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बुधवार, 26 सितंबर 2012

तिमिर बहुत गहरा होता है........

तिमिर बहुत गहरा होता है

रात
चाँद जब नभ मे खोता
तारों  की  झुरुमुट मे सोता

मेरी  भी  बाहों  मे  कोई ,अनजाना  सा  भय  होता  है


 तिमिर बहुत गहरा होता है

यादों के जब दीप जलाता

उतना ही है तम गहराता

 छुप  गोदी  मे, मॆ सो जाता ,शून्य  नही  देखो  आता है

 तिमिर बहुत गहरा होता है

कही नीद की मदिरा  पाता
पी उसको हर आश भुलाता

रक्त नयन की जल धारा को, जग कैसे कविता कहता है


 तिमिर बहुत गहरा होता है
 
विक्रम
[पुन:प्रकाशित]

6 टिप्‍पणियां:

  1. रक्त नयन की जल धारा को, जग कैसे कविता कहता है...bahut bahut sundar panktiya..sir..vastav mein samjhna mushkil hai mann ki peeda par to kabhi kabhi wah wah bhi mil jati hai...

    जवाब देंहटाएं
  2. रक्त नयन की जल धारा को, जग कैसे कविता कहता है
    सुंदर ...
    आपके ब्लॉग पर बहुत सारी कवितायेँ पढ़ी मैंने
    वाकई बहुत भावपूर्ण लगी, लगता है बार बार आना पड़ेगा !
    आभार मेरे ब्लॉग पर आने का !

    जवाब देंहटाएं
  3. कल की थी टिप्पणी दिखाई नहीं दे रही है !

    जवाब देंहटाएं
  4. यादों के जब दीप जलाता , तम उतना ही गहराता !
    बढ़िया !

    जवाब देंहटाएं