शिव तांडव चेतन्यस्तोत्रम्
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प्रस्तावना
🙏ॐ नमः शिवाय 🙏
हे नटराज, विश्वचेतन्यनायक, चिदानंदघन शंभु!
यस्य तांडवेन विश्वं नादति, चेतन्यलयेन संनादति, तेजसा प्रकम्पति।यो भक्त्या प्रकृतिं शान्तये लयति, विश्वं सौहार्देन सिद्धति।तं नमामि शिवं परं, सत्यं सुंदरं मोक्षप्रकाशकम्।
श्लोक १
नादति विश्वं यस्य तांडवे चेतन्यलयेन शान्तिमत्,
नक्षत्रसहस्रदीप्तौ नृत्यति विश्वनायकः सनातनः।
धिमितधिमितनादति डमरुः त्रिनेत्रः तेजसा प्रकम्पति,
प्रणमामि शंभुं हृदये सदा चिदानंदप्रकाशकम्॥
श्लोक २
प्रकृतिसंनादति यस्य नृत्ये विश्वं शान्तये लयति,
सूर्यसहस्रतेजसि चिदानंदं सर्वं प्रकम्पति सदा।
स्फुरति भुजङ्गमालया कृपाकटाक्षेन विश्वं संनादति,
ध्यायामि शंभुं परमं रम्यं सर्वसिद्धिप्रदायिनम्॥
श्लोक ३
नीलकण्ठः पशुपतिः स्मितचन्द्रशेखरः सनातनः,
सर्वसाक्षी महायोगी विश्वं यस्य तेजसि नृत्यति।
धिमिद्धिमिद्धिमिर्नादति मृदङ्गं तांडवे प्रभोः सदा,
नमामि शंभुं हृदये रम्यं विश्वचक्रनायकं परम्॥
श्लोक ४
गङ्गातरङ्गसङ्काशं जटाजूटं स्फुरति यस्य शीर्षे,
कुहूसहस्रकान्तौ शशांकवत् स्मितचन्द्रशेखरः परम्।
नादति विश्वं यस्य शक्त्या चेतन्यं सर्वं संनादति,
प्रणमामि शंभुं सदा रम्यं मोक्षगतिप्रदायिनम्॥
श्लोक ५
सृष्टिसंनादति यस्य तांडवे संहारः शान्तये लयति,
विज्ञानचेतन्यलयेन विश्वं शान्तं सर्वं प्रकाशति।
स्फुरति पिनाकहस्तः कामहन्ता सर्वलोकसुखंकरः,
ध्यायामि शंभुं परमं सदा सर्वसिद्धिप्रदायिनम्॥
श्लोक ६
कपालमालाधरः कैलासे स्मितार्धेन्दुशेखरः सनातनः,
हलाहलं कण्ठगतं धृतं येन विश्वं रक्षति परम्।
धिमितधिमितनादति तांडवे विश्वं प्रकम्पति सदा,
नमामि शंभुं हृदये रम्यं चिदानंदप्रकाशकम्॥
श्लोक ७
सर्वं विश्वं यस्य शक्त्या चेतन्यलयेन संनादति,
अद्वैतं परमं शिवं यदङ्घ्रौ विश्वं नृत्यति सदा।
कृपासमुद्रं विश्वनाथं सहस्रनामं सनातनम्,
प्रणमामि शंभुं सदा रम्यं सर्वसिद्धिप्रदायिनम्॥
श्लोक ८
नवीनमेघमण्डलीसङ्काशं नीलकण्ठं सनातनम्,
स्फुरति सर्वं यस्य तांडवे चेतन्यं विश्वं प्रकाशति।
स्मरच्छिदं पुरच्छिदं गजच्छिदं तमन्तकान्तकम्,
नमामि शंभुं परमं सदा मोक्षगतिप्रदायिनम्॥
श्लोक ९
वृषध्वजः परशुहस्तः कैलासे स्मितचन्द्रशेखरः,
सर्पालङ्कारो भस्मलिप्तः सर्वसाक्षी महायोगी।
यस्य शक्त्या विश्वं संनादति चेतन्यं प्रकाशति सदा,
ध्यायामि शंभुं हृदये रम्यं सर्वसिद्धिप्रदायिनम्॥
श्लोक १०
अखर्वसर्वमङ्गलाकलाकदम्बमञ्जरीसङ्काशम्,
रसप्रवाहमाधुरीविजृम्भणं विश्वं नृत्यति यस्य शक्त्या।
त्रिलोकीनाथः पशुपतिः स्मितार्धेन्दुशेखरः सनातनः,
प्रणमामि शंभुं हृदये सदा चिदानंदप्रकाशकम्॥
श्लोक ११
स्फुरति शीर्षे शशांकः डमरुं नादति यः प्रभुरुग्रः,
अर्धनारीश्वरं शक्तिशिवं संनादति परं यत्।
कृपासमुद्रं विश्वरक्षी यस्य तेजसि विश्वं लयति,
नमामि शंभुं सदा रम्यं सत्यं परं चिदानंदम्॥
श्लोक १२
सद्योजातः विश्वकर्ता पञ्चवक्त्रः सनातनः,
कामारिः त्रिनेत्रधारी भस्मलिप्तः कृपानिधिः।
नृत्यति यस्य शक्त्या विश्वं संनादति प्रकाशति,
ध्यायामि शंभुं परमं हृदये मोक्षगतिप्रदायिनम्॥
