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शनिवार, 2 अगस्त 2025

रिश्तों की नीलामी

 रिश्तों की नीलामी में सब , बढ़कर बोली बोल रहे हैं।

दुनियादारी की महफिल में ,अपने पत्ते खोल रहे हैं ।।


  रंग बदलते  चेहरों की , पहचान  अजूबे वाली  है।

 अपनेपन की धार कटीली,अपनेपन में झेल रहे हैं ।।


 एकदूजे के सच से  वाक़िफ़, पर कुछ  पर्दा-दारी है।

 इसीलिए सब रंग में अपने,सबके रंग को घोल रहे हैं।।


बंद जुबाँ का खेल निराला,बिन साक़ी वाली मधुशाला।

जज़्बातों के  जाम थाम कर ,एकदूजे  को  तोल रहें हैं ।।


सच्चे  झूठे  अफ़सानो  से ,  खबरों  के  बाज़ार  गरम  है ।

खुद को आदिल मान के बैठे, मन के क़ातिल डोल रहें हैं।।


विक्रम

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