साथी दूर विहान हो रहा
रवि रजनी का कर आलिंगन
अधरों को दे क्षण भर बन्धन
कर पूरी लालसा प्रणय की, मंद-मंद मृदु हास कर रहा
साथी दूर विहान हो रहा
अपना सब कुछ आज लुटा कर
तृप्ति हुयी यौवन सुख पाकर
शरमाई रजनी से रवि फिर, मिलने का मनुहार कर रहा
साथी दूर विहान हो रहा
रजनी पार क्षितिज के जाती
आखों से आंसू छलकाती
झरते आंसू पोछ किरण से, दूर देश रवि आज जा रहा
साथी दूर विहान हो रहा
vikram
रवि रजनी का कर आलिंगन
अधरों को दे क्षण भर बन्धन
कर पूरी लालसा प्रणय की, मंद-मंद मृदु हास कर रहा
साथी दूर विहान हो रहा
अपना सब कुछ आज लुटा कर
तृप्ति हुयी यौवन सुख पाकर
शरमाई रजनी से रवि फिर, मिलने का मनुहार कर रहा
साथी दूर विहान हो रहा
रजनी पार क्षितिज के जाती
आखों से आंसू छलकाती
झरते आंसू पोछ किरण से, दूर देश रवि आज जा रहा
साथी दूर विहान हो रहा
vikram
साथी दूर विहान हो रहा
जवाब देंहटाएंbahut sunder chitran.
bahut sundar!!
जवाब देंहटाएंअद्भुत !!! अद्वितीय !!!!
जवाब देंहटाएंविक्रम जी ,आपकी इस मनोहारी रचना ने तो मन ही हर लिया......कई बार बार पढ़ चुकी हूँ पर मन ही नहीं भर रहा......
प्रकृति का इतना कोमल सुन्दर वर्णन मन को बाँध ले रहा है....
इस सुन्दर लेखन के लिए बहुत बहुत आभार....माता आपकी कलम पर सदा सहाय रहें....शुभकामनाये..