साथी याद तुम्हारी आये
सिंदूरी संध्या जब आये
ले मुझको अतीत में जाये
रुक सूनी राहों में तेरा ,वह बतियाना भुला न पाये
साथी याद तुम्हारी आये
मधुमय थी कितनी वो राते
मॄदुल बहुत थी तेरी बाते
अंक भरा था तुमने मुझको,फैलाकर नि:सीम भुजायें
साथी याद तुम्हारी आये
प्राची में ऊषा जब आये
जानें क्यूँ मुझको न भाये
बिछुड़े हम ऐसे ही पल में,नयना थे अपने भर आये
साथी याद तुम्हारी आये
विक्रम
प्राची में ऊषा जब आये
जवाब देंहटाएंजानें क्यूँ मुझको न भाये
बिछुड़े हम ऐसे ही पल में,नयना थे अपने भर आये........Bahut sundar...bahut khoob Vikram Ji.......
मधुमय थी कितनी वो राते
जवाब देंहटाएंमॄदुल बहुत थी तेरी बाते
अंक भरा था तुमने मुझको,फैलाकर नि:सीम भुजायें
साथी याद तुम्हारी आये,,,,
वाह !!! बहुत सुंदर सृजन लाजबाब प्रस्तुति,,,बधाई विक्रम जी,
RECENT POST : सुलझाया नही जाता.
मधुमय थी कितनी वो राते
जवाब देंहटाएंमॄदुल बहुत थी तेरी बाते
अंक भरा था तुमने मुझको,फैलाकर नि:सीम भुजायें
साथी याद तुम्हारी आये
प्राची में ऊषा जब आये
जानें क्यूँ मुझको न भाये
बिछुड़े हम ऐसे ही पल में,नयना थे अपने भर आये
साथी याद तुम्हारी आये
प्रेमभाव से ओतप्रोत बहुत सुन्दर रचना
atest post नए मेहमान
बहुत ही सुंदर सार्थक और प्रस्तुती, आभार विक्रम जी।
जवाब देंहटाएंयादों के झरोखे तो अक्सर खुलते हैं ... ले जाते हैं माझी में जहान से लौटने का मन नहीं होता ... सुन्दर भाव ...
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