याद आये
अर्थ ही न ढूँढ  पाये

झील में उठती लहर सा,डोलता है मन हमारा

झील का निर्जन किनारा


विक्रम



बुधवार, 15 जनवरी 2014

आप इतना यहाँ पर न इतराइये


आप  इतना यहाँ  पर न इतराइये
चंद सासों  की राहें सभल जाइये
अज़नबी मान करके  कहाँ जा रहे
आपको भी यहाँ हमसफर चाहिये

जख्म लेकर यहाँ मै तो जीता रहा
जहर मिलता रहा जहर पीता रहा
जिंदगी  के  तजुर्बे  बड़े  ख़ास  हैं
रुबरु  होने  उनसे   चले   आइये

एक  मासूम  के  पास  जाना  कभी
प्यार से उसके गालों को छूना कभी
उसके मुस्कान में है  जहाँ की ख़ुशी
अपने दामन में भर  कर उन्हें लाइये

जर्रे- जर्रे  में  जिसका  यहाँ  नूँर   है
पास   होते   हुये   भी   बहुत  दूर  है
दर्द का  एक  कतरा  किसी  दीन  से 
माग   करके   उसी   में  उसे   पाइये

विक्रम 



शनिवार, 11 जनवरी 2014

कुसुम-काय कामिनी द्दगों में.......



 कुसुम-काय कामिनी दृगों में जब मदिरा भर आती है
खोल अधर पल्लव अपने, मधुमत्त  धरा कर जाती है

कंचन वदन षोडसी जब,कटि पर वेणी लहराती है
पौरुष प्रभुता को भुजंग की,क्षमता से धमकाती है

श्वास सुरभि से वक्षस्थल के,काम कलश सहलाती है
द्रष्टि  काम  में,भ्रमर  भाव , जागृति  करके भरमाती है

खुले केश अधखुले नयन में,नींद लिये बलखाती है
रक्त वर्ण अधरों से अपने ,पुरुष दम्भ पिघलाती है

प्रणय प्राश में बांध प्रभा को,विभा सदा इठलाती है
कभी केलि उसके संग करती,कभी उसे दुलराती है

पुरुष प्रकृति का अंश,त्रिया सम्पूर्ण सृष्टि कहलाती है
सृष्टि  कर्म  में  देह  धर्म  का , मर्म  उसे  समझाती है

विक्रम



बुधवार, 8 जनवरी 2014

अनाडी बन के आता,खिलाड़ी बन के जाता है



अनाडी बन के आता है,खिलाड़ी बन के जाता है
लगे  जो  दाग दामन में,उन्हें सब  से  छुपाता है

अगर इंसान  ये  होता, कभी  का मर  गया  होता
फकत दो वक्त की रोटी में,ये क्या-क्या मिलाता है

मेरा हमर्दद बन करके,मेरे ही आँख का आंसू
चुरा  करके  उन्हें बाजार  में,ये बेच  आता है

कभी उम्मीद बन जाता,कभी संगीन बन जाता
मेरी  ही  जेब पर हर  वक्त ये,पहरा  लगाता है

न  ये जाने  न  मैं  जानूं , न ये माने न  मैं  मानूं
वही किस्से यहाँ आकर,मुझे हर दिन सुनाता है

मैं अपनी भूख से डरता नहीं,बस नींद से डरता
मेरे सपनों में आ करके ,मेरी कमियां गिनाता है

है इसके शब्द में जादू,ये जादू का असर यारा
मेरे  ही  हाथ  से  ये क़त्ल ,मेरा  ही कराता है

कहीं पर आम बन जाता,कहीं पर ख़ास हो जाता
सड़क  पर  हर  खड़ा  बंदा , इसे नेता बताता है


विक्रम 




मंगलवार, 31 दिसंबर 2013

स्वागत नूतन वर्ष तुम्हारा



स्वागत नूतन वर्ष तुम्हारा

नये रूप में  तुम  भी आये
स्वप्न सुनहरे कितने लाये

समय चक्र के गलियारे में,ओंस-कणों सा साथ हमारा

स्वागत नूतन वर्ष तुम्हारा

वर्ष पुराना जाने वाला
पी मेरे कर्मो की हाला

आज दिया मुझको तज उसने,संग रहकर भी रहा कुँआरा

स्वागत नूतन वर्ष तुम्हारा 

खुशियों और ग़मों के साये
उनमे  हर पल,पलते  आये

छलक गया कल मेरे कर से,तेरा कल ही मेरा सहारा

स्वागत नूतन वर्ष तुम्हारा


नव वर्ष की हार्दिक शुभकामनायें

विक्रम

मंगलवार, 24 दिसंबर 2013

सूनापन कितना खलता है



सूनापन कितना खलता है

आँखों से दर्द टपकता है
होंठों से हँसना पड़ता है

दोनों की बाहें थाम यहाँ,जीवन भर चलना पड़ता है

सूनापन कितना खलता है

मझधार में मांझी  रोता है
लहरों के बोल समझता है 

है वेग तेरा भारी मुझपर,पतवार वार को सहता है

सूनापन कितना खलता है 

दिन धीरे-धीरे ढलता है
चेहरे का रंग बदलता है

इस श्वेत श्याम की छाया में,बीता कल छुप कर रहता है 

सूनापन कितना खलता है


विक्रम 

रविवार, 3 नवंबर 2013

आ,साथी नव दीप जलाएँ

आ,साथी नव दीप जलाएँ

दूर घ्रणा का करें अँधेरा
प्रेम राग का रहे  बसेरा

युग-युग की वेदना मिटा दे,ऎसी कोई राह बनाएँ

आ,साथी नव दीप जलाएँ

देवगगन में  अब  हम जाएँ
नया दिवाकर ले कर आएँ

तृष्णा के घन अँधियारे को,आ उससे ही दूर भगाएँ

आ,साथी नव दीप जलाएँ

निज विलास से  बाहर आएँ
नर नारायण फिर मिल जाएँ

किरण पुंज प्रज्ञा में चमके,भेद अंनत सुलझ सब जाएँ

आ,साथी नव दीप जलाएँ

विक्रम


दीपावली की हार्दिक शुभकामनायें

रविवार, 18 अगस्त 2013

साथी याद तुम्हारी आये.. . . . ...

साथी याद तुम्हारी आये

सिंदूरी संध्या जब आये 
ले मुझको अतीत में जाये

रुक सूनी राहों में तेरा ,वह बतियाना भुला न पाये

साथी याद तुम्हारी आये

मधुमय थी कितनी वो राते
मॄदुल बहुत   थी  तेरी बाते

अंक भरा था तुमने मुझको,फैलाकर नि:सीम भुजायें

साथी याद तुम्हारी आये

प्राची में ऊषा जब आये 
जानें क्यूँ मुझको न भाये

बिछुड़े हम ऐसे ही पल में,नयना थे अपने भर आये

साथी याद तुम्हारी आये

विक्रम

शनिवार, 10 अगस्त 2013

मरने की तमन्ना में. . . . . . .




मरने  की  तमन्ना  में , जीने  का बहाना  है

हर रात के  आँचल  में,ख़्वाबों का खजाना है

फुरसत से  कभी  आओ,हमराज बना   लेगें

 वह दौर क़यामत  तक, तुमसे  ही निभा देगें

दुनिया तो है दो पल की,यह साथ पुराना है

मरने  की  तमन्ना   में , जीने  का  बहाना   है

थम-थम के जो बरसे तो ,पलकों को गिले होगें

गमें-राह  में चलने के , मंजर  न   बयां    होगें

अश्कों चलन में  ही , उल्फत का  फसांना   है

 मरने  की  तमन्ना  में , जीने का  बहाना  है

इस दिल की तमन्ना को ,कुछ भी तो शिला दोगे

 इक राज बना इनको ,दामन में  छिपा  लोगे

अब रंग  बना  उनको, सपनों को सजाना  है

मरने  की  तमन्ना  में, जीने  का बहाना   है

विक्रम

शुक्रवार, 9 अगस्त 2013

मै अधेरों में घिरा .. . .

मै अधेरों में घिरा ,पर दिल में इक राहत सी है

 जो शमां  मैने  जलाई वह अभी महफिल में है

गम भी हस  कर झेलना ,फितरत में दिल के है शुमार

 आशनाई  सी मुझे ,होने लगी  इनसे यार

 महफिलों में चुप ही रहने की मेरी आदत सी है

मै अधेरों में घिरा पर  दिल में इक राहत सी है

एक दर पर कब रुकी है,आज तक कोई बहार

गर्दिशों में हूँ घिरा,कब तक करे वो इंतज़ार

जिंदगी को मौसमों के दौर की आदत सी  है

मै अधेरों में घिरा पर दिल में इक राहत सी है


अपना  दामन  तो  छुड़ा कर जाना है आसां यहाँ

गुजरे लम्हों से निकल कोई जा सकता कहा

कल  से  कल को जोड़ना भी आज की आदत सी  है

 मै अधेरों में घिरा पर दिल में इक राहत सी है

विक्रम

रविवार, 28 जुलाई 2013

vikram7: आ कुछ दूर चलें,फिर सोचे.......

vikram7: आ कुछ दूर चलें,फिर सोचे.......: आ कुछ दूर चलें,फिर सोचें अमराई की घनी छाँव में नदी किनारे बधीं नाव में बैठ निशा के इस दो पल में,बीते लम्हों की हम सोचें आ कुछ दूर चलें,फ...

रविवार, 2 जून 2013

vikram7: मैनें अपने कल को देखा....

vikram7: मैनें अपने कल को देखा....: मैनें अपने कल को देखा उन्मादित सपनों के छल से आहत था झुठलाये सच से तृष्णा की परछाई से, उसको मैने लड़ते देखा मैने अपने कल को देखा वर्त्तम...

शुक्रवार, 12 अप्रैल 2013

मै किसको अब यहाँ बुलाऊँ,



मै किसको अब यहाँ बुलाऊँ
 टूटे तरू पातों के जैसा
मूक पड़ा मै अविचल कैसा


अपने ही हाथो से घायल,हो बैठा यह किसे बताऊँ


मै किसको अब यहाँ बुलाऊँ
 मेरे मौंन रुदन से होती
भंग निशा की यह नीरवता

सुन ताने प्रहरी उलूक के ,मै जी भर कर रो न पाऊँ


   मै किसको अब यहाँ बुलाऊँ  
मेरा कौन यह जो आये
आ मेरे दुःख को बहलाये

खुद अपना प्रदेश कर निर्जन,क्यू अपनो की आस लगाऊँ


मै किसको अब यहाँ बुलाऊँ

विक्रम,

सोमवार, 8 अप्रैल 2013

vikram7: साथी दूर विहान हो रहा........

vikram7: साथी दूर विहान हो रहा........: साथी दूर विहान हो रहा रवि रजनी का कर आलिंगन अधरों को दे क्षण भर बन्धन कर पूरी लालसा प्रणय की, मंद-मंद मृदु हास कर रहा साथी दूर विहान हो रह...

