तिमिर बहुत गहरा होता है
रात चाद जब नभ मे खोता
तारो की झुरुमुट मे सोता
मेरी भी बाहो मे कोई,अनजाना सा भय होताहै
यादो के जब दीप जलाता
छुप गोदी मे मॆ सो जाता ,शून्य नही देखो आता है
कही नीद की मदिरा पाता
पी उसको हर आश भुलाता
रक्त नयन की जल धारा को, जग कैसे कविता कहता है
विक्रम
बहुत बढ़िया.
जवाब देंहटाएंअच्छी रचना...बधाई।
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