सुनो
तन्हाई में
अधरों पर अधर की छुवन
गर्म सासों की तपन
और एक दीर्ध आलिगन का एहसास
होता तो होगा
बीता कल कभी कभी
चंचल भौरे की तरह
मन की कली पर मडराता तो होगा
किसी न किसी शाम
डूबते सूरज को देख
मचलती कलाइयो को छुडा कर
दबे पाँव
घर की चौखट पर आना याद तो आता होगा
मुझे तो भुला दोगी
पर सच कहना
क्या
इन्हें भूलने का ,मन करता होगा
विक्रम[पुन:प्रकाशित
भावुक भावाभिव्यक्ति...
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