सोमवार, 11 फ़रवरी 2013

दिन हौले-हौले ढलता है...

दिन हौले-हौले ढलता है

बीती  रातों के ,कुछ  सपने
सच करनें को उत्सुक इतने


आशाओं के गलियारे में,मन दौड़-दौड़ के थकता है

दिन हौले-हौले ढलता है

पिछले सारे ताने -बाने
सुलझे कैसे ये जानें


हाथों में छुवन है फूलों की,पर पग का गुखरु दुखता है

दिन हौले-हौले ढलता है


दिन के उजियाले में जितने
थे मिले यहाँ बनकर अपने


जब शाम हुई सब चले
ये ,सूनापन कितना खलता है

दिन हौले-हौले ढलता है

विक्रम

शुक्रवार, 11 जनवरी 2013

आ कुछ दूर चलें,फिर सोचें........


आ कुछ दूर चलें,फिर सोचें
अमराई की घनी छाँव में
नदी किनारे बधीं नाव में
बैठ निशा के इस दो पल में,बीते लम्हों की हम सोचें
आ कुछ दूर चलें,फिर सोचें
मन आंगन उपवन जैसा था
प्रणय स्वप्न से भरा हुआ था
तरुणाई के उन गीतों से,आ अपने तन मन को सीचें
आ कुछ दूर चलें,फिर सोचें
स्वप्नों की मादक मदिरा ले
मलय पवन से शीतलता ले
फिर अतीत में आज मिला के,जीवन मरण प्रश्न क्यूँ सोचें
आ कुछ दूर चलें,फिर सोचें विक्रम

बुधवार, 2 जनवरी 2013

वह फिर भी अबला कहलाती......

वह फिर भी अबला कहलाती

रचना अविराम जो करती
जीवन पथ आलोकित करती

रख नयनों में नीर ,रक्त से अपने,जग को जन है देती
 वह फिर भी अबला कहलाती

निर्बल को जो बल है देती
ममता दे निर्ममता सहती

जग उसका करता है शोषण,वह जन-जन का पोषण करती
 वह फिर भी अबला कहलाती

हर रुपों में जन को सेती
माँ,बहना,भार्या बन रहती

विस्मृ्ति कर अपने दुख सारे, जगती को सुखधाम बनाती
 वह फिर भी अबला कहलाती
vikram

शनिवार, 17 नवंबर 2012

vikram7: हमने कितना.......

vikram7: हमने कितना.......: हमने कितना प्यार किया था अर्ध्द -रात्रि में तुम थीं मैं था मदमाता तेरा यौवन था चिर-भूखे भुजपाशो में बंध, अधरों का रसपान किया था हमने क...

बुधवार, 14 नवंबर 2012

vikram7: आज फिर कुछ खो रहा हूँ ..

vikram7: आज फिर कुछ खो रहा हूँ ..: आज फिर कुछ खो रहा हूँ करुण तम में है विलोपित हास्य से हो काल कवलित अधर मे हो सुप्त, सपनो से विछुड कर सो रहा हूँ नग्न जीवन है, प्रदर्शित ...

मंगलवार, 13 नवंबर 2012

vikram7: आज अधरो............

vikram7: आज अधरो............: आज अधरो पर अधर रख मधुभरी यह मौन सी शौगात मैने पा लिया है कल ह्र्दय मे उस पथिक सी थी विकलता राह जिसको न मिली हो साझ तक मे द्वार मे ... Dipawali ke hardik shubhkamnaye swikar kare. vikram

vikram7: आज अधरो............

vikram7: आज अधरो............: आज अधरो पर अधर रख मधुभरी यह मौन सी शौगात मैने पा लिया है कल ह्र्दय मे उस पथिक सी थी विकलता राह जिसको न मिली हो साझ तक मे द्वार मे ...

शुक्रवार, 5 अक्तूबर 2012

मै आवाज तुम्हे जब दूगाँ

मै आवाज तुम्हे जब दूगाँ

तुम   धीरे   से  ,न   कर   देना
कुछ पग चलके,फिर हस देना

बीत गये जो पल सजनी फिर, उनको जैसे मै पा लूगाँ 


मै आवाज तुम्हे जब दूगाँ

कुछ क्षण बाद,चली तुम आना
मृदुल  भाव   से,   देती   ताना

मै विभोर हो तरुणाई का,गीत कोई फिर से गा लूगाँ 




मै आवाज तुम्हे जब दूगाँ
 

क्या होता है, नया  पुराना
ऐसे ही तुम साथ निभाना

यादों की झिलमिल चुनरी से,मै श्रंगार तेरा कर दूगाँ

मै आवाज तुम्हे जब दूगाँ



विक्रम

बुधवार, 26 सितंबर 2012

तिमिर बहुत गहरा होता है........

तिमिर बहुत गहरा होता है

रात
चाँद जब नभ मे खोता
तारों  की  झुरुमुट मे सोता

मेरी  भी  बाहों  मे  कोई ,अनजाना  सा  भय  होता  है


 तिमिर बहुत गहरा होता है

यादों के जब दीप जलाता

उतना ही है तम गहराता

 छुप  गोदी  मे, मॆ सो जाता ,शून्य  नही  देखो  आता है

 तिमिर बहुत गहरा होता है

कही नीद की मदिरा  पाता
पी उसको हर आश भुलाता

रक्त नयन की जल धारा को, जग कैसे कविता कहता है


 तिमिर बहुत गहरा होता है
 
विक्रम
[पुन:प्रकाशित]

शुक्रवार, 13 जुलाई 2012

आ साथी, अब दीप जलाएँ......


आ साथी, अब दीप जलाएँ
 
लगी  निशा  होने  है, गहरी
घोर तिमिर होगा अब प्रहरी

अपनी अभिलाषाओं को फिर से,निंद्रा-पथ की राह दिखाएँ

आ साथी, अब दीप जलाएँ

है  पावस  की  रात अँधेरी
घन-बूँदों की सुन कर लोरी

शायद  नीड़- नयन में लौटे,हमसे  रुठी  कुछ  आशाएँ

आ साथी,अब दीप जलाएँ

आयेगी उषा  की लाली
नही रात ये रहने वाली

दीपशिखा की इस झिलमिल में,हम सपनों के महल सजाएँ

आ साथी,अब दीप जलाएँ
vikram

सोमवार, 30 अप्रैल 2012

रात के अन्धेरे में.......



रात के अन्धेरे में
मै
अपने दर्द को
हौले-हौले थपथपा के सहला के
सुलाने का प्रयास करता रहा
और तेरी यादें
किसी नटखट बच्चे की तरह
आ-आकर
न उसे सोने देती,न मुझे सुलाने देती
मै चिडचिडाता हूँ,बिगडता हूँ
पर सच तो यह है
मै
अपने आप को,यह समझा नहीं पाता हूं
कि मेरा दर्द और तेरी यादें
अलग-अलग नहीं एक है
तू नहीं तो क्या
मेरे पास
हमारे टूटे घरौदे के
कुछ अवशेष
अभी भी शेष हैं
vikram

शुक्रवार, 27 अप्रैल 2012

माननीय साथियो..........



 माननीय साथियो
तीन साल के अपने ब्लॉग लेखन में मुझे एक से एक अच्छी व उच्च स्तरीय  रचनाये
पढने को मिली,व आज भी उम्दा लेखको का प्रवेश ब्लॉग जगत में हो रहा है,मै अपनी पिछली  पोस्ट,  ब्लॉग बुलेटिन की पोस्ट '' अभी अलविदा न कहना ... ब्लॉग बुलेटिन ''[धीरेन्द्र जी ]के माध्यम से आप सभी के विचारों से अवगत हुआ ,मुझे पहली बार  यह एहसास हुआ कि यह ब्लॉग जगत अपनी रचनाओं को लिखने भर का मंच नही है,यह तो एक भरा पूरा परिवार है,जिससे हम एक अटूट रिश्ते के साथ जुड़े है,परिवार की भाति इसमें भी हमारे बुजुर्ग ,हम उम्र ,व युवा है. मुझसे भूल हुयी ,कि मैने इन रिश्तो  को अनदेखा कर ऐसा लिखा ,मै आप सभी से अपनी इस भूल के लिये माफी चाहता हूँ. समय मिलने पर अपने इसी ब्लॉग पर पूर्व की भाति लेखन कार्य जारी रखुगां.
क्षमा याचनाके साथ 
विक्रम सिंह

रविवार, 22 अप्रैल 2012

इस ब्लॉग की आखिरी पोस्ट ......




आदरणीय साथियो
                  नमस्कार
आज से अपने ब्लॉग विक्रम ७ में लेखन कार्य समय की कमी के कारण बंद कर रहा हूँ. बराबर लेखन व पठन कार्य न करने से एक दूरी बन जाती है,जिसे इस ब्लॉग जगत में पूरा करना मुश्किल हो जाता है. लगभग तीन  वर्षो में इस ब्लॉग के माध्यम से जो रिश्ता आप लोगो से कायम हुआ ,वह मेरे लिए अमूल्य है.व जीवन भर की यादगार, समय मिला तो फिर कभी एक नये ब्लॉग के साथ आपसे मिलने जरूर वापस आऊगां . आप सभी के लिए मेरी शुभकामना है कि इसी तरह अपने विचारों को अपनी रचनाओं के माध्यम से लोगी तक पहुचाते रहें,और मुझे आशा  है की साहित्य के साथ साथ सामाजिक जागरूकता में भी आपका यह प्रयास नए मापदंड कायम करेगा, साथ ही ब्लॉग बंद  नहीं कर रहा हूँ,पठन के लिए उपलब्ध रहेगा. और समय समय में इसके माध्यम से आप लोगो की रचनाओं को पढता व 
टिप्पणी
{: भी करता रहूँगा.  मै आज अपनी वही  पुरानी रचना पोस्ट कर रहा हूँ ,जो इस ब्लॉग की प्रथम पोस्ट थी.
शुभकामनाओं केसाथ  


कारवाँ बन जायेगा,चलते चले बस जाइये
मंजिले ख़ुद ही कहेगी,स्वागतम् हैं आइये

पीर को भी प्यार  से, वेइंतिहाँ  सहलाइये
आशिकी में डूबते,उसको भी अपने पाइये

हैं नजारे ही नहीं,काफी समझ  भी  जाइये
देखने वाले के नजरों, में  जुनूँ  भी  चाहिये

बुत नहीं कोई फरिश्ते,वे वजह मत जाइये
रो रहे मासूम  को, रुक  कर ज़रा दुलराइये

टूटती  उम्मीद पे, हसते  हुये   बस आइये
अपने पहलू में नई,खुशियाँ मचलते पाइये


vikram

गुरुवार, 19 अप्रैल 2012

आँसू से उर ज्वाल बुझाते




आँसू से उर ज्वाल बुझाते

देह धर्म का मर्म न समझा
भोग प्राप्ति  में ऎसा  उलझा

कर्म
भोग के बीच संतुलन,खोकर सुख की आश लगाते

आँसू से उर ज्वाल बुझाते

प्रणय उच्चतर मैने माना
अमर सुधा पीने की ठाना

भोग नही बस सृष्टि कर्म
है,आह समझ उस क्षण हम पाते

आँसू से उर ज्वाल बुझाते

घनीभूत विषयों का साया
भेद समझ न इसके पाया

शिथिल हुआ था ज्ञान,तिमिरयुत पथ
रह रह के मुझे रुलाते

आँसू से उर ज्वाल बुझाते

विक्रम

जीवन का सफर चलता ही रहें........








