कहाँ नयन मेरे रोते हैं
पलक रोम में लख कुछ बूदें
या टूटे पा मेरे घरौंदे
सोच रहे हों बस इतने से ,नहीं रात भर हम सोते हैं
जो जोडा था वह तोड़ा हैं
मिथ्या सपनों को छोडा हैं
पा करके अति ख़ुशी नयन ये,कभी-कभी नम भी होते हैं
बीते पल के पीछे जाना
हैं मृग-जल से प्यास बुझाना
खोकर जीने में भी साथी,कुछ अनजाने सुख होते हैं
vikram
पलक रोम में लख कुछ बूदें
या टूटे पा मेरे घरौंदे
सोच रहे हों बस इतने से ,नहीं रात भर हम सोते हैं
जो जोडा था वह तोड़ा हैं
मिथ्या सपनों को छोडा हैं
पा करके अति ख़ुशी नयन ये,कभी-कभी नम भी होते हैं
बीते पल के पीछे जाना
हैं मृग-जल से प्यास बुझाना
खोकर जीने में भी साथी,कुछ अनजाने सुख होते हैं
vikram
बहुत सुन्दर कविता!
जवाब देंहटाएं---आपका हार्दिक स्वागत है
चाँद, बादल और शाम
बीते पल के पीछे जाना
जवाब देंहटाएंहैं मृग-जल से प्यास बुझाना
खोकर जीने में भी साथी,कुछ अनजाने सुख होते हैं
सुन्दर कविता