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शुक्रवार, 30 जनवरी 2009

ओ महाशून्य...............





ओ महाशून्य ओ महामौन

हे तन विहीन तू कहा लीन
ले मेरे जीवन गीत छीन

स्वर मेरे कर तू अभि-कुंठित,हो मौन बने ये दिग्विहीन

मेरा अकार कर निराकार
जाना मुझको हैं काल-द्वार


जीवन उत्सव उत्सर्ग हेतु, अभिमंत्रित कर तू मौन बीन

तू हर ले मुझसे प्राण-बीज
अंकुरित न कर दे कोई सीच


अब मुझे शून्य में सोने दे,चिर-निन्द्रा में हो के बिलीन

vikram

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