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शुक्रवार, 12 अप्रैल 2013

मै किसको अब यहाँ बुलाऊँ,



मै किसको अब यहाँ बुलाऊँ
 टूटे तरू पातों के जैसा
मूक पड़ा मै अविचल कैसा


अपने ही हाथो से घायल,हो बैठा यह किसे बताऊँ


मै किसको अब यहाँ बुलाऊँ
 मेरे मौंन रुदन से होती
भंग निशा की यह नीरवता

सुन ताने प्रहरी उलूक के ,मै जी भर कर रो न पाऊँ


   मै किसको अब यहाँ बुलाऊँ  
मेरा कौन यह जो आये
आ मेरे दुःख को बहलाये

खुद अपना प्रदेश कर निर्जन,क्यू अपनो की आस लगाऊँ


मै किसको अब यहाँ बुलाऊँ

विक्रम,

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