
एक अर्ध विक्षिप्त-स्वप्न
या
फूल की कोमलता
पत्थर की कठोरता, के बीच का एक एहसास
कुछ भी हों
हम स्वतन्त्र हैं
सोचने के लिये,इसके बारे में
जब तक जीते है
उसके बाद........? हाँ मैं भी जिंदा हूँ
मेरी भी सासें चल रहीं हैं
मैं बातें भी कर रहा हूँ
अपने जैसे जिंदा लोगों से
जिंदा होने का,जिन्दगी जीने का
इससे अच्छा एहसास
नहीं है मेरे पास
जिन्दगी ने छला है ,अभी तक सबको
पर मैं इसे छल रहा हूँ
यह खेलती है ,आँख मिचोली का खेल
यह छुप जाती है
लोग इसे पागलो की तरह ढूडते हैं
मैं भी खेल रह हूँ ,यही खेल
फर्क इतना हैं
मैं छुप जाता हूँ
ये मुझे ढूडती हैं
मैं खिलखिलाता हूँ, ये चिडचिडाती हैं
यह चाहती हैं
वह छुपे ,मैं ढूढूँ
पर ऐसा नहीं हों रहा
लेकिन मैं जानता हूँ,जीतेगी वह ही
मैं थक जाऊँगाछिपते छिपते
तब वह छुप कर बैठ जायेगी
और मैं
इस खेल से थका,विश्राम की चाह में
उसे ढूढनें भी नहीं जाऊंगा
तब
हों जाएगा पूर्ण विराम
इस खेल का
शायद जिसकी अनुभूति, मुझे भी नहीं होगी
vikram [पुन:प्रकाशित]
और मैं
जवाब देंहटाएंइस खेल से थका,विश्राम की चाह में
उसे ढूढनें भी नहीं जाऊंगा
तब हों जाएगा पूर्ण विराम
इस खेल का
शायद जिसकी अनुभूति,
मुझे भी नहीं होगी...
भावपूर्ण अभिव्यक्ति,सुंदर पंक्तियाँ,बेहतरीन रचना .
ज़िन्दगी नाट्य-मंच की तरह है और हमारे अलग-अलग किरदार हैं !
जवाब देंहटाएंZindagi ki ankh micholi ko shabdon mein dhaal diya ... Yatharth ko aankhen khol ke dikha diya ... Lajawab ...
जवाब देंहटाएंजीवन के साथ कितना कौतुकपूर्ण रिश्ता है हमारा...!
जवाब देंहटाएंबेहद सुन्दर अभिव्यक्ति!
गहरे भाव....
जवाब देंहटाएंबेहतरीन अभिव्यक्ति।
बहुत ही खूबसूरत रचना, बधाई
जवाब देंहटाएं