पथिक
जीवन यात्रा के यौवन काल में
अर्ध-सत्य रिश्तो से उपजे ये प्रश्न
हैं मात्र भावनाओं संस्कारो के बीच के द्वन्द
यह मत भूलो
न तुम पतित हों ,न पतित पावन
तुम पथिक हों
जिसे खोजना हैं
जीवन के कितने ही अनसुलझे, प्रश्नों के उत्तर
देना हैं नये विचारों को जन्म
पूर्व निर्मित
मान्यताओं ,मर्यादाओं के वीच
पहचानना हॆ सत्य
सत्य के असंख्य मुखौटो के बीच
तुम्हारी ये कोशिशे व संघर्ष होगे
माइने जीवन के
vikram
पूर्व निर्मित
जवाब देंहटाएंमान्यताओं ,मर्यादाओं के वीच
पहचानना हॆ सत्य ....
बहुत सही...
अच्छी रचना......
क्या बात है छा गए
जवाब देंहटाएंअनिल कान्त
मेरा अपना जहान
बहुत उम्दा!!
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