कभी दिवारों में लिख दी थी , एक इबारत बस यूँ ही
आज न जाने क्यों उसमे , बसे मेरे जज्बात हैं
कभी सफीनो को मौजों के ,गीत सुहाने भाते थे
आज किनारों के ही देखो , बदले सब हालात हैं
तन्हाई का अंबर लेकर ,धीरे धीरे चलू कहाँ
महफिल की यादों से जॆसे ,बधें मेरे पग आज हैं
सॊदाई लोगो से शिकवे, यह भी कोई बात हुई
अपने अरमानों से लड़ना , मुश्किल ये हालात हैं
विक्रम
वाह ! सुन्दर जज्बात ,भावपूर्ण सुन्दर प्रस्तुति ....
जवाब देंहटाएंदिल के भावों को अच्छी तरह रख लेते हैं आप
जवाब देंहटाएंकभी दिवारों में लिख दी थी , एक इबारत बस यूँ ही
जवाब देंहटाएंआज न जाने क्यों उसमे , बसे मेरे जज्बात हैं
पढ़ने के बाद जो जुबां पर आया वो शब्द था 'अद्भुत'