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शनिवार, 2 अगस्त 2025

ॐ नमो नादरूप

प्रस्तावना

,ॐ नमो नादरूपाय विश्वस्य मूलकारणाय।

यद् विश्वं स्वरेन संनादति, यद् सृष्टिः मायया कम्पति, तद् नादरूपं ब्रह्मैव सनातनं समाश्रितम्। अहम्,, विनम्रहृदयेन एतद् नादस्तोत्रं विश्वस्य समक्षं समर्पयामि। एषा रचना नादस्य सनातनं स्वरूपं, प्रणवस्य (ॐ) गहनतां, वैदिकदर्शनस्य मूलं च संनादति। मम उद्देश्यः केवलं विश्वस्य स्वरात्मकं सौन्दर्यं, प्रकृतिपुरुषयोः संनादं, मायया सृष्टेः कम्पनं च शब्दरूपेण संनादितुं यत्नः। एतद् काव्यं वेदानां, उपनिषदां, आध्यात्मिकचिन्तनस्य च संनादति यद् विश्वं नादेन संनादति। श्लोकाः संस्कृतभाषायाः सौम्यतां, साहित्यस्य गाम्भीर्यं च संनादति। यथा नादः शून्यात् संजातः, तथा एषा रचना हृदयात् संनादति। अहं विनम्रतापूर्वकं पाठकानां समक्षं समर्पयामि, यद् एषा रचना विश्वस्य स्वरं हृदये संनादति।  


 प्रस्तावना


ॐ नमो नादरूप को, जो विश्व का मूल कारण है।

जिस स्वर से विश्व गूंजता है, जिस माया से सृष्टि कम्पित होती है, वह नादरूप ब्रह्म ही सनातन है। मैं, ,विनम्र हृदय से यह नादस्तोत्र विश्व के समक्ष समर्पित करता हूँ। इस रचना का उद्देश्य नाद के सनातन स्वरूप, प्रणव (ॐ) की गहनता, और वैदिक दर्शन के मूल को प्रकट करना है। मेरा प्रयास केवल विश्व के स्वरात्मक सौंदर्य, प्रकृति-पुरुष के संनाद, और माया से सृष्टि के कम्पन को शब्दों में गूंजायमान करने का है। यह काव्य वेदों, उपनिषदों, और आध्यात्मिक चिंतन के स्वर को गूंजायमान करता है। श्लोक संस्कृत भाषा की सौम्यता और साहित्य की गंभीरता को प्रकट करते हैं। जैसे नाद शून्य से प्रकट होता है, वैसे ही यह रचना मेरे हृदय से गूंजती है। मैं विनम्रतापूर्वक इसे पाठकों के समक्ष समर्पित करता हूँ, ताकि यह विश्व के स्वर को उनके हृदय में गूंजायमान करे।   


श्लोक 1संस्कृत:

मौनं तवैव संनादति सृष्टेः स्वरमुदाहरति,

नभः प्रभया विश्वं सनातनं संनादति सदा।

मायया सृष्टिकंपनः पृथ्वी शोभति सर्वथा,

ब्रह्म त्वमेव नादरूपं विश्वं स्वरेन संनादति॥


हिंदी अनुवाद: हे नाद, तेरा मौन सृष्टि का प्रथम स्वर रचता है, आकाश की प्रभा से सनातन विश्व सदा गूंजायमान है। माया के सूक्ष्म कंपन से पृथ्वी सर्वथा शोभायमान है। तू ही ब्रह्म है, नादरूप, जो विश्व को स्वर की लय में गूंजायमान करता है।


श्लोक 2संस्कृत:


अग्निः तव स्वरे प्रदीपति तत्वं शोभति पंचधा,

आपः संनादति त्वया विश्वस्य मूलं स्वरात्मकम्।

वायुस्तवैव गीतं च समीरं स्वरति सर्वदा,

नादः त्वमेव प्रकृतौ पंचमहां स्वरनादकः॥


हिंदी अनुवाद: अग्नि तेरे स्वर से प्रज्वलित है, पंचतत्व शोभा पाते हैं। जल तुझसे गूंजता है, तू विश्व का स्वरात्मक मूल है। वायु तेरा गीत है, जो समीर में सदा स्वरित है। हे नाद, तू प्रकृति में पंचतत्वों का परम स्वरनादक है।


श्लोक 3संस्कृत:


शून्यात् त्वमेव संजातः सर्वं स्वरेन संनादति,

मायया विश्वकंपनः सृष्टिः सनातनं स्वरति यत्।

अरूपं रूपं च रचति त्वं ब्रह्मरूपं समाश्रितम्,

नादः त्वमेव प्रकृतौ पुरुषे स्वरनादकः परम्॥


हिंदी अनुवाद: तू शून्य से प्रकट हुआ, सर्वस्व को स्वर से गूंजायमान करता है। माया के कंपन से सृष्टि सनातन स्वर में गूंजती है। अरूप होकर रूप रचता है, तू ब्रह्मरूप है। हे नाद, तू प्रकृति और पुरुष का परम स्वरनादक है।


श्लोक 4संस्कृत:


मंत्रं तवैव मौनं च जीवनं स्वरति त्वया,

काव्यं विश्वमेतत् मायया स्वरेन संनादति।

ब्रह्म त्वमेव काव्यस्य मूलं स्वरात्मकं परम्,

नादः त्वमेव विश्वेन काव्यं सर्वं नादति यत्॥


हिंदी अनुवाद: तेरा मौन मंत्रों में गूंजता है, जीवन तुझसे स्वरित है। माया से यह विश्व काव्य की लय में गूंजता है। तू ही ब्रह्म है, काव्य का स्वरात्मक परम मूल। हे नाद, तू विश्व में काव्य बनकर सर्वस्व को गूंजायमान करता है।


श्लोक 5संस्कृत:


स्वप्नं जाग्रति मायया कालं स्वरेन संनादति,

विश्वं तवैव संनादति सृष्टिकंपनः सर्वदा।

ब्रह्म त्वमेव नादरूपं विश्वस्य जनकः परम्,

नादः त्वमेव सर्वं विश्वेन स्वरेन संनादति॥


हिंदी अनुवाद: स्वप्न और जागरण माया से तुझ में स्वर गूंजता है, काल तेरा नाद है। विश्व तुझसे सृष्टि के कंपन से सदा गूंजता है। तू ही ब्रह्म है, नादरूप, विश्व का परम जनक। हे नाद, तू सर्वस्व को स्वर से गूंजायमान करता है।


श्लोक 6संस्कृत:


शब्दः स एकः त्वमेव गीतं विश्वे स्वरति सदा,

सूत्रं संनादति न च विश्वे छिद्यति कदा।

जीवन्मृतं च रंगति त्वं रंगहीनं स्वरति यत्,

नादः त्वमेव मायया ब्रह्मस्य स्वरनादकः॥


हिंदी अनुवाद: तू एक शब्द है, जो विश्व के गीतों में सदा स्वरित है। तेरा सूत्र गूंजता है, जो विश्व में कभी नहीं टूटता। जीवन और मृत्यु रंगहीन में रंगों से गूंजते हैं। हे नाद, तू माया से ब्रह्म का स्वरनादक है।


श्लोक 7 संस्कृत:


अनंतं तव स्वरं सर्वं विश्वेन संनादति सदा,

पंचमहां तव नादेन विश्वं शोभति सर्वदा।

ब्रह्म त्वमेव नादरूपं स्वयं स्वरति स्वरम्,

नादः त्वमेव प्रकृतौ विश्वस्य कारणं परम्॥


हिंदी अनुवाद: तेरा अनंत स्वर विश्व में सदा गूंजता है। पंचतत्व तेरे नाद से विश्व को सर्वदा शोभायमान करते हैं। तू ही ब्रह्म है, नादरूप, जो स्वयं स्वर से गूंजता है। हे नाद, तू प्रकृति में विश्व का परम कारण है।


श्लोक 8 संस्कृत:


अखंडं तव प्रभया मौनं ब्रह्मरूपं सनातनम्,

अदृश्यं दृश्यं च त्वं स्वरेन संनादति नादकः।

मायया विश्वमेतत् त्वं विश्वेन संनादति सदा,

नादः त्वमेव सर्वं विश्वस्य जनकः परम्॥


हिंदी अनुवाद: तेरा अखंड प्रकाश और मौन सनातन ब्रह्मरूप है। अदृश्य और दृश्य तुझसे स्वर में गूंजता है, तू परम नादक है। माया से यह विश्व तुझसे सदा गूंजायमान है। हे नाद, तू सर्वस्व और विश्व का परम जनक है।


श्लोक 9 संस्कृत:


सृष्टिः तव स्वरे संजाता विश्वं संनादति सदा,

संहारः त्वय्येव सर्वं स्वरेन याति विलीनताम्।

मायया कंपति सर्वं त्वं ब्रह्मस्य कारणं यत्,

नादः त्वमेव सृष्ट्यंतं विश्वस्य स्वरनादकः॥


हिंदी अनुवाद: सृष्टि तेरे स्वर से उत्पन्न हुई, विश्व सदा गूंजता है। संहार तुझमें स्वर से विलीन होता है। माया से सब कुछ कंपित है, तू ब्रह्म का कारण है। हे नाद, तू सृष्टि और अंत का स्वरनादक है।


श्लोक 10 संस्कृत:


चित्तं निरुध्यति त्वं योगेन स्वरेन संनादति,

समाधौ सर्वं त्वमेव च ब्रह्म चिद्रूपकं परम्।

मायया चित्तवृत्तिः स्वरति विश्वं सदा स्वरम्,

नादः त्वमेव योगस्य मार्गं प्रकाशति सदा॥


हिंदी अनुवाद: तू योग से चित्त को शांत करता है, स्वर से गूंजता है। समाधि में सब कुछ तुझसे है, तू चेतना का परम ब्रह्म है। माया से चित्त की तरंगें विश्व को सदा स्वरित करती हैं। हे नाद, तू योग के मार्ग को सदा प्रकाशित करता है।


विश्लेषण: नाद को नादयोग और न्यूरोसाइंस से जोड़ा गया। यह योगसूत्र से प्रेरित है।


श्लोक 11संस्कृत:


ब्रह्मांडं त्वं संनादति अनंतं स्वरेन सर्वदा,

नक्षत्रं तव प्रभया विश्वं संनादति स्वरम्।

मायया सर्वमेतत् त्वं ब्रह्मरूपं समाश्रितम्,

नादः त्वमेव विश्वस्य सृष्टेः स्वरनादकः परम्॥


हिंदी अनुवाद: तू ब्रह्मांड को अनंत स्वर से सदा गूंजायमान करता है। नक्षत्र तेरी प्रभा से विश्व को स्वर में गूंजायमान करते हैं। माया से यह सब ब्रह्मरूप है। हे नाद, तू विश्व की सृष्टि का परम स्वरनादक है।


श्लोक 12संस्कृत:


सत्त्वं रजस्तमस्त्वं त्रिगुणेन स्वरति सदा,

मायया विश्वमेतत् प्रकृत्या संनादति सर्वदा।

ब्रह्म त्वमेव नादरूपं त्रिगुणातीतं यत् स्वरति,

नादः त्वमेव विश्वस्य सृष्टेः कारणं परम्॥


हिंदी अनुवाद: सत्त्व, रज, और तम तुझसे स्वर में सदा गूंजते हैं। माया से यह विश्व प्रकृति द्वारा सर्वदा गूंजायमान है। तू ही ब्रह्म है, नादरूप, जो त्रिगुणों से परे स्वरित है। हे नाद, तू विश्व की सृष्टि का परम कारण है।


श्लोक 13संस्कृत:


प्रणवस्त्वमेव नादः विश्वस्य मूलं सनातनम्,

ॐकाररूपं सर्वं त्वया स्वरेन संनादति।

ब्रह्म त्वमेव नादस्य रूपं समाश्रितं परम्,

नादः त्वमेव सर्वस्य स्वरस्य कारणं यत्॥


हिंदी अनुवाद: तू ही प्रणव (ॐ) है, नाद, विश्व का सनातन मूल। ॐ के रूप में सब कुछ तुझसे स्वर में गूंजता है। तू ही ब्रह्म है, नाद का परम रूप। हे नाद, तू सर्वस्व के स्वर का कारण है।


श्लोक 14संस्कृत:


नासत् सत् नो सत् सर्वं त्वं स्वरेन संनादति,

नादेन विश्वमेतत् सृष्टेः प्रभवति स्वरम्।

मायया कंपति सर्वं त्वं ब्रह्मस्य कारणं सदा,

नादः त्वमेव सृष्टिसूक्तं विश्वस्य मूलनादकः॥


हिंदी अनुवाद: न सत् था, न असत्, तू सर्वस्व को स्वर से गूंजायमान करता है। नाद से यह विश्व सृष्टि का स्वर उत्पन्न करता है। माया से सब कुछ कंपित है, तू ब्रह्म का सदा कारण है। हे नाद, तू सृष्टि-सूक्त और विश्व का मूल नादक है।


श्लोक 15संस्कृत:


हिरण्यगर्भः त्वमेव विश्वं स्वरेन संनादति,

सृष्टिः सर्वं तव मायया प्रभवति नादकः।

ब्रह्म त्वमेव सर्वं स्वयं स्वरेन संनादति,

नादः त्वमेव विश्वस्य सृष्टेः कारणं परम्॥


हिंदी अनुवाद: तू ही हिरण्यगर्भ है, विश्व तुझसे स्वर में गूंजता है। सृष्टि माया से तेरा नाद उत्पन्न करती है। तू ही ब्रह्म है, जो स्वयं स्वर से गूंजता है। हे नाद, तू विश्व की सृष्टि का परम कारण है।

श्लोक 16 संस्कृत:

वेदस्य नादस्त्वमेव विश्वं स्वरेन संनादति,

ऋग्यजुःसामाथर्वं सृष्टेः मूलं स्वरात्मकम्।

मायया सर्वं स्वरति त्वं ब्रह्मस्य नादकः सदा,

नादः त्वमेव विश्वस्य जनकः सनातनं परम्॥


हिंदी अनुवाद: तू वेदों का नाद है, विश्व तुझसे स्वर में गूंजता है। ऋग्, यजुर्, साम, अथर्व—तू सृष्टि का स्वरात्मक मूल है। माया से सब कुछ स्वरित है, तू ब्रह्म का सदा नादक है। हे नाद, तू विश्व का सनातन और परम जनक है।


श्लोक 17संस्कृत:


पुरुषस्त्वमेव विश्वं सर्वं स्वरेन संनादति,

सहस्रशीर्षः मायया सृष्टिः जनति नादकः।

ब्रह्म त्वमेव नादरूपं स्वयं स्वरति स्वरम्,

नादः त्वमेव विश्वस्य मूलं सनातनं परम्॥


हिंदी अनुवाद: तू ही पुरुष है, विश्व तुझसे स्वर में गूंजता है। सहस्र सिरों वाला तू माया से सृष्टि को जन्म देता है। तू ही ब्रह्म है, नादरूप, जो स्वयं स्वर से गूंजता है। हे नाद, तू विश्व का सनातन और परम मूल है।


श्लोक 18संस्कृत:


विश्वं तव रूपं कालः सर्वं स्वरेन संनादति,

मायया विश्वमेतत् त्वं विश्वरूपस्य नादकः।

ब्रह्म त्वमेव नादरूपं स्वयं स्वरति स्वरम्,

नादः त्वमेव सृष्टेः कारणं परमं सदा॥


हिंदी अनुवाद: विश्व तेरा रूप है, काल तुझसे स्वर में गूंजता है। माया से यह विश्व तुझसे गूंजता है, तू विश्वरूप का नादक है। तू ही ब्रह्म है, नादरूप, जो स्वयं स्वर से गूंजता है। हे नाद, तू सृष्टि का परम कारण है।


श्लोक 19संस्कृत:


यज्ञस्त्वमेव नादः विश्वं हविर्भिः स्वरति यत्,

वेदमंत्रैः सर्वं सृष्टेः स्वरं प्रभवति सदा।

ब्रह्म त्वमेव यज्ञरूपं समाश्रितं परमं यत्,

नादः त्वमेव विश्वस्य यज्ञः सनातनं परम्॥


हिंदी अनुवाद: तू ही यज्ञ है, नाद, विश्व हवि से स्वर में गूंजता है। वेदों के मंत्रों से तू सृष्टि का स्वर सदा उत्पन्न करता है। तू ही ब्रह्म है, यज्ञ का परम रूप। हे नाद, तू विश्व का सनातन और परम यज्ञ है।


श्लोक 20 संस्कृत:


नादस्त्वमेव सर्वं विश्वं स्वरेन संनादति,

पूर्णमदः पूर्णमिदं सृष्टेः मूलं सनातनम्।

ब्रह्म त्वमेव नादरूपं स्वयं स्वरति स्वरम्,

नादः त्वमेव विश्वस्य कारणं परमं सदा॥


हिंदी अनुवाद: तू ही नाद है, सर्वस्व, विश्व तुझसे स्वर में सदा गूंजता है। यह पूर्ण है, वह पूर्ण है, तू सृष्टि का सनातन मूल है। तू ही ब्रह्म है, नादरूप, जो स्वयं स्वर से गूंजता है। हे नाद, तू विश्व का परम और सदा कारण है।


लेखक  

विक्रम सिंह 

केशवाही

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