जीवन का सफर चलता ही रहें ,चलना हैं इसका काम

कहीं तेरे नाम,कहीं मेरे नाम,कहीं और किसी के नाम

हर राही की अपनी  राहें  ,हैं  अपनी  अलग  पहचान

मंजिल अपनी ख़ुद ही चुनते,पर डगर बडी अनजान

खो जाती  सारी  पहचाने, जो  किया   कहीं   विश्राम

कहीं तेरे नाम कहीं मेरे नाम,कहीं और किसी के नाम

इन राहों में मिलते रहते,कुछ अपने कुछ  अनजान

हर राही के आखों में सजे कुछ सपने कुछ अरमान

सपनों से सजी इन राहों में,कहीं सुबह हुयी कहीं शाम

कहीं तेरे नाम कहीं मेरे नाम कहीं और किसी के नाम


विक्रम[पुन:प्रकाशित]

बुधवार, 18 अप्रैल 2012

समय ठहर उस क्षण,है जाता .......







समय ठहर उस क्षण,है जाता    

ज्वार मदन का जब है आता

रश्मि-विभा में रण ठन जाता

तभी उभय नि:शेष समर्पण,ह्रदयों का उस पल हो जाता  

समय ठहर उस क्षण,है जाता  

श्वास सुरभि सी आती जाती
अधरों से मधु रस छलकाती

आलिंगन आबद्ध  युगल तब,प्रणय पाश में है बँध जाता    

समय ठहर उस  क्षण,है जाता          

कुसुम केंद्र भेदन क्षण आता
मृदुता को, कर्कशता  भाता

अग्नि शीत के बाहुवलय में,अर्पण अपनें को कर पाता      

समय ठहर उस  क्षण,है जाता         

विक्रम


गुरुवार, 12 अप्रैल 2012

क्या इन्हें भूलने का ,मन करता होगा.......



सुनो
तन्हाई में
,अधरों पर अधर की छुवन
गर्म सासों की तपन

और एक दीर्ध आलिगन का एहसास
होता तो होगा
बीता कल कभी कभी
चंचल भौरे की तरह
मन की कली पर मडराता तो होगा
किसी न किसी शाम
डूबते सूरज को देख
मचलती कलाइयो को छुडा कर

दबे पाँव
घर की चौखट पर आना ,याद तो आता होगा
मुझे तो भुला दोगी
पर सच कहना
क्या
इन्हें भूलने का ,मन करता होगा


विक्रम[पुन:प्रकाशित]

रविवार, 8 अप्रैल 2012

अन्ना के सम्बन्ध पर लिखे मेरे लेख पर........




अन्ना जी के सम्बन्ध में नवभारत के मेरे ब्लॉग में अन्ना समर्थको की कुछ टिप्पणियों आई हैं,

 मेरी समझ में नही आता की अन्ना समर्थको को हो क्या गया है ,जल्द ही आपा खो बैठते हैं,लगता है जैसे सारी ईमानदारी बस अन्ना व उनके समर्थको के पास ही रह गयी है ,बाक़ी सब चोर हैं. उन सभी टिप्पड़ियों व मेरे द्वारा दिए जवाब प्रकाशित कर रहा हूँ , जरा एक नजर आप भी डालने का कष्ट करेगें





विक्रम7

अन्ना निश्चय कर लें, वह क्या चाहते हैं!

विक्रम सिंह   Sunday April 08, 2012
अन्ना को यह समझना चाहिए,की देश की जनता भ्रष्टाचार से परेशान है,और अन्ना नें उसका लाभ लेकर  दिशाहीन आन्दोलन व  सस्ती लोकप्रियता हासिल करनें का प्रयास किया , अन्ना  कहते हैं,अगले लोकसभा चुनाव में जनता को जागृत करेगें युवाओं  को चुनाव लड़ाएँगे ,किसी पार्टी का नाम नही लेगें,साथ ही काग्रेस के खिलाफ बातें करतें है.लोकपाल लोकसभा में वह अपनी शर्तो पर पास कराना चाहते है,सरकार का अंग न होते सरकार को अपनें इशारे पर चलाना चाहते हैं. क्या यह तानाशाही का प्रतीक नहीं है.
अन्ना को यह गलतफहमी हैं की देश की जनता उनके साथ है. उनके समर्थन में कितनें लोग सामनें आये ,इस एक अरब आबादी वाले देश में वह खुद अंदाजा लगा लें?अगर मीडिया अन्ना को इतना प्रचारित न करे तो पचास आदमी भी न आयें. शुरू में लोगो में आशा का संचार हुआ था,पर विवेकहीन तर्कों रोज तथ्य हीन बयानों नें जनता के बीच अन्ना की कलई खोल कर रख दी हैं. गांधीवादी विचारधारा का खुला दुरप्रयोग गाधीवादी बन कर अन्ना नें ही किया है. प्रचार के लिये लालाइत लोगो की भीड़ में उन्हें अपनें लिये देश की जनता का समर्थन दिख रहा है,अगर देश की जनता को जागृत करनें में अन्ना टीम कामयाब होती तो अभी तक सारे भ्रटाचारी जेल में होते,सरकार सत्ता से बाहर ,साथ ही  सत्ता ईमानदार  लोगो  के हाथो में. यह तब होता जब अन्ना  जंतर-मंतर में बैठने की बजाय ईमानदारी के साथ जनता के बीच जाकर सीधा संवाद स्थापित करते.
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vijay का कहना है:
April 15,2012 at 10:47 AM IST
लेख से भी बेहतरीन जवाब,ऐसे जवाब जो पढने वाले के मन मे आप के लिये इज्जत् के भाव पैदा कर दे,व आप की योग्यता का मुरीद हो जये.विरजु जी ने सही कहा समाज मे कभी भी जीनियस की पहचान उसके रहते नही की,कवि भी आप बेहतरीन हो,एक एक रचनाएँ संकलन के योग्य . ओर इस बुद्धजीवी समाज मे उसका कोई मूल्य नही''वह सुनयना थी'' कविता मुझे रुला गई,उसे किसी ने नही पढा,न ही कमेंट्स दिये
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nanditta का कहना है:
April 15,2012 at 10:27 AM IST
सटीक लेख ,व जवाब भीविरोध करने को ऐसा दिया कि लाजवाब कर दिया ,शुभकामनाये
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sharad on nbt का कहना है:
April 14,2012 at 11:35 AM IST
@ बिरजू साहब, बेहतर होगा कि आप मेरे बी जे पी प्रेम की अपनी बातो के समर्थन मे मेरे कॉमेंट्स के कुछ लिंक्स सामने रख कर मेरे मूह पर फेक कर मारिए ताकि आपकी बातो के दावो की सच्चाई सबके सामने आ सके और बाकी पाठक भी मेरी असलियत से रु-ब-रु हो सके ...बहरहाल अपने कॉमेंट का एक लिंक आपके सामने रख रहा हू शायद दिमाग़ मे कुछ आ जाए (वैसे निजी तौर पर मुझे इसकी उम्मीद बिल्कुल भी नही है :))
http://readerblogs.navbharattimes.indiatimes.com/total-change/entry/%E0%A4%B2-%E0%A4%B2%E0%A4%95-%E0%A4%B7-%E0%A4%A3-%E0%A4%86%E0%A4%A1%E0%A4%B5-%E0%A4%A3-%E0%A4%86-%E0%A4%A0-%E0%A4%B5-%E0%A4%86%E0%A4%B6-%E0%A4%9A%E0%A4%B0-%E0%A4%AF
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(sharad on nbt को जवाब )- विक्रम सिंह का कहना है:
April 14,2012 at 06:22 PM IST
आप दोनें से मेरा अनुरोध है कि यह वार्तालाप यहीं समाप्त कर दे. विचार अभिव्यक्ति के दौरान निजी कटुता का जन्म नहीं होना चाहिये.मेरे लेख को ज्यादा टिप्पणियां तो मिल जायेगी, ब्लॉग भी शायद हिट हो जाये,पर मुझे दुखित न करें .की लेख लिख कर गलत किया?
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(sharad on nbt को जवाब )- Biraju का कहना है:
April 15,2012 at 11:02 PM IST
इसी को तथाकथित तटस्थ होना कहते है ...सिर्फ़ दिखावे के लिए कभी बी जे पी के भी विरोध मे बोल दिया...ताकि यू ना लगे की बी जे पी के कार्यकर्ता है...बाकी सबको पता है...है तो आप बी जे पी.....
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MENU का कहना है:
April 11,2012 at 10:44 PM IST
विक्रम जी आप पर किये गये सवाल पर आपका सन्तोष जनक उत्तर पढ कर खुशी हुई ! इतना जवाब देने के बावजूद भी आप अपने बारे मे लगता है कि बहुत कुछ छिपा रहे हो या आपको अपने ऊपर भरोसा नही है आप अपने बारे मे मुझे फोन पर जानकारी देना चाहते हो अगर नही बताना चाहते तो मत बताओ मेरा कोई इन्टेस्ट नही है ! आप किसी को अपने जवाब मे लिखते हो कि अन्ना के प्रथम अनशन के पहले आपके दिनेश शमाँ ने आपको बुलाया था आपने ही उनको माला पहना कर अनशन सफल होने का आपने आशीवाँद भी दिया होगा आपने शमॉ जी से अन्ना अनशन क्यों कर रहे है जानकारी नही की थी उनके समथॅक को अपना समथॅन देकर अनशन की शुरूवात करवायी थी !
जवाब दें
(MENU को जवाब )- विक्रम सिंह का कहना है:
April 12,2012 at 08:56 AM IST
10 अप्रैल 2012 10:59 am
ब्लॉगर dheerendra ने कहा…
विक्रम जी,...मैंने आपके लेख को अच्छी तरह से पढ़ा और सभी टिप्पणियों को जबाब सवाल पढे,पढकर इस निष्कर्ष में पहुचा,कि आपके आलेख को लोग ठीक तरह से नही समझ सके,उसमे सोनियाजी और कांग्रेस कहाँ से आ गई,अन्ना जी ने शुरू में गांधीगीरी के नक्से कदम पर जो शुरुआत की
वह तारीफे काबिल था,किन्तु जैसे२ अन्ना जी के साथ "मुह में राम बगल में छूरी"स्वभाव वाले लोग जुड़ते चले गए,तबसे उनके मिशन में ठहराव सा दिखने लगा,उसका उदाहरण दिल्ली के अनसन में लाखों लोग शामिल हुए थे,वही बाद के मुंबई के अनशन २० हजार लोग भी नही जुड पाए,एक ताजा उदाहरण,लोकपाल बिल पर मुलायम सिंह ने सदन में खुले आम विरोध किया था,अन्नाजी ने लोकपाल के विरोधियों को वोट न देने की अपील की थी,इसके वावजूद मुलायम सिग की सरकार पुर्ण बहुमत से बन गई
इसी तरह से उतरांचल भाजपा ने अन्ना जी के मुताबिक़ बिल पास कर दिया,तो वहाँ भाजापा की
सरकार बदलकर कांग्रेस की सरकार बन गई,..
इससे साफ़ जाहिर होता है,कि अन्ना की बातों को लोगों ने तरहीज देना कम कर दिया है,..
जहां तक मेरा मानना है,भ्रष्टाचार कभी समाप्त नही हो सकता,जबतक आम आदमी नही बदलेगा,
अन्ना जी को चाहिए,अपनी बात आम आदमी तक पहुचाए,उनकी मानसिकता बदले,क़ानून बन जाने से भ्रष्टाचार समाप्त हो जाएगा,अगर ऐसा होता तो,हत्या,बलात्कार,चोरी,डकैती,न होती,..
भ्रस्टाचार समाप्त करना है तो समर्पित भाव से हम आप सभी को संकल्प लेना होगा,..नही तो अन्ना जी अनशन करते रहेगें,माध्यम वर्ग के भ्रष्टाचारी लोग अनशन की भीड़ बढाते रहेगें,...
11 अप्रैल 2012 12:01 pm
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(MENU को जवाब )- विक्रम सिंह का कहना है:
April 12,2012 at 08:57 AM IST
माननीय, धन्यवाद,मैने अपना फोन नबर इस लिए दिया था की अभी तक काग्रेस में रह कर आपके मुताबिक़ क्यों झक मारी,उसकी जानकारी दे दूँ .अब इस ब्लॉग के माध्यम अपनें बारे में क्यां बताऊँ/ .हां इतना जरूर बता दूँ की अपने अभी तक के जीवन में गलत का साथ पारिवारिक ,सामाजिक,राजनैतिक स्तर पर नहीं दिया. छुपानें जैसी कोई बात नहीं है, २५ वर्ष की उम्र में पारिवारिक जिम्मेदारी का निर्वाहन करते हुय्र ५८ वर्ष की उम्र पार कर ली है. अपनें इसी स्वभाव की वजह से जहाँ लोगो का सहयोग आज भी मिल रहा है,वही कुछ खोना भी पड़ा है,मगर मलाल नहीं है, राजनीत में रहते हुये,अन्य दलों के लोगो से मेरे अच्छे संबंध है,बैचारिक असमति को कभी व्यक्तिगत लड़ाई में नही बदला. उदाहण स्वरूप सोन नदी जल प्रदूषण के विरोध में काग्रेस की सरकार रहते हुये धरनें में बैठा ,तो तत्कालिक मुख्य मंत्री दिग्विजय सिह ने जहाँ बुलाकर चर्चा की,वही भा.ज,पा.के तत्कालीन प्रदेश अध्यक्ष नंदकुमार साय जी नें खुद धरना स्थल में पहुच कर मेरा धरना तुड़वाया. जिले की सभी राजनैतिक दलों के लोगो ,तथा मीडिया ने साथ दिया .दस हजार से ज्यादा लोगो ने प्रशासन को पत्र लिख कर अपना समर्थन दिया,रही अन्ना के समर्थन की बात ,आन्दोलन की शुरवाती दिनों में उनके विरोध में था ही कौऩ ,यह मै आप से पूछता हूँ .मेरे ब्लॉग में एक टिपण्णी आई है उसे प्रस्तुत कर रहा हूँ,शायद आप उससे कुछ अर्थ निकाल सके,
जवाब दें

