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सोमवार, 16 जनवरी 2012

महाशून्य से व्याह रचायें......


महाशून्य से व्याह रचायें

क्रिया- कर्म से  ऊपर  उठ  कर
अहम् और त्वम् यहीं छोड़कर
 

 काल प्रबल के सबल द्वार को ,तोड़ नये आयाम बनायें

महाशून्य से व्याह रचायें

स्वाहा और स्वास्ति में अंतर
भ्रमित रहा मन यहाँ निरंतर

माया से विभ्रांत चेतना,को अवचेतन पथ पर लायें

महाशून्य से व्याह रचायें

निर्गुण और सगुण मिल जायें
दिग्विहीन  हो  कर बह  जायें

दृगांचल अनंत हो जायें,जब प्रिय से भाँवरें रचायें

महाशून्य से व्याह रचायें

विक्रम

17 टिप्‍पणियां:

  1. क्रिया- कर्म से ऊपर उठ कर अहम् और त्वम् यहीं छोड़कर
    महाबली के सबल द्वार को ,तोड़ नये आयाम बनायें
    महाशून्य से व्याह रचायें..

    बढ़िया अभिव्यक्ति बहुत सुंदर पंक्तियाँ बेहतरीन रचना

    जवाब देंहटाएं
  2. सुन्दर और प्रेरक रचना | बहुत खूब |
    सादर |

    जवाब देंहटाएं
  3. स्वाहा और स्वास्ति में अंतर
    भ्रमित रहा मन यहाँ निरंतर ..

    सच है इस मृत्यु लोक में मन भ्रमित ही रहता है सदा ... स्वाहा का असली मकसद नहीं जान पाता ... प्रेरक रचना ...

    जवाब देंहटाएं
  4. महाशून्य से व्याह रचायें

    निर्गुण और सगुण मिल जायें
    दिग्विहीन हो कर बह जायें ... अद्वितीय भाव

    जवाब देंहटाएं
  5. झकझोरने में समर्थ.
    भावों से लबरेज़.

    जवाब देंहटाएं
  6. महाशुन्य ....

    आध्यात्मिकता से परिपूर्ण बेहतरीन कविता.

    जवाब देंहटाएं
  7. बहुत गहरे भाव झानापकी रचना में
    सुंदर रचना।

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  8. माया से विभ्रांत चेतना,को अवचेतन पथ पर लायें
    सुंदर!

    जवाब देंहटाएं
  9. आगामी शुक्रवार को चर्चा-मंच पर आपका स्वागत है
    आपकी यह रचना charchamanch.blogspot.com पर देखी जा सकेगी ।।

    स्वागत करते पञ्च जन, मंच परम उल्लास ।

    नए समर्थक जुट रहे, अथक अकथ अभ्यास ।



    अथक अकथ अभ्यास, प्रेम के लिंक सँजोए ।

    विकसित पुष्प पलाश, फाग का रंग भिगोए ।


    शास्त्रीय सानिध्य, पाइए नव अभ्यागत ।

    नियमित चर्चा होय, आपका स्वागत-स्वागत ।।

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  10. क्रिया- कर्म से ऊपर उठ कर
    अहम् और त्वम् यहीं छोड़कर

    काल प्रबल के सबल द्वार को ,तोड़ नये आयाम बनायें
    प्रेरक रचना

    जवाब देंहटाएं