ओ मधुमास मेरे जीवन के
क्यू इतने सकुचे सकुचे हो
शिशिर गया फिर भी सहमे हो
कहा बसंती हवा रह गयी.क्या दिन आये नहीं फाग के
जीवन की इन कलिकाओ में
मेरे मन की आशाओं मे
कब पराग भर पावोगे तुम ,शिशिर-समीरण से बच करके
अधर मेरे अतृप्त बडे हैं
खाली सब मधुकोष पड़े हैं
कौन ले गया छ्ल कर मुझसे मधु-मय पल जीवन के
vikram
प्यास बुझेगी फ़िर होठों की ,
जवाब देंहटाएंफ़िर छलकेंगे कोष सभी ,
भरता है सुख-मधु जीवन में ,
समय की छलनी से छन-छन के.
आपने फ़िर एक बार बहुत सुंदर रचना दी है .
पुनः बधाई एवं आभार .