OMKAR SHUKLA का कहना है:
April 11,2012 at 06:52 AM IST
१- अन्ना बिरोधी देश का हितैषी कभी नही हो सकता ! २- अन्ना विरौधी देश व देश वासियौ का सबसे बडा दुश्मन ! ३- अन्ना विरोधी देश का सबसे बडा गद्दार ! ४- अन्ना बिरोधी देश का नही काग्रेस की नाजायज औलाद !
५- अन्ना बिरोधी देश का सबसे बडा भॄस्टाचारी !
६- अन्ना बिरोधी अपनी मॉ और बी बी को एक नजर से देख सकता है !
७- अन्ना बिरोधी को इस देश का अन्न जल खाना पीना गो मॉस के बराबर है !
८- अन्ना बिरोधी ही आज तक नही जान पाये कि अन्ना चाहते क्या उनका मकसद क्या है !
९- अन्ना को भृस्टाचारी कभी नही समझ पायेगा !
१०-अन्ना निस्वाथँ भाव से देश की सेवा करने वाला एक सच्चा देश भक्त !
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(OMKAR SHUKLA को जवाब )- विक्रम सिंह का कहना है:
April 11,2012 at 01:41 PM IST
अपनी अपनी सोच है,अपनी भाषा को सुधार लो इससे आप के साथ साथ अन्ना जी को भी लाभ मिलेगा. हो सकता है यही आदत पड़ी रही नेट से हट कर सड़क में खड़े होकर बोले तो घर का रास्ता भी भूल जावोगे.
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(विक्रम सिंह को जवाब )- Biraju का कहना है:
April 13,2012 at 08:40 AM IST
ये भाषा क्या इनका चल चलन भी एसा है...असल मे इनको अन्ना से कुछ लेना देना नही...ये अन्ना की तरफ़दारी सिर्फ़ इसलिए कर रहे कोयंकि अन्ना बी जे पी का काम कर रहा है...तो कट्टर हिंदूवादी बी जे पी के लोग अन्ना को सिर पर बेता रहे है...बी जे पी को खुद पता है की अपने बाल बूते पर तो वी सरकार बनाने से रहे...तो वी रामदेव, अन्ना जेसे भाड़े के टट्टु लता है...ये पार्टी शुरू से यही काम कर रही है...और ये बात जनता को पता चले तो अन्ना हो की रामदेव कही आता पता नही चला...कल शाम को ही बेजान दरूवाला ने भविसयवाणी की ही की रामदेव और अन्ना मे दम नही....
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(Biraju को जवाब )- विक्रम सिंह का कहना है:
April 13,2012 at 02:01 PM IST
धन्यवाद ,बिरजू जी ,वैचारक मदभेदो का यह अर्थ नहीं की हम अपने लेख के लेखन में या विचार व्यक्त करते वक्त शब्दों की मर्यादा भूल जाये.जिस बौद्धिक अस्तर का प्रदर्शन व भाषा का प्रयोग टिप्पणियों में देखने को मिला उससे दुःख हुआ,. इनमे से कुछ युवा भी होगे,खुद और देश को कौन सी दिशा में में ले जायेगे ? आपसी सहमति से ही समस्या का समाधान निकल सकता है,आक्रोश में आकर या दूसरो को सुने व समझे बगैर अपनी ही बात में अड़े रहे ,तो वास्तविक विषय ,से भटक जायेगें. जिन देशो में आक्रोश में आकर सत्ता परिवर्तन हुये,जब की वहां के सत्ताधारियों ने ही ऐसे हालत पैदा किये थे,की उसके अलावा दूसरे विकल्प बचे ही नहीं थे, आज वे भी व्यवस्था को पटरी में लाने में मुश्किलों का सामना कर रहे हैं . हमारे हालत इतने बदतर नहीं हुये हैं,की हम अपनी समस्याओ को सुलझा नहीं सकते,जरूरत है, आपसी सामंजस्य की. चीन में सरकार व समाज ने आपसी तालमेल से विकास के नये आयाम कायम कर अपनी आर्थिक ,व सैन्य शक्ति को काफी मजबूत कर लिया है,हमें उससे सीख लेने की आवश्यकता है,सरकार व समाज एक दूसरे के अंग है.अगर सरकार में समाज की सोच प्रतिविम्बित न हो,तो वह सरकार,शासन चलाने के योग्य नहीं है,साथ ही समाज को ऎसी सरकार को चुनने की भूल स्वीकार कर ,पुनरावृति से बचना होगा,आन्दोलन के कारणों को सरकार को गंभीरता से समझाना होगा, और आन्दोलन कारियों को भी संबैधानिक दायरे में रह कर अपनी बात कहानी चाहिये ..

