साथी अब न रहा जाता हैं
कैसा ये एकाकी पन हैं
मौन बना मेरा जीवन है
निर्जन राहों में तेरे बिन, मुझसे नहीं चला जाता है
नयन नहीं मेरे सोते हैं
देख सितारे भी रोते हैं
चँन्दा भी हर रात यहां से, कुछ उदास होकर जाता है
मन को फिर भी बहलाता हूँ
बिन स्वर के ही मैं गाता हूँ
बिन पंखो का कोई पखेरू,आसमान में उड़ पाता है
vikram
कैसा ये एकाकी पन हैं
मौन बना मेरा जीवन है
निर्जन राहों में तेरे बिन, मुझसे नहीं चला जाता है
नयन नहीं मेरे सोते हैं
देख सितारे भी रोते हैं
चँन्दा भी हर रात यहां से, कुछ उदास होकर जाता है
मन को फिर भी बहलाता हूँ
बिन स्वर के ही मैं गाता हूँ
बिन पंखो का कोई पखेरू,आसमान में उड़ पाता है
vikram
बहुत बढिया!!
जवाब देंहटाएंअच्छी लगी आपकी रचना ...बधाई
जवाब देंहटाएंबहुत बढ़िया!
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