श्लोक १३
यदा निलिम्पनिर्झरीनिकुञ्जकोटरे वसन्,
विमुक्तदुर्मतिः सदा शिरःस्थमञ्जलिं वहन्।
शिवेति मन्त्रमुच्चरन् सुखी भवामि सर्वदा,
नमामि शंभुं विश्वनाथं मोक्षगतिप्रदायिनम्॥
श्लोक १४
यस्य तांडवेन विश्वं प्रकम्पति चिदानंदरूपम्,
शिवः शंभुः पशुपतिः सर्वं यत्र संनादति लीनति।
कृपासमुद्रं विश्वनाथं सहस्रनामं सनातनम्,
प्रणमामि शंभुं हृदये सदा सर्वसिद्धिप्रदायिनम्॥
श्लोक १५
नमामि तं विश्वकर्तारं सत्यं शिवं सुंदरं परम्,
यस्य तेजसि विश्वं संनादति चेतन्यलयेन शान्तिमत्।
सर्वं यत्र लयति शान्तये भक्तिज्ञानवैराग्यदायिनम्,
प्रणमामि शंभुं सदा रम्यं मोक्षप्रकाशकं परम्॥
फलश्रुतियः
शिवतांडवं रम्यं चिदानंदमयं स्तवम् पठति,
स लभति शान्तिं सिद्धिं ज्ञानं विश्वसौहार्दं सनातनम्।
शिवे गुरौ सुभक्तिमाशु याति नान्यथा गतिम्,
प्रणमामि शंभुं सदा रम्यं सर्वं सिद्धिप्रकाशकम्॥
*इति विक्रमसिंहकृते शिवताण्डवचेतन्यस्तोत्रम् समाप्तम् *
विक्रम सिंह
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शिव तांडव चेतन्यस्तोत्रम्
हिंदी रूपांतरण
प्रस्तावना
ॐ नमः शिवाय
हे नटराज, विश्व की चेतना के नायक, चिदानंद से परिपूर्ण शंभु!जिनके तांडव से विश्व नाद करता है, चेतना के लय में संनादता है, और तेज से कंपित होता है। जो भक्ति से प्रकृति को शांति प्रदान करते हैं और विश्व को सौहार्द से सिद्ध करते हैं।उस परम शिव को मैं प्रणाम करता हूँ, जो सत्य, सुंदर और मोक्ष का प्रकाशक है।
श्लोक १
जिनके तांडव से विश्व नाद करता है, चेतना के लय में शांति प्राप्त करता है,सहस्त्रों नक्षत्रों की दीप्ति में सनातन विश्वनायक नृत्य करते हैं।डमरु धिमि-धिमि नाद करता है, त्रिनेत्री शिव अपने तेज से विश्व को कंपित करते हैं,मैं हृदय में सदा
चिदानंद प्रकाशक शंभु को प्रणाम करता हूँ।
श्लोक २
जिनके नृत्य से प्रकृति संनादती है, विश्व शांति के लिए लय में विलीन होता है,हजार सूर्यों के तेज में चिदानंद से सब कुछ सदा कंपित होता है।सर्पमाला से सुशोभित,कृपा दृष्टि से विश्व संनादता है,मैं परम रमणीय,सर्वसिद्धि प्रदान करने वाले शंभु का ध्यान करता हूँ।
श्लोक ३
नीलकंठ, पशुपति, मुस्कुराते चंद्रशेखर, सनातन,
सर्वसाक्षी, महायोगी, जिनके तेज में विश्व नृत्य करता है।
मृदंग धिमि-धिमि नाद करता है, प्रभु के तांडव में सदा,
मैं हृदय में विश्वचक्र के नायक, रमणीय शंभु को नमस्कार करता हूँ।
श्लोक ४
गंगा की तरंगों-सा जटाजूट जिनके सिर पर शोभयमान है,
हजारों चंद्रमा की कांति में मुस्कुराते चंद्रशेखर परम हैं।
जिनकी शक्ति से विश्व नाद करता है, चेतना सर्वत्र संनादती है,मैं सदा रमणीय, मोक्ष प्रदान करने वाले शंभु को प्रणा
करता हूँ।
श्लोक ५
जिनके तांडव से सृष्टि संनादती है, संहार शांति के लिए लय करता है,विज्ञान और चेतना के लय से विश्व शांत और प्रकाशित होता है।पिनाकधारी, काम का नाश करने वाले, सभी लोकों को सुख देने वाले,मैं सदा परम, सर्वसिद्धि प्रदान करने वाले शंभु का ध्यान करता हूँ।
श्लोक ६
कपालमाला धारण करने वाले, कैलास में अर्धचंद्र से सुशोभित सनातन,जिन्होंने हलाहल विष कंठ में धारण कर विश्व की रक्षा की।तांडव में धिमि-धिमि नाद करता विश्व सदा कंपित होता है,मैं हृदय में रमणीय, चिदानंद प्रकाशक शंभु को नमस्कार करता हूँ।
श्लोक ७
जिनकी शक्ति से विश्व चेतना के लय में संनादता है,
अद्वैत परम शिव, जिनके चरणों में विश्व सदा नृत्य करता है।
कृपा के सागर, विश्वनाथ, सहस्रनाम वाले सनातन,
मैं सदा रमणीय, सर्वसिद्धि प्रदान करने वाले शंभु को प्रणाम करता हूँ।
श्लोक ८
नवीन मेघों-सी आभा वाले नीलकंठ, सनातन,
जिनके तांडव से चेतना में विश्व प्रकाशित होता है।
स्मर, पुर, गज और मृत्यु का अंत करने वाले,
मैं सदा परम, मोक्ष प्रदान करने वाले शंभु को नमस्कार करता हूँ।
श्लोक ९
वृषभ ध्वज वाले, परशुधारी, कैलास में मुस्कुराते चंद्रशेखर,
सर्पों से अलंकृत, भस्म से लिप्त, सर्वसाक्षी, महायोगी।
जिनकी शक्ति से विश्व संनादता है, चेतना सदा प्रकाशित होती है,मैं हृदय में रमणीय, सर्वसिद्धि प्रदान करने वाले शंभु का ध्यान करता हूँ।
श्लोक १०
सर्वमंगलमयी कला-कदंब की मंजरी-से शोभायमान,
रस और माधुर्य के प्रवाह से विश्व उनकी शक्ति से नृत्य करता है।त्रिलोक के नाथ, पशुपति, अर्धचंद्र से सुशोभित सनातन,
मैं हृदय में सदा चिदानंद प्रकाशक शंभु को प्रणाम करता हूँ।
श्लोक ११
जिनके सिर पर चंद्रमा शोभित है, डमरु नाद करता है,
उग्रप्रभु,अर्धनारीश्वर, शक्ति और शिव का परम संनाद,
कृपा के सागर, विश्व रक्षक, जिनके तेज में विश्व लय होता है,
मैं सदा रमणीय, सत्य, परम चिदानंद शंभु को नमस्कार करता हूँ।
श्लोक १२
सद्योजात, विश्व के कर्ता, पंचमुखी, सनातन,
काम के शत्रु, त्रिनेत्रधारी, भस्मलिप्त, कृपा के भंडार।
जिनकी शक्ति से विश्व नृत्य करता और प्रकाशित होता है,
मैं हृदय में परम, मोक्ष प्रदान करने वाले शंभु का ध्यान करता हूँ।
श्लोक १३
जब मैं नदियों और जंगलों के किनारे निवास करता हूँ,
दुर्मति से मुक्त होकर सदा सिर पर अंजलि धारण करता हूँ।
‘शिव’ मंत्र का उच्चारण कर सदा सुखी हो जाता हूँ,
मैं विश्वनाथ, मोक्ष प्रदान करने वाले शंभु को नमस्कार करता हूँ।
श्लोक १४
जिनके तांडव से विश्व कंपित होता है, चिदानंद रूप में,
शिव, शंभु, पशुपति, जहाँ सब कुछ संनादता और लीन होता है। कृपा के सागर, विश्वनाथ, सहस्रनाम वाले सनातन,
मैं हृदय में सदा रमणीय, सर्वसिद्धि प्रदान करने वाले शंभु को प्रणाम करता हूँ।
श्लोक १५
मैं विश्व के कर्ता, सत्य, शिव, सुंदर, परम को नमस्कार करता हूँ,जिनके तेज में विश्व चेतना के लय से संनादता और शांत होता है।जहाँ सब कुछ शांति के लिए लय करता है, भक्ति, ज्ञान, वैराग्य देने वाले,मैं सदा रमणीय, मोक्ष प्रकाशक परम शंभु को प्रणाम करता हूँ।
फलश्रुति
जो इस रमणीय, चिदानंदमय शिव तांडव स्तोत्र का पाठ करता है,वह शांति, सिद्धि, ज्ञान और विश्व में सौहार्द प्राप्त करता है।शिव और गुरु में भक्ति से शीघ्र ही वह उत्तम गति पाता है,मैं सदा रमणीय, सर्वसिद्धि प्रकाशक शंभु को प्रणाम करता हूँ।
इति विक्रम सिंह द्वारा रचित शिव तांडव चेतन्यस्तोत्रम्
समाप्त।
विक्रम सिंह
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