sharad on nbt का कहना है:
April 11,2012 at 01:08 AM IST
विक्रम साहब, आपकी बात को मान कर आपके ब्लॉग्पोस्ट को काफ़ी गंभीरता के साथ पढ़ने के बाद मेरा अपना निष्कर्ष ये है कि "आप एक काफ़ी बेहतरीन कवि है और आपकी काफ़ी कविताए बहुत बढ़िया है".... इस एक बात को छोड़ दिया जाए तो आपके ब्लॉग्पोस्ट पर मुझे कुछ भी ऐसा नही लगा जिससे प्रभावित हुआ जाए
-->26.12.2008 की शुरुआत से आज तक आपसे सिर्फ़ 64 लोग ही जुड़े (कुछ चेहरे तो परिवार, पहचान वालो के भी होंगे) ?? आपकी नज़रो मे ये बहुत बड़ी संख्या होगी मेरे लिए नही ...सड़क के किनारे मदारी भी डुगडुगी बजा कर सेकड़ो की भीड़ कुछ मिंटो मे इकट्ठी कर लेता है आप तीन साल से ज़यादा समय मे (चार साल अभी भी नही हुए है) भी वाहा तक नही पहुँच पाए
-->आपको विषयो पर ब्लॉग लिखते नही पाया जहा पाठक कुछ डिस्कसन करते लगे हो
-->कुछ मौको पर आप अपने परिजनो (जीजाजी,भतीजो) के बारे मे अपडेट देते दिखे , अब इसमे ब्लॉग जैसा क्या था मुझको समझ नही आया
मेरा इरादा ठेस पहुँचाने का नही है पर बात को उसी रूप मे कहने की आदत के चलते अगर मेरे शब्दो से कष्ट हुआ हो तो माफी चाहता हू ...धन्यवाद
जवाब दें
(sharad on nbt को जवाब )- विक्रम सिंह का कहना है:
April 11,2012 at 03:07 PM IST
धन्यवाद ,एक निवेदन है आप से ब्लॉग लेखन का उपयोग मै अपनी भावनाओं को व्यक्त करनें के लिये करता हूं, न बिना वजह ज्यादा टिपण्णी करता हूँ न आशा ही रखता हू. साथ ही इन ६४ लोगो में मात्र एक व्यक्ति मेरे परिचित तथा रिश्तेदार है. वाकी लोगो से कभी मिला भी नहीं,बस ब्लॉग के जरिये ही एक दूसरे को जानते है. मदारी की तरह भीड़ लगानें की इच्छा भी नही हैं . राजनीत से जुड़ा रहा हू ,बहुत भीड़ देखने व भीड़ जोडनें वालों को देखनें व समझनें का अवसर मिला है, कावि भी नही हूँ ,बस कभी कोई विचार मन में आया लिख दिया,साहित्यकार जैसी योग्यता नहीं है मेरे पास, मेरे किसी जवाब या लेख से ठेस पहुची हो तो क्षमा चाहता हूँ.
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(sharad on nbt को जवाब )- Biraju का कहना है:
April 13,2012 at 08:48 AM IST
शरद जी भीड़ तो हमेशा मूर्खो की पीछे चलती है...देखा नही अन्ना के पीछे कितनी बड़ी भीड़ थी...मानव जाती का इतिहास बताता है की प्रतिभावान, बुधीजीवी तो हमेशा ही अकेलए पद गये...वो चाहे नीत्से हो, जुंग हो, वांगॉग हो...हा इन के जाने के बाद ज़रूर भेद ने उन्हे सम्मान दिया....हमने कभी किसी जीनियस को जीते जी सम्मान नही दिया...आप ब्लॉग पर भीड़ की बात कर रहे है...एसी स्तंभ मे एक से एक गंदे, भद्दे और पूर्वाग्रहो से भेरे ब्लॉग हिट हो रहे है....गाँधी को गली दो और हिट हो...एक सज्जन यही कर रहे...उनकी आप बड़ी तारीफ करते है....कहते है ना मखी....मे विक्रम जी के यथार्थ से भरे ब्लॉग की तारीफ करता हू....हा आपको तो ये विक्रम जी पर गुस्सा आएगा ही...उन्होने आपके अन्ना की पॉल जो खोल डी...यदि विक्रम जी ने लिखा होता की अन्ना महान, रामदेव महान, मोदी महान, बी जे पी महान...तो आपकी बाँछे खिल जाती....तो आप उन्हे महान ब्लॉगेर मानते...पहले ये तो बताओ आपके अन्न आजकल है कहा? बी जे पी के कार्यकर्ता शिविर मे?
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(Biraju को जवाब )- sharad on nbt का कहना है:
April 13,2012 at 06:18 PM IST
बिरजू जी आमतौर पर मुझे बिचौलिए पसंद नही आते और मेरा यकीन सामने वाले से सीधे-2 बातचीत मे कही ज़यादा रहता है, विक्रम जी और मेरे बीच सीधी और स्पष्ट बातचीत हो चुकी है और अगर उनको कोई संशय होता तो वे खुद लिखते ...रही बात कि मुझे कौन से ब्लॉग्स पसंद करने चाहिए तो फिलहाल उसके लिए आज की तारीख मे मुझे आपके मशवरे की ज़रूरत नही है , भविष्य मे कभी इस बारे मे निर्णय लेने मे समस्या होगी तो सबसे पहले आपके अनुभव से ही मदद ली जाएगी ... रही बात नेता और भीड़ पर आके कॉमेंट की तो जनाब मेरे और विक्रम जी की बातचीत को एक बार फिर "ठंडे दिमाग़ से" पढ़ लीजिए शायद कुछ...:))
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(sharad on nbt को जवाब )- Biraju का कहना है:
April 13,2012 at 09:12 PM IST
ओह ये आप बोले रहे है की बीचोलिए पसंद नही जीतन आप चारो तरफ आधी9 रोटी पर दाल लेते फिरते है और जीतने बड़े आप भीचौलिए है उतना तो शायद और कोई नही....जब जवाब नही बनता तो कुतर्क जीतने आप करते है उतना कोई क्या करेगा....आप सिर्फ़ और सिर्फ़ बी जे पी के अंध बकट है...यदि एसा नही होता तो गाँधी को गली देने पर कम से कम एक बार तो आप ज़ुबान खोलते....आपको मशविरा...अरे मशविरा तो उसे दिया जाता है जो तोड़ा भी समझदार हो....कहते है ना भेस के आयेज बिन बजाना....
(Biraju को जवाब )- विक्रम सिंह का कहना है:
April 14,2012 at 06:35 PM IST
बिरजू जी, इस लेख को लिखनें के बाद मेरे बारे में क्या क्या नहीं कहा गया,आप व विजय जी के अलावा सभी ने प्रश्न खड़े किये,जो मुझसे बना उत्तर दिया, अब आपसे अनुरोध है की आरोप प्रत्तारोप का यह सिलसिला रोक दें .सच -सच ही रहेगा,

Pawan का कहना है:
April 10,2012 at 11:04 PM IST
आपका धैर्य और मर्यादित व्यवहार एक उत्कृष्ट उदाहरण लगा यहाँ!!
अन्ना जी का मकसद मुझे सही लगता है, तरीकों पर थोड़ी बहुत मुश्किल है. पर जो कर रहे हैं, अगर मैं उनका साथ नहीं दे सकता, तो अभी उनके खिलाफ भी बोलने से बचता रहता हूँ.
थोड़े दिन पहले की ही बात है, उत्तर प्रदेश से एक न्यूज़ आई थी. ये न्यूज़ समाज कल्याण विभाग का भ्रष्टाचार उछगार करने वाले एक जुझारू ईमानदार अफ़सर रिंकू सिंह राही के बारे मे थी.
सरकार द्वारा जारी करोड़ो की छात्रवृत्ति को, जो दलित-पिछड़े समुदाय के छात्रों के लिए आई थी, को प्राइवेट कॉलेज हजम कर रहे थे और साथ मे चात्रो से भी फीस ले रहे थे. समाज कल्याण विभाग इसमे शामिल था. आज के अख़बार मे भी खबर है की 700 करोड़ का घोटाला हुआ.
जब रिंकू सिंह राही ने इसके खिलाफ जानकारी जुटानी चाही तो विभाग के भ्रष्ट लोगों और कॉलेज माफिया ने मिलकर उनमे छः गोलिया उतार दी, जिंदगी मौत से लड़ते हुए भी उन्होने भ्रष्टाचार के खिलाफ अनशन किया.
लेकिन कमाल है, भ्रष्टाचार के खिलाफ अपपनी जिंदगी सही मे दाँव पर लगाने वाले के साथ मुट्ठी भर ही लोग आए? अन्ना जी की टीम और उनके समर्थकों का समर्थन रिंकू सिंह जैसे जाँबाज को क्यों नहीं मिला? मीडिया ने उनके साथ वो सब क्यो नहीं किया जो अन्ना जी के साथ करती है?
बात जब दलित पिछड़े समाज के लुटते पैसे की थी, तो क्यों नहीं वही जज़्बा दिखाई दिया? अगर अन्ना का जोश और रिंकू की जाँबाज़ी मिल जाते तो क्या आंदोलन मजबूतनहीँ होता?
कुछ दिन पहले केजरीवाल जे0एन0यू0 गये, वहाँ उनसे कमजोर वर्गो पर उनकी राय पूछी गया, लेकिन दुर्भाग्य वश वो वहाँ से बच निकले, पर जवाब देना उचित नहीं समझा.
ये कुछ बातें हैं जो हमारे मन मे पीड़ा पैदा करती हैं, चिंता पैदा करती हैं की क्या सही मे अन्ना जी जो कर रहे हैं, उससे भ्रष्टाचार ख़त्म होगा या उसके बहाने देश को किसी अन्य व्यवस्था की और धकेलने का प्रयास तो नहीं किया जा रहा, जहाँ संविधान की भी न चले? वैसे कमजोर वर्गो के पास संविधान द्वारा दिए गये अधिकारों (कोई स्पेशल अधिकार नहीं, बल्कि इंसान होने का अधिकार) के अलावा है ही क्या?
पर मैं इतना स्वार्थी भी नहीं, जब तक अन्ना टीम अपनी राय स्पष्ट नहीं बता देती और हर समाज के हितो को ध्यान मे रखकर कार्य करती है, मैं इनका समर्थन करता रहूँगा,
जवाब दें
(Pawan को जवाब )- विक्रम सिंह का कहना है:
April 11,2012 at 03:20 PM IST
धन्यवाद, सही कहा आपनें, देश की राजनैतिक , सामाजिक व्यवस्था दिन ब दिन बिगड़ती जा रही है,यही हालत रहे तो जीना दूभर हो जायेगा, मै भी आप बात से सहमत हू की ''जब तक अन्ना टीम अपनी राय स्पष्ट नहीं बता देती और हर समाज के हितो को ध्यान मे रखकर कार्य करती है, मैं इनका समर्थन करता रहूँगा,''
जवाब दें

vijay का कहना है:
April 10,2012 at 03:52 PM IST
सहीलेख,व टिप्पणियों का उचित जवाब भी,यह ज़रूरी नही कि जिससे आप सहमत नहीं तो अशब्दों का प्रयोग करें,आप की जगह दूसरा होता लेख ही हटा लेता,पर आप डटे रहे,ओर सभी को शालीनता के साथ जवाब भी दे रहें है.
जवाब दें
(vijay को जवाब )- विक्रम सिंह का कहना है:
April 10,2012 at 04:05 PM IST
बहुत बहुत धन्यवाद.
जवाब दें
(vijay को जवाब )- विक्रम सिंह का कहना है:
April 10,2012 at 09:37 PM IST
लगता है की अन्ना जी खुद भ्रष्ट काग्रेसियों से मिले हुये हैं,तभी भ्रटाचार जैसे गंभीर मुद्दे को लोकपाल से विवादपाल का रूप दे दिया है, जिससे अगला चुनाव आते आते लोग इस विषय से ऊब कर चर्चा करना ही छोड़ दे ,जैसा राम जन्म भूमि बाबरी मस्जिद विवाद में हुआ.आज लोग इस विषय में चर्चा करना पसंद नही करते. .
जवाब दें

