जिन्दगी
एक अर्ध विक्षिप्त-स्वप्न
या
फूल की कोमलता
पत्थर की कठोरता, के बीच का एक एहसास
कुछ भी हों
हम स्वतन्त्र हैं ,सोचने के लिये
इसके बारे में
जब तक जीते है
उसके बाद........?
हाँ
मैं भी जिंदा हूँ
मेरी भी सासें चल रहीं हैं
मैं बातें भी कर रहा हूँ
अपने जैसे जिंदा लोगों से
जिंदा होने का,जिन्दगी जीने का
इससे अच्छा एहसास
नहीं है मेरे पास
जिन्दगी ने छला है ,अभी तक सबको
पर मैं इसे छल रहा हूँ
यह खेलती है ,आँख मिचोली का खेल
यह छुप जाती है
लोग इसे पागलो की तरह ढूडते हैं
मैं भी खेल रह हूँ ,यही खेल
फर्क इतना हैं
मैं छुप जाता हूँ
ये मुझे ढूडती हैं
मैं खिलखिलाता हूँ, ये चिडचिडाती हैं
यह चाहती हैं
वह छुपे ,मैं ढूढूँ
पर ऐसा नहीं हों रहा
लेकिन मैं जानता हूँ,जीतेगी वह ही
मैं थक जाऊँगा
छिपते छिपते
तब वह छुप कर बैठ जायेगी
और मैं
इस खेल से थका,विश्राम की चाह में
उसे ढूढनें भी नहीं जाऊंगा
तब
हों जाएगा पूर्ण विराम
इस खेल का
शायद जिसकी अनुभूति, मुझे भी नहीं होगी
vikram
एक अर्ध विक्षिप्त-स्वप्न
या
फूल की कोमलता
पत्थर की कठोरता, के बीच का एक एहसास
कुछ भी हों
हम स्वतन्त्र हैं ,सोचने के लिये
इसके बारे में
जब तक जीते है
उसके बाद........?
हाँ
मैं भी जिंदा हूँ
मेरी भी सासें चल रहीं हैं
मैं बातें भी कर रहा हूँ
अपने जैसे जिंदा लोगों से
जिंदा होने का,जिन्दगी जीने का
इससे अच्छा एहसास
नहीं है मेरे पास
जिन्दगी ने छला है ,अभी तक सबको
पर मैं इसे छल रहा हूँ
यह खेलती है ,आँख मिचोली का खेल
यह छुप जाती है
लोग इसे पागलो की तरह ढूडते हैं
मैं भी खेल रह हूँ ,यही खेल
फर्क इतना हैं
मैं छुप जाता हूँ
ये मुझे ढूडती हैं
मैं खिलखिलाता हूँ, ये चिडचिडाती हैं
यह चाहती हैं
वह छुपे ,मैं ढूढूँ
पर ऐसा नहीं हों रहा
लेकिन मैं जानता हूँ,जीतेगी वह ही
मैं थक जाऊँगा
छिपते छिपते
तब वह छुप कर बैठ जायेगी
और मैं
इस खेल से थका,विश्राम की चाह में
उसे ढूढनें भी नहीं जाऊंगा
तब
हों जाएगा पूर्ण विराम
इस खेल का
शायद जिसकी अनुभूति, मुझे भी नहीं होगी
vikram
इस खेल से थका,विश्राम की चाह में
जवाब देंहटाएंउसे ढूढनें भी नहीं जाऊंगा
तब
====
गहन लुका-छिपी. वाह
लेकिन मैं जानता हूँ,जीतेगी वह ही
जवाब देंहटाएंमैं थक जाऊँगा
छिपते छिपते
तब वह छुप कर बैठ जायेगी
और मैं
इस खेल से थका,विश्राम की चाह में
उसे ढूढनें भी नहीं जाऊंगा
यही सच है जिन्दगी का बहुत सुन्दर रचना आभार्
खूबसूरत.
जवाब देंहटाएंजबरदस्त!
जवाब देंहटाएंलेकिन मैं जानता हूँ,जीतेगी वह ही
जवाब देंहटाएंमैं थक जाऊँगा
छिपते छिपते
तब वह छुप कर बैठ जायेगी
और मैं
इस खेल से थका,विश्राम की चाह में
उसे ढूढनें भी नहीं जाऊंगा
तब
हों जाएगा पूर्ण विराम
इस खेल का
शायद जिसकी अनुभूति, मुझे भी नहीं होगी
kitni gaharai ,kitani sachhai liye huye ,bahut khoobsurat .aap achchha likhate hai .
इस खेल से थका,विश्राम की चाह में
जवाब देंहटाएंउसे ढूढनें भी नहीं जाऊंगा
Jindagi sachmuch koi khel khelti hai sab ke saath...... par is luka chipi mein sab thak jaate hain.... lajawaab rachna hai
इस टिप्पणी को लेखक द्वारा हटा दिया गया है.
जवाब देंहटाएंलेकिन मैं जानता हूँ,जीतेगी वह ही
जवाब देंहटाएंमैं थक जाऊँगा
छिपते छिपते
तब वह छुप कर बैठ जायेगी
और मैं
इस खेल से थका,विश्राम की चाह में
उसे ढूढनें भी नहीं जाऊंगा
ज़िन्दगी के साथ लुका-छिपी ?
कुछ नया सा था...
अच्छी लगी आपकी रचना..
Mantramugdh sa kar diya.Shubkamnayen.
जवाब देंहटाएंलेकिन मैं जानता हूँ,जीतेगी वह ही
जवाब देंहटाएंमैं थक जाऊँगा
छिपते छिपते
तब वह छुप कर बैठ जायेगी
और मैं
इस खेल से थका,विश्राम की चाह में
उसे ढूढनें भी नहीं जाऊंगा
तब
हों जाएगा पूर्ण विराम
इस खेल का
शायद जिसकी अनुभूति, मुझे भी नहीं होगी
bahut umda khayalaat se nawaaza aapne is ke liye aap ka shukriya barabar likhte rahein... badhai ho...
aap ki is kavita ke sath pichhali bhi avitaeN padhi.....! achchha likhte haiN aap
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