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सोमवार, 2 फ़रवरी 2009

वक्त मेरा जा...............





वक्त मेरा जा रहा हॆ

जल रही हॆ तन में ज्वाला
पी हलाहल का मॆ प्याला

एक मरुथल में पडा मॆ, अब न कोई आ रहा हॆ

हर तरफ गहरा अधेरा
प्रभा का लगता न फेरा

आज गहरे धुन्ध से, खुद मन मेरा घबडा रहा हॆ

थका हारा सा मेरा मन
कर रहा हॆ मॊन क्रन्दन

आश का पंछी भी मुझसे,दूर उडता जा रहा हॆ

विक्रम

4 टिप्‍पणियां:

  1. वाह !वाह ! वाह !सुंदर भावपूर्ण कविता !

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  2. जल रही हॆ तन में ज्वाला
    पी हलाहल का मॆ प्याला
    एक मरुथल में पडा मॆ, अब न कोई आ रहा हॆ
    कमाल की अभिव्यक्ति....एक बेहतरीन रचना...वाह.
    नीरज

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  3. टिप्पणी के लिये आप सभी को बहुत बहुत धन्यवाद

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