shekhar का कहना है:
April 10,2012 at 10:02 AM IST
आप लेखक ही है...??????.. सिवाय अन्ना, रामदेव, मोदी, RSS,BJP की बुराई के अलावा क्या लिखा है आज तक ...??..सुभाष चंद्रा बोज़, भगत सिंह,चंद्र शेखर आज़ाद आदि देश भकतों की कातिल , देश के बटवारें की ज़िम्मेदार , हिंदू सिखों में बैर पैदा करने वाली कांग्रेस (विदेशी) की आलोचना सुनने पर क्यों रोष आ जाता है आपको ???...क्योंकि आप लेखक नही हैं...
जवाब दें
(shekhar को जवाब )- विक्रम सिंह का कहना है:
April 10,2012 at 11:40 AM IST
भाई ,माफ करना, मै कोई लेखक नही हूँ, न आप जैसा बुद्धिमान ,हाँ यह जानकर मुझे भी आज ही मालुम पड़ा की मै सिर्फ आप द्वारा उल्लेखित लोगो के सम्बन्ध में लिखता हूँ?साथ ही काग्रेस [आपके मुताबिक़ विदेशी] की आलोचना सुननें में मुझे रोष आता है,?हां आप जरूर रोष में लग रहे हैं. चलिए आज मालुम पड़ा की कागेस विदेशी है,और हमारी देश की जनता नें सबसे ज्यादा उसी को सत्तासीन किया,फिर विदेशी ताकत के रहते आजादी के क्यां माइनें,फिर तो भ्रष्टाचार ,महगाई का रोना इन विदेशियों से रोनें का कोई फायदा नही, चलिये,और अपनी सिविल सोसायटी से भी कहियें,आजादी की नयी जंग का ऐलान करें''विदेशी भगाओ देश आजाद कराओ''. साथ ही गाधी जी का राग अलापना अन्ना जी छोड़े क्यों की इन कथिक [आप के मुताबिक़] विदेशियों को सत्ता में वही बिठला के गए थे.
जवाब दें
(shekhar को जवाब )- Biraju का कहना है:
April 13,2012 at 08:54 AM IST
शेखर जी आपने उन ब्लॉगर्स के लिए भी कुछ कमेंट्स डत्ये है जो रात दिन गाँधी, नेहरू को पानी पी पी कर गलिया दे रहे है, कुछ चड्डी छाप लोग हर तरफ गली गलोच करते फिर रहे है? नही ना....आपकी चाहते है की सभी ब्लॉगेर्स एक ही काम करे कांग्रेस को बदनाम...आप बी जे पी के अंधे हो सकते है लेकिन सब नही....बी जे पी भी कोई धुध की धूलि नही...अन्न और रामदेव तो बी जे पी के कार्यकारता है...आपको बुरा यही लगते है की आपकी बी जे पी के लोगो की पॉल खुल रही है...है ना?
जवाब दें

