वक्त मेरा जा रहा हॆ
जल रही हॆ तन में ज्वाला
पी हलाहल का मॆ प्याला
एक मरुथल में पडा मॆ, अब न कोई आ रहा हॆ
हर तरफ गहरा अधेरा
प्रभा का लगता न फेरा
आज गहरे धुन्ध से, खुद मन मेरा घबडा रहा हॆ
थका हारा सा मेरा मन
कर रहा हॆ मॊन क्रन्दन
आश का पंछी भी मुझसे,दूर उडता जा रहा हॆ
विक्रम
जल रही हॆ तन में ज्वाला
पी हलाहल का मॆ प्याला
एक मरुथल में पडा मॆ, अब न कोई आ रहा हॆ
हर तरफ गहरा अधेरा
प्रभा का लगता न फेरा
आज गहरे धुन्ध से, खुद मन मेरा घबडा रहा हॆ
थका हारा सा मेरा मन
कर रहा हॆ मॊन क्रन्दन
आश का पंछी भी मुझसे,दूर उडता जा रहा हॆ
विक्रम
वाह !वाह ! वाह !सुंदर भावपूर्ण कविता !
जवाब देंहटाएंजल रही हॆ तन में ज्वाला
जवाब देंहटाएंपी हलाहल का मॆ प्याला
एक मरुथल में पडा मॆ, अब न कोई आ रहा हॆ
कमाल की अभिव्यक्ति....एक बेहतरीन रचना...वाह.
नीरज
शब्दों को जैसे पत्थर पे उकेरा है
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टिप्पणी के लिये आप सभी को बहुत बहुत धन्यवाद
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