उस दिन जब मै
कैंसर से पीड़ित
अपने पिता का
इलाज करने वाले कैंसर विशेषज्ञ
के बिलों को निपटाने में लगा था
मेरा बेटा
अपने साथियो के साथ
अपना सत्रहवां जन्मदिन
मन रहा था।
निराशा में डूबा हुआ मै
अपने बगीचे के पुराने पौधॉ को देखता रहा
जिनकी काट-छाँट जरूरी थी
नई कपोको और कलियों के लिए
मनु दाश
दाश जी की कविता उनकी किताब ''खैर अगली बार फिर आऊगी'' से।
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