shekhar का कहना है:
April 09,2012 at 06:15 PM IST
आप दिखावे के लिए कांग्रेस से अलग हुए है...ताकि लोगों को लगे आप कोई निष्पक्ष लेखक हो....आप कांग्रेस के मीडिया एजेंट हो....अन्ना..रामदेव ओर कांग्रेस के विरोधी को नीचा साबित करते हैं आपके लेख...
जवाब दें
(shekhar को जवाब )- विक्रम सिंह का कहना है:
April 09,2012 at 09:22 PM IST
भाई साहब , चलिये मै भी आप की बात से सहमत हो जाता हूँ?...अगर मै काग्रेस का एजेंट हू तो आप अन्ना ,बाबा रामदेव में से किसके एजेट हैं. चर्चा में समझ व शालीनता बनाये रहें . यही बेहतर होगा .या फिर किसी मनोचिकत्सक से सलाह ले,
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Satish Upadhyay का कहना है:
April 08,2012 at 11:40 PM IST
जब आप ने दिमाग़ मे बिठा ही लिया है की अन्ना ग़लत हैं तो आप को उनकी हर बात ग़लत ही लगेगी....और रही बात गाँधीवादी की , तो शायद आपने सुना नही की आंनद हिवाजी के भी कट्टर समर्थक हैं, उन्होने एक एक सार्थक पर्यास किया है और आम अददमी को करप्षन के खिलाफ जगाया है, और 121 करोड़ आबादी वाले देश को जहाँ हर व्यक्ति अपना मज़हब देखता है, अपनी जाती, धरम, परिवार देखता है, उसे आप ही जगा दीजिए, अन्ना कोशिश तो कर रहे हैं
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(Satish Upadhyay को जवाब )- विक्रम सिंह का कहना है:
April 09,2012 at 12:25 AM IST
विकास के साथ भ्रटाचार हर देश की समस्या रही है,हम भी उसी दौर से गुजर रहे है, वर्त्तमान व्यवस्था के प्रति सभी के मन में आक्रोश है और बदलाव की इच्छा भी, अन्ना के संबंध में मेने जो विचार व्यक्त किये,वह आन्दोलन में आये भटकाव के कारण,शायद मै गलत भी हो सकता हूँ.जंतर-मंतर छोड़ कर जिस दिन विनोबा भावे की तरह जन-जन के पास पहुच जायेगें, परिवर्तन भी आ जायेगा.
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विक्रम का कहना है:
April 08,2012 at 11:01 PM IST
आप सभी का बहुत बहुत धन्यवाद .
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(विक्रम को जवाब )- sharad on nbt का कहना है:
April 08,2012 at 11:24 PM IST
ब्लॉगर --> विक्रम सिंह
इस ब्लॉग से पहले "अपना ब्लॉग" मे कुल ब्लॉग --> 14
14 ब्लॉग्स मे कुल मिले कॉमेंट्स --> मात्र तीन (सिर्फ़ तीन)
अकेले 15 वे ब्लॉग (अन्ना निश्चय कर लें, वह क्या चाहते हैं!) मे "अब तक" मिले कॉमेंट्स -->19
<< ब्लॉगर का मिशन पब्लिसिटी पूरा हुआ...चलो छुट्टी की घंटी बज गयी है>> :))
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(sharad on nbt को जवाब )- Biraju का कहना है:
April 13,2012 at 09:01 AM IST
शरद जी एक कोई साहब है जो रात दिन गाँधी और नेहरू को गलिया दे रहे है...उनके ब्लॉगा पर हर बार सो दो सो कमेंट्स आते है तब तो आप नही कहते की पूबलीसटी पूरी हुई....तब तो आप तालिया बजाते है....आपको एसी तकलीफ़ क्यो होती है यदि कोई बी जे पी के खिलफ बोले? तब आपके तर्क कहा जाते है जब कोई कांग्रेस को, राजीव गाँधी को, सोनिया ज्नाधी को, महात्मा गाँधी को, नेहरू जी को गलाया देते है...एक सज्जन तो एसी काम मे लगे है उनके ब्लॉग्स तो आप बड़ी तारीफ से समर्थन करते है....अब कोई गाँधी की पॉल खोलेगा तो कोई अन्ना की...और गाँधी की तुलना मे अन्ना तो जोकर भर है...आप गाँधी को गली पच जाते है...अन्ना जेसे मूर्ख के किलफ लिखी एक बात से एसए उछाल क्यो पड़ते है? लो मे भी कहता हू अन्ना...हो की रामदेव...सब के सब बी जे पी, आर एस एस के प्यादे है....और ये बात पूरा देश जाना गया है....
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(sharad on nbt को जवाब )- विक्रम सिंह का कहना है:
April 09,2012 at 12:05 AM IST
कॉमेंट्स की आशा में ?.....सही कहाँ आपने ,चार साल से ब्लॉग लेखन में हूँ, कष्ट करके http//vikram7-vikram7.blogspot.com का अवलोकन कर लें,शायद विचारधारा में परिवर्तन आ जाये. अपनी भड़ास निकाल ली ,मन हल्का हो गया मेरे दोस्त....[vikram7] जरूर देखिएगा ,मुझे प्रचारित होनें का अवसर मिल जाएगा .धन्यवाद
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sharad o nbt का कहना है:
April 08,2012 at 09:02 PM IST
एक और ....पब्लिसिटी का भूखा ब्लॉगर ...रातो रात हिट होने का सस्ता (चीप) और टिकाओ हथियार (अन्ना) चलाते हुए ...-->> .या ..आ..आ..आ निंग (मूह खोल कर बड़ी उबासी)
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(sharad o nbt को जवाब )- Biraju का कहना है:
April 13,2012 at 01:42 PM IST
वो विजय कुमार सिंह आपको क्या लगता है जो गाँधी को मूर्खात्मामा कहता है, नेहरू को मूर्ख कहता है....वो कहे का भूखा है....विक्रम जी ने अन्ना के लिए कोई अपशब्द नही बोले है....ये तो चड्डी मे से निकलते है....गली और चड्डी का चौली दामन का साथ है....शरद जी कभी अपने बी जे पी की आँधी आँखो को खोल कर सच को देखना सीखेए...बड़े बुधीजीवी बनाने का ढोंग करते फिरते हो....विक्रम जी की मज़ाक बनाने से पहले अपना क्लाला चेहरा आईने मे देकला लो...चड्डी तो जाग जाहिर है ही
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(sharad o nbt को जवाब )- विक्रम सिंह का कहना है:
April 08,2012 at 10:12 PM IST
वाह काफी प्रबुध्द अन्ना समर्थक हैं आप ,आप की इस सोच देख कर मुझे अन्ना से कोई शिकायत नहीं रह गई, ऐसे समर्थको से घिरा व्यक्ति कर भी क्या सकता है.
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shekhar का कहना है:
April 08,2012 at 05:14 PM IST
आप का लेख निष्पक्ष नही है......आपका लेख पूर्ण रूप से अन्ना विरोधी है...आपने उनके निस्वार्थ ओर ईमानदारी भरे जीवन को नीचा दिखाने की कोशिश की है... पहले कांग्रेस भी यह कर के देख चुकी है...सारा जीवन की जाँच करा ली कुछ हासिल नही हुआ...मनहूस तिवारी को माफी माँगनी पड़ी....अगर मीडिया आपको प्रचारित कर भी दे तो भी आप अन्ना के जैसे क्रांति का आगाज़ नही करा सकते......अन्ना में दम था इसलिए उनको जेल में 1 घंटा भी नही रख सकी कांग्रेस.....इतने घोटालों के बाद भी बेशर्म बन के राज कर रहें है यह काले अंग्रेज...ओर क्या कहूँ...विनती है...मान नही तो अपमान मत करो एक इमानदर ओर देशभक्त बुजुर्ग का...
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(shekhar को जवाब )- विक्रम सिंह का कहना है:
April 08,2012 at 09:08 PM IST
अन्ना की शूरवात सही थी,बाद में जो बदलाव आया, उसनें आंदोलन को दिशा हीन बना दिया,सरकार देश की जनता चुनती है,समाज बदल दो सरकार बदल जाएगी . लेख का अर्थ समझो,आपा खोनें से कुछ नही होने वल.दम हो तो हर व्यक्ति भ्रष्टाचार को दूर कर सकता है,रही मेरी बात, मै जहाँ हूँ,भ्रष्टाचारी नाम से दूर भागते है,बिना मीडिया के सपोर्ट के.
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(विक्रम सिंह को जवाब )- shekhar का कहना है:
April 09,2012 at 02:32 PM IST
आप के अंदर इतना समर्थ्या है....तो अन्ना के सामने जा कर खड़े हो जायो ओर कहो......में ख़त्म करूँगा भ्रष्टचार....बोल्ग पर किसी की कमी निकलना कोई हिम्मत का काम नही है....आप दुबारा कांग्रेस में शामिल हो जायो...अन्ना को गाली देने वालो के साथ है कांग्रेस.....शायद यह लेख भी इसीलिये लिखा है.....
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(shekhar को जवाब )- विक्रम सिंह का कहना है:
April 09,2012 at 09:21 PM IST
आप अन्ना समर्थको की सबसे बड़ी कमजोरी यही है की अन्ना के सम्बन्ध में किसी नें मनमाफिक नही बोला तो आप उसके साथ अमर्यादित भाषा का प्रयोग करनें लगते हैं,एक सलाह है एलान करा दे अन्ना के खिलाफ बोले तो ख़ैर नही,हिटलर शाही नही लोकशाही है जनाब,अपनी बात मर्यादित ढंग से कहनें की आजादी,किसी का मुह बंद करके आप सफलता अर्जित नही कर सकते,जंतर मंतर में भी ऐसे ही मुहावरों का प्रयोग हुआ था ,सारे देश में भर्सना हुयी थी,अगर आप अन्ना के विचारों से जुड़े है मेरे सामर्थ की जगह खुद जाकर अन्ना को सहयोग दे, एक विचारवान त्यागी सहयोगी मिल जायेगा,वैसे भी आप मुझे वापस काग्रेस में जाने की सलाह दे चुके हैं,उस पर भी विचार करना हैं?
(shekhar को जवाब )- vikram singh का कहना है:
April 08,2012 at 06:36 PM IST
अन्ना की शूरवात सही थी,बाद में जो बदलाव आया, उसनें आंदोलन को दिशा हीन बना दिया,सरकार देश की जनता चुनती है,समाज बदल दो सरकार बदल जाएगी . लेख का अर्थ समझो,आपा खोनें से कुछ नही होने वल.दम हो तो हर व्यक्ति भ्रष्टाचार को दूर कर सकता है,रही मेरी बात, मै जहाँ हूँ,भ्रष्टाचारी नाम से दूर भागते है,बिना मीडिया के सपोर्ट के.
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rabindrasingh का कहना है:
April 08,2012 at 04:11 PM IST
बिकरम राजनितक्ररतेहैकागग्रेसकाद्‍लालहै
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(rabindrasingh को जवाब )- विक्रम सिंह का कहना है:
April 08,2012 at 08:20 PM IST
भाई साहब ,चोरो को सरे नजर आते हैं चोर .जरा ईमानदारी से सोचना कभी सरकार से टैक्स की चोरी नही की ,व्लेड भी लाये तो दूकानदार से बिल लिया . अरबो चुराने वाले तो कभी कभी जेल जाते है पर यह चोर ...चोरी तो चोरी है,हम जहाँ है जिस हाल में हैं ईमानदारी से अपनें कर्तव्य का निर्वहन करें,सारी समस्याओ का निदान हो जाये. यह कहना छोड़ दें, की चोर कौऩ है,यह कहनें की आदत डाले की आओ चोरी करना छोड़ दें. मेरा अन्ना से नहीं अन्ना व् अन्ना टीम की दोहरी मानसिकता से विरोध है ,अगर काग्रेस चोर है तो अन्य राजनैतिक दल...अन्ना उनका विरोध क्यों नही करते, मे अपनी बात पर कायम हूँ, की अन्ना टीम ईमानदारी से इस विषय पर पहल करती,लोग टीवी,समाचार से बाहर निकल कर एक दिन के लिये सड़को पर आ गये होते तो देश में आजादी के बाद सबसे बड़ा बदलाव हमारी व्यवस्था में आ गया होता . जरूरत है एक ईमानदार पहल की और उसी ईमानदारी से लोगो के साथ देनें की .
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viren parashar का कहना है:
April 08,2012 at 03:05 PM IST
एक इमानदर नेता पैदा हो गया है, जो देश का भला करने का कसम लिया है, आप महाशय को भ्रास्तचार और सरकार के खिलाफ बोलना सस्ती लोकप्रियत है तो तो नज़र घूमाओ कितने करोड़ लोग मिलेंगे, और सरकार(कॉंग्रेस) की चापलूसी करना खानदानी परंपरा है कुछ लोगो की उनमे आप भी शामिल हो गये.
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(viren parashar को जवाब )- vikram singh का कहना है:
April 08,2012 at 05:16 PM IST
सच वर्दाश्त करने की आदत डालिए,काग्रेस को ख़ूब गाली दे लो,आज़ादी उसी ने दिलाई,लगता इस देश में अन्ना से पहले इमानदार नही हुए?न ही आप व अन्ना जैसे देश भक्त, गाँधी वादी बता कर थप्पड़ फाँसी का समर्थन करते है,आप बिना समझे आमर्यादित जवाब,बहुत ही सही दिशा में ले जाएगें देश को
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(vikram singh को जवाब )- viren parashar का कहना है:
April 09,2012 at 11:30 AM IST
कॉंग्रेस और आज़ादी? दोहरी जिंदगी जीने की आदत पद गयी है आपको, और सच की आदत आप डालिए क्यूंकी कॉंग्रेस ने आज़ादी नही दिलाई अपितु देश भक्तो को सज़ा दिलवाई और आज भी यही कर रही है, और जब तक आप जैसे कॉंग्रेसी चापलुस रहेंगे देश को गुलाम होने मे ज़्यादा टाइम नही लगेगा, अभी तो सिर्फ़ घोटाले ही हो रहे है, आगे देखते रहो,
जवाब दें
(viren parashar को जवाब )- विक्रम सिंह का कहना है:
April 09,2012 at 01:32 PM IST
तुम अन्ना समर्थक ही जानकार हो ,जरा अपनें गिरेवान में झांक कर देखो. अरे मैनें अपने विचार व्यक्त कियें हैं . किस किस का मुह अपनी गलत भाषा से बंद करोगे, जावाब इसी भाषा में मै भी दे सकता हूँ,अगर अन्ना के विचारों में विश्वास है तो वह कर के दिखाओ,या कागजी शेर ही बनें रहोगे, काग्रेस से इतनी तकलीफ है तथा जनता तुम्हारे साथ है ,तो इंतज़ार किस बात का है,उतार फेको सरकार से,दूसरो को गालियाँ बकनें से ज्यादा कर भी क्या सकते हो .
(vikram singh को जवाब )- viren parashar का कहना है:
April 09,2012 at 11:30 AM IST
कॉंग्रेस और आज़ादी? दोहरी जिंदगी जीने की आदत पद गयी है आपको, और सच की आदत आप डालिए क्यूंकी कॉंग्रेस ने आज़ादी नही दिलाई अपितु देश भक्तो को सज़ा दिलवाई और आज भी यही कर रही है, और जब तक आप जैसे कॉंग्रेसी चापलुस रहेंगे देश को गुलाम होने मे ज़्यादा टाइम नही लगेगा, अभी तो सिर्फ़ घोटाले ही हो रहे है, आगे देखते रहो,
जवाब दें
(viren parashar को जवाब )- विक्रम सिंह का कहना है:
April 09,2012 at 01:32 PM IST
तुम अन्ना समर्थक ही जानकार हो ,जरा अपनें गिरेवान में झांक कर देखो. अरे मैनें अपने विचार व्यक्त कियें हैं . किस किस का मुह अपनी गलत भाषा से बंद करोगे, जावाब इसी भाषा में मै भी दे सकता हूँ,अगर अन्ना के विचारों में विश्वास है तो वह कर के दिखाओ,या कागजी शेर ही बनें रहोगे, काग्रेस से इतनी तकलीफ है तथा जनता तुम्हारे साथ है ,तो इंतज़ार किस बात का है,उतार फेको सरकार से,दूसरो को गालियाँ बकनें से ज्यादा कर भी क्या सकते हो .
(vikram singh को जवाब )- Saurabh Srivastava का कहना है:
April 08,2012 at 07:54 PM IST
लगता है की लेखक महोदय का इतिहास कमज़ोर रहा है या इन्होने कुछ अलग तरह की इतिहास की किताबें पढ़ी है जो हम जैसे साधारण लोगों के लिए उप्लबध नहीं थी. ये किताबें सिर्फ़ कांग्रेस के चाटुकारों के लिए ही उप्लबध थी. तभी इन्हे लगता है की कांग्रेस और कॉंग्रेस्सी ना होते तो देश आज़ाद ही ना होता. इन्होने बचपन से लेकर आज तक सिर्फ़ यही पढ़ा है की देश को सिर्फ़ कॉंग्रेसियों ने ही देश को आज़ाद कराया. सुभाष चंद्रा बोस, भगत सिंह, चंद्रशेखर आज़ाद का तो नाम भी नहीं सुना है लेखक महोदय पहले आप निश्चय कर ले की आप क्या चाहते हैं कांग्रेस की चाटुकारिता या अन्ना की बुराई.
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(Saurabh Srivastava को जवाब )- विक्रम सिंह का कहना है:
April 08,2012 at 09:06 PM IST
इतिहास ज्यादा आप जानते है यह तो मै समझ गया ,जिस गाधीं जी का नाम अन्ना लेते है वह शायद काग्रेस से नही थे तभी तो थप्पड़ ,फांसी का समर्थन करते हैं आप जैसे समर्थक ,बिरोधियो क्र लिये अशब्दो का प्रयोग, अगर मै काग्रेस की चाटुकारिता कर रहा हूँ तो आप क्या अन्ना की चाटुकारिता नही कर रहे, अगर मै यह कहूँ की अन्ना ख़ुद भ्रष्टाचारी काग्रेसियों से मिल कर एक सही मुद्दे को विवाद का स्वरूप दे दिया ,जिससे इस समस्या का सही समाधान ही न हो पाये.और हुआ भी यही ,शरद यादव पर सवाल खड़े कर संसद पर सवाल उठा सभी को अपना विरोधी बना लिया ,इसका लाभ काग्रेस को ही मिल रहा है,इस विषय में क्यां कहेगें.
(विक्रम सिंह को जवाब )- Saurabh Srivastava का कहना है:
April 08,2012 at 09:39 PM IST
लेखक महोदय कम-से-कम मेरे कॉमेंट को प्रकाशित कर देते. उस के बाद मेरे कॉमेंट पर आप अपनी टिप्पणी देते तो अच्छा लगता. मेरे कॉमेंट को ब्लॉक करने के बाद टिप्पणी कर के आप ने दिखा दिया की आप कॉंग्रेस्सियों के सच्चे समर्थक हैं.
(Saurabh Srivastava को जवाब )- विक्रम सिंह का कहना है:
April 08,2012 at 10:03 PM IST
मुझे इसकी जानकारी नहीं थी,साथ ही आपको जानकारी दे दूँ, मै इसी मुद्दे पर काग्रेस से स्तीफा दे चुका हूँ, हाँ काग्रेस के प्रति आप का आक्रोश देख कर हसी जरूर आती है, विचारों का आदान प्रदान,समर्थन ,विरोध जनतंत्र में नागरिक अधिकारों का मुख्य आधार होता है,और सही प्रयोग प्रबुध्द नागरिक की पहचान
(Saurabh Srivastava को जवाब )- Biraju का कहना है:
April 13,2012 at 09:05 AM IST
कोई ज़रा भी अन्ना, रामदेव, मोदी के खिलाफ लिखे या उनकी हाकाईकट को जनता के सामने लयाए तो तत्काल उसे कांग्रेस को चाटुकार बना दिया जाता है...तो फिर वी सारे लोग जो र्राट दिन गाँधी को इसे स्तम्बे मे गलियाया दे रहा वी बी जे पी के चाटुकार हुए ना....चाटुकार सौरभ...आप भी रात दिन बी जे पी की सेवा मे लगे हो...चाटुकरषिरोमणि...

jay का कहना है:
April 08,2012 at 02:04 PM IST
अरे दोस्त तुम भी? इतनी जल्दी नतीजा निकल लिया अन्ना के बारे में? ये कोई आइपील् का मैच है क्या जो तुरत फुरत नतीजा मिलेगा. खुद सोचो , साल दो साल पहले तुम अन्ना को जानते तक थे क्या और आज क्यों यहा इन पर ब्लॉग लिख रहे हो? मतलब कुछ तो फ़र्क हुआ है ना.
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rajeev jha का कहना है:
April 08,2012 at 01:32 PM IST
जबतक पूरे देश की जनता जागृत नही होगी, तब तक कठिन तो दिखता है, लेकिन अन्ना का प्रयास सही है/
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shekhar का कहना है:
April 08,2012 at 01:07 PM IST
विक्रम जी ..आपने देश के लिए क्या किया है अब तक...???.....अन्ना कुछ तो अच्छा कर रहें है....बिना किसी कुर्सी के....उनका सारा जीवन आदर्श जीवन रहा है...कुछ सीखो.....फिर ज़ुबान खोला...
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(shekhar को जवाब )- विक्रम7 का कहना है:
April 08,2012 at 02:45 PM IST
सवाल करने से पहले ज़रा खुद सोचे किसी नें कुछ किया नही ,तो देश कैसे चल रहा है,वीसगतियाँ हर व्यवस्था में होती है,आप ज़ैसे लोग अंध भक्ति तो कर सकते है,समस्या का समाधान नहि.पहले मेरे लेख को समझते ,तब प्रश्न उठाते ,
जवाब दें
(विक्रम7 को जवाब )- RAJU का कहना है:
April 11,2012 at 09:49 AM IST
जवाब देने से पहले आपने क्या सोचा ११० साल पुरानी काग्रेस ने देश को क्या दिया सिवाय दंगा भॄस्टाचार आतकवाद और महँगाई के और अपने नेताओ को अरबो रूपया बिदेशो मे जमा करने की सीख ! आप बता सकते हो सोनिया गौधी के पास आय का क्या साधन है ये अगर इनके पास न० १ की रकम है तो इनकम टैक्स मे जमा की गई रकम क्यों छिपा रही है !
देश कैसे चल रहा है क्या ये भृस्ट सरकार देश चला रही है यह सरकार बनने से अब तक केवल अपनी सरकार बचाने मे ही लगी है यह सरकार केवल गठबन्धन की राजनीति करती है (इसको भारत माता के प्रबन्धन की राजनीति का ज्ञान ही नही है) इसी को सरकार चलाना कह रहे हो ! सरकार के युवराज उ०प्र० चुनाव से पहले यहॉ की सरकारौ से २० साल का हिसाब बडे जोर शोर से मॉग रहे थे अब ४० साल का हिसाब देने की बारी आयी तो कहॉ छिपकर बैठ गये किस मुह से हिसाब मॉग रहे थे ! अपनी गाड गिफ्टेड सीट से भी एक बिधायक नही जिता पाये !
काग्रेस व भॄस्ट सरकार की वकालत करने से पहले चुल्लू भर पानी लेकर उसी मे डूब मरो ! इस काग्रेस ने तारीफ करने लायक काम पिछले ६४ सालो मे नही किया है इसके दल मे जुडने से पहले १०० बार सोचो इस दल मे केवल दल-दल बचा है दुबारा जाने की चेष्टा न करै ! अन्ध भक्ति तो आप दशाँने मे लगे हो आप जो भी लिखो सोच समझ कर लिखो जिसका कोई काट नहो !
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(RAJU को जवाब )- विक्रम सिंह का कहना है:
April 11,2012 at 01:31 PM IST
काफी समझातार लगे,मेरे लेख में अन्ना जी के विषय में लिखा गया है ,आप को काग्रेस ,और सोनिया कहाँ से नजर आ गई .?गर किसी से किसी के विचार नही मिलते तो आप अशब्दो में उतर आयेगें,जिस भाषा का प्रयोग टिप्पणी में किया है,उससे अपनी किस सोच का प्रदर्शन कर रहे हो ,देश भक्ति का सारा ठेका केवल तुम्हारे पास है. अन्ना के प्रथम आन्दोलन में काग्रेस में रहते हुये,जब मेरे जिले के पूर्व जिला पंचायत अध्यक्ष दिनेश शर्मा जी अनशन में बैठे,व मुझे फोन करके आनें का आग्रह किया ,मै गया ,मेरे ही हाथों से तिलक लगवा कर अनशन मै बैठे ,तथा मैने भी उन्हें पूरा समर्थन दिया ,अन्ना के अनशन से लगा जैसे पूरा देश अन्ना के साथ हो, बाद में व्यक्तिगत बयानबाजी के चलते आन्दोलन का राजनैतिक करण हो गया .और उससे जो विचार मेरे मन में आये लिख दिया. मुझे आशा थी, कि अन्ना के इस आन्दोलन में जन-जन की सहभागिता होगी अन्ना भी गाधी जी की तरह पूरे देश का भ्रमण कर समाज को जाग्रत करेगें, समाजजिक परिवर्तन ही राजनैतिक परिवर्तन का आधार बनेगा .पर सारा अन्दोलन कागेस के विरोध व जन्तर -मंतर में धरनें तक में सिमट कर रह गया. जहाँ गैर कागेसी सरकारे है क्या वहां लोग भ्रटाचार से पीड़ित नहीं है?हमारे देश की स्थानीय निकाय, पंचायत ,नगरपालिका में ईमानदार लोग ही देश की जनता चुन कर बिठला दे केंद्र, राज्य में कितनी ही भ्रष्ट सरकारें हो आधे से जादा भ्रटाचार दूर हो जायेगा. जिस चुल्लू भर पानी की बात करते हो जरा अपनी आखो में देखना क्या वहां पानी बचा है.?
(विक्रम7 को जवाब )- MENU का कहना है:
April 11,2012 at 06:19 AM IST
विक्रम सिह ज़ी आपका ब्लाक पढा आपका चाल चरित्र चेहरा सामने नजर आरहा है ! आपने खु:द कहा कि आपने काग्रेस छोड दी है और कितने दिन काग्रेस मे आपने झख मारी आपने नही बताया आप वहॉ किस मुकाम पर थे आपने ये भी नही बताया काग्रेस मुखिया के घर पर चौका बतँन करने वाले तो मुख्य मंत्री तक बन गये और करीब-करीब लोग ऊचे-ऊचे पदो पदासीन है आपकी गिनती वहॉ पर किस ऋँणी मे थी ! पढ कर दु:ख कि जिन काग्रेसियौ ने आपकी औकात अपने यहॉ झाडू लगाने वाले से भी कम समझी होगी तब आप उसे छोडने के लिये मजबूर हो गये ! और छोडने के बाद भी आप पछता रहे हो अब वापस काग्रेस मे जाने का कोई सीधा तरीका आपको नजर न आने की स्थित मे सबसे सरल तरीका आपकी समझ मे आया क्यों न अन्ना को बदनाम करके काग्रेस पाटीँ हासिल कर लिया जाय ! क्यों कि बहुत पुरानी कहावत है कि चोर चोरी छोडने के बाद हेराफेरी नही छोडता है यह आप पर लागू है आप काग्रेस का मोह छोड नही पा रहे हो इसी लिए आपको यह एहशास तक नही हो पा रहा है कि अन्ना क्या चाहते है ! आपका दुबारा काग्रेस मे जाना वह आपका निजी फैसला होगा उससे अन्ना का क्या लेना देना ! आप अन्ना बिरोधी हो यह भी आपकी मजीँ क्या आपने अन्ना से व्यकितगत तौर पर यह जानने की कोशिष की कि आप क्या चाहते हो !
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(MENU को जवाब )- विक्रम सिंह का कहना है:
April 11,2012 at 02:26 PM IST
काग्रेस मैने वैचारिक मतभेद के कारण छोड़ी है, न मेरा यह लेख उसके समर्थन में है ,सारी टिप्पणियों में एक बात महसूस की है की समर्थको के दिमाग यह बात बैठ गई है की अन्ना विरोधी कागेस का ही होगा, मै भी राजनीत से जुड़ा हूँ , काग्रेस के अन्दर ही काफी लोग है,जो आज भी अन्ना के समर्थक है,मध्य प्रदेश कागेस के प्रदेश सचिव हरीश अरोड़ा नें दिग्विजय के अन्ना विरोधी वयान से खफा होकर स्तीफा दे दिया था , पर उन्हें बाहर नहीं निकाला गया और आज भी अपनें पद पर है, रही मेरी बात तो इसके जरिये क्या जानकारी दूँ, मेरा पता भी ब्लॉग में है,जानकारी ले ले,सुविधा के लिये फोन नंबर दे रहा हूँ मिस काल करदीजियेगा ,जानकारी दे दूगा ,कहेगें तो आकर आप से मिल भी लूगा. ०९९९३४०९०३३, साथ ही आपका बड़प्पन तभी कायम रहेगा जब दूसरो के लिये भी सही भाषा का इस्तेमाल करोगे ,सलाह है अन्यथा नहीं लेगे. आपनें लिखा है की ''आपका दुबारा काग्रेस मे जाना वह आपका निजी फैसला होगा उससे अन्ना का क्या लेना देना '' सही कहा और भला मै पूछूगा ही क्यूँ,!टिप्पणियों में ही किसी ने दुबारा जाने की बात कही थी जवाब में मैने भी कहा था आपके सुझाव में विचार करूगा .आपने लिखा ''आप अन्ना बिरोधी हो यह भी आपकी मजीँ क्या आपने अन्ना से व्यकितगत तौर पर यह जानने की कोशिष की कि आप क्या चाहते हो '' अन्ना जी से कभी मिला नही ,मिला और बात करने का वक्त दिया तो जरूर पूछूगा ,मिलनें बात करनें के बाद मेरी धारणा में बदलाव आया तथा यह लगा की उनके सम्बन्ध मेरी राय गलत थी तो ,इसी तरह लेख लिख कर तथा समाचार पत्रों के माध्यम से सार्वजनिक रूप से गलती भी स्वीकार करूगां .
(MENU को जवाब )- विक्रम का कहना है:
April 11,2012 at 04:30 PM IST
हाँ आप को यह बताना भूल गया,कि आज भी मेरा स्तीफा मंजूर नही हुआ है,अत:अन्ना के संबंध में लिख कर वापस जानें का प्रश्न ही नही उठता,किसी के बारे राय कायम करने से पहले जानकारी हासिल करे. अन्ना जी के बारे में लिखने से पहले उनके आंदोलन कथन का अध्यन करने के बाद लिखा,ओर उसका उत्तर देने को भी तैयार हूँ. उनके साथ जो शब्दो की मर्यादा जानते है.

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