वह गगन उठाने आया है ?
उजले कागों सा,तन धरके
मन में सारे छल -बल भरके
भरमाये से जनमानस को,वह बोध दिलाने आया है
वह गगन उठाने आया है ?
तृष्णा ख़ुद की न बुझ पाती
पर जन-जन को लिखता पाती
तेरे मेरे हर सपने को,वह राह दिखाने आया हैं
वह गगन उठाने आया है ?
दिग्गभ्रमