क्यू तुम मंद-मंद हसती हों
मधु-बन की हों चंचल हिरणी
बन बैठी मेरी चित- हरणीकर तुम ये मृदु-हास , मेरे जीवन में कितने रंग भरती हों
क्यू तुम मंद-मंद ह्सती हों
तुम हों मैं हूँ स्थल निर्जन
बहक न जाये ये तापस मन
अपने नयनो की मदिरा से, सुध बुध क्यू मेरे हरती हो
क्यू तुम मंद मंद ह्सती हो
प्यार भरा हैं तेरा समर्पण
तुझको मेरा जीवन अर्पण
मेरे वक्षस्थल में सर रख क्याँ उर से बातें करती हों
क्यू तुम मंद मंद हसती हों
विक्रम
कितना प्यारा और संजीव वर्णन किया है आपने ...उस सुन्दरता का
जवाब देंहटाएंअनिल कान्त
मेरी कलम - मेरी अभिव्यक्ति