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बुधवार, 14 जनवरी 2009

दर्द को दिल में उतर जाने दो ........


दर्द को दिल में उतर जाने दो
आज उनको भी कहर ढाने दो

रात हर चाँद से होती नहीं मसरुफे-सुखन
स्याह रंगो के नजारे भी नजर आने दो

एक अनजानी सी तनहाई, सदा रहती है
आज महफिल में उसे नज्म कोई गाने दो

जिनने दरियाओं के मंजर ही नहीं देखे हैं
उन सफीनो पे-भी अफसोस जरा करने दो

कोई वादे को निभा दे यहाँ ऐसा तो नहीं
सर्द वादों को कोई राह नई चुनने दो

चंद कुछ राज यहाँ यूँ ही दफन होते नहीं
आज अपना ही जनाजा मुझे ले जाने दो


vikram

1 टिप्पणी:

  1. बहुत ही अच्छा प्रयास है विक्रम जी , सुरु की चार लाईने वाकई कमाल की बहुत प्यारी लिखी ! बुरा न माने तो छोटे मोटे संशोदन के सुझाव है :

    दर्द को दिल में उतर जाने दो
    आज उनको भी कहर ढाने दो

    रात हर चाँद से होती नहीं मसरुफे-सुखन
    स्याह रंगो के नजारे भी नजर आने दो

    एक अनजानी सी तनहाई, सदा रहती है [एक अनजानी सी तनहाई, जो रहती है खामोश अक्सर
    आज महफिल में उसे नज्म कोई गाने दो [उसे भी आज महफिल में, नज्म कोई गाने दो

    जिनने दरियाओं के मंजर ही नहीं देखे हैं [जिसने दरियाओं के मंजर ही नहीं देखे हैं
    उन सफीनो पे-भी अफसोस जरा करने दो [उन सफीनो पे-भी अफसोस जरा आने दो

    कोई वादे को निभा दे यहाँ ऐसा तो नहीं [कोई वादे को निभा दे जरुरी तो नहीं
    सर्द वादों को कोई राह नई चुनने दो [सर्द वादों को भी कोई राह नई पाने दो

    चंद कुछ राज यहाँ यूँ ही दफन होते नहीं
    आज अपना ही जनाजा मुझे ले जाने दो [आज अपना ही जनाजा मुझे उठाने दो

    बुरा लगे तो क्षमा करना !
    धन्यवाद
    गोदियाल

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