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रविवार, 21 जून 2009

ओ महाशून्य...............





ओ महाशून्य ओ महामौन

हे तन विहीन तू कहा लीन
ले मेरे जीवन गीत छीन

स्वर मेरे कर तू अभि-कुंठित,हो मौन बने ये दिग्विहीन

मेरा अकार कर निराकार
जाना मुझको हैं काल-द्वार


जीवन उत्सव उत्सर्ग हेतु, अभिमंत्रित कर तू मौन बीन

तू हर ले मुझसे प्राण-बीज
अंकुरित न कर दे कोई सीच


अब मुझे शून्य में सोने दे,चिर-निन्द्रा में हो के बिलीन

vikram

1 टिप्पणी:

  1. वाह क्या बात है सीधी परमेश्वर से बहस .....

    और हिंदी शब्दों का क्या प्रयोग है ...लाजवाब

    जवाब देंहटाएं