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शुक्रवार, 23 जनवरी 2009

डूबा सूरज साँझ हों गई



डूबा सूरज साँझ हों गई


पंक्षी नीडो में जा पहुचे


सुन बच्चो की ची ची चे चे


वे भूले दिन के कष्ट सभी , यह स्वर लहरी सुख धाम दे गयी


डूबा सूरज साँझ हों गयी


जो पंथी राहों में होगे


जल्दी जल्दी चलते होगे


प्रिय जन चिंतित हों जायेगे , यदि पथ में उनको रात हों गयी


डूबा सूरज साँझ हों गयी


हर दिन जब ये पल आता हैं


मन में जगती इक आशा हैं


शायद कोई मुझसे कह दे, घर आओ देखो शाम हों गयी


डूबा सूरज साँझ हों गयी


vikram

3 टिप्‍पणियां:

  1. हर दिन जब ये पल आता हैं



    मन में जगती इक आशा हैं



    शायद कोई मुझसे कह दे, घर आओ देखो शाम हों गयी







    प्रकृति का चित्रण करती इस सुन्दर कविता के लिए साधुवाद.

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  2. मन में जगती इक आशा हैं



    शायद कोई मुझसे कह दे, घर आओ देखो शाम हों गयी



    डूबा सूरज साँझ हों गयी

    बहुत सुंदर चित्रण ....आशा अवश्‍य पूरी होगी

    जवाब देंहटाएं