मैं अधेरों में घिरा, पर दिल में इक राहत सी है
जो शमां मैने जलाई ,वह अभी महफिल में है
गम भी हस कर झेलना ,फितरत में दिल के है शुमार
आशनाई सी मुझे ,होने लगी है इनसे यार
महाफिलो में चुप ही रहने की मेरी आदत सी है
मैं....................................................................
एक दर पर कब रुकी है,आज तक कोई बहार
गर्दिशो में हूँ घिरा ,कब तक करे वो इन्तजार
जिन्दगी को मौसमों के दौर की आदत सी है
मैं....................................................................
अपना दामन तो छुडा कर जानां है आसां यहां
गुजरे लम्हों से निकल कर कोई जा सकता कहाँ
कल से कल को जोड़ना भी ,आज की आदत सी है
मैं.....................................................................
बिक्रम
जो शमां मैने जलाई ,वह अभी महफिल में है
गम भी हस कर झेलना ,फितरत में दिल के है शुमार
आशनाई सी मुझे ,होने लगी है इनसे यार
महाफिलो में चुप ही रहने की मेरी आदत सी है
मैं....................................................................
एक दर पर कब रुकी है,आज तक कोई बहार
गर्दिशो में हूँ घिरा ,कब तक करे वो इन्तजार
जिन्दगी को मौसमों के दौर की आदत सी है
मैं....................................................................
अपना दामन तो छुडा कर जानां है आसां यहां
गुजरे लम्हों से निकल कर कोई जा सकता कहाँ
कल से कल को जोड़ना भी ,आज की आदत सी है
मैं.....................................................................
बिक्रम
जिन्दगी को मौसमों के दौर की आदत सी है
जवाब देंहटाएंबहुत सुंदर
,फितरत में दिल के है शुमार आशनाई सी मुझे ,होने लगी है इनसे यार महाफिलो में चुप ही रहने की मेरी आदत सी है .....
जवाब देंहटाएंबहुत सुंदर लिखा है ....
अनिल कान्त
मेरी कलम - मेरी अभिव्यक्ति
atisundar bhav
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