एक उदासी इन्ही उनीदीं .पलकों के कर नाम
मैनें आज बिता डाली फिर,जीवन की इक शाम
रजनी का तम रवि को तकता
हौले- हौले दर्द सिमटता
एक करूण शाश्वत जल-धरा,है नयनो के नाम
बिन समझे जीवन की भाषा
की थी बड़ी-बड़ी प्रत्यासा
कितनी लघु अंजली हमारी, आई न कुछ काम
है असाध्य जीवन की वीणा
बन साधक पाई यह पीड़ा
सूनी- साझ न जाने कब आ, देगी इसे विराम
मैनें आज बिता डाली फिर,जीवन की इक शाम
रजनी का तम रवि को तकता
हौले- हौले दर्द सिमटता
एक करूण शाश्वत जल-धरा,है नयनो के नाम
बिन समझे जीवन की भाषा
की थी बड़ी-बड़ी प्रत्यासा
कितनी लघु अंजली हमारी, आई न कुछ काम
है असाध्य जीवन की वीणा
बन साधक पाई यह पीड़ा
सूनी- साझ न जाने कब आ, देगी इसे विराम
vikram
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