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मंगलवार, 31 अगस्त 2010

इतने दिनों बाद.......

इतने दिनों बाद
अपनी खीची,अर्थहीन रेखा के पास
खड़ा हूँ
तुम्हारे सामाने

यादों के धुंध में
लहरा गयी है
बीते पलों की वह छाया
जब तुमने
रोका था मुझे
गुरु, सखा की भाँति
पर मै,महदाकांक्षा के वशीभूत
चला गया
कर अवहेलना
तुम्हारे आदेश की,याचना की
सर्व सिद्ध,गुणी की भाँति


याद है
अर्थहीन आकारों को
सार्थक करने के प्रयास में
रौद डाला
अपनी ही काया कों
वासना
ईर्ष्या
द्वेष के, पैरों तले
कर अपनी ही, करुणा से द्वन्द
जा लिपटा
इच्छाओं के सर्प-फण से


आज
जीवन समर में
हिम-तुषारों
पतझड़
तपिस
वर्षा से पराजित
अपनी ही प्रतिध्वनि से डरा
स्तब्ध
शब्दहीन
इस याचना के साथ
दंणवत हूँ
पा सकूं
फिर से
प्रेम
श्रद्धा
करुणा की नदी को
जो खो गयी है
मेरी इच्छाओं के रेत में

विक्रम

6 टिप्‍पणियां:

  1. अच्छी पंक्तिया है ....
    http://thodamuskurakardekho.blogspot.com

    जवाब देंहटाएं
  2. प्रभावी और संवेदनशील पंक्तियाँ.........
    सुंदर अभिव्यक्ति के लिए बधाई.....

    जवाब देंहटाएं
  3. Bahut hi sunder aur arthpurn kavay rachna.

    अपनी ही काया कों
    वासना
    ईर्ष्या
    द्वेष के, पैरों तले
    कर अपनी ही, करुणा से द्वन्द
    जा लिपटा
    इच्छाओं के सर्प-फण से


    Ye panktiyan shaayad sabhi par fit hoti hain.

    AAbhar.

    जवाब देंहटाएं
  4. कई चीज़े कई लोग जिनकी एक वक़्त हम अवहेलना करते है किसी दूसरे वक़्त में बेहद याद आते है...हर वक़्त का अपना एक सच होता है...

    जवाब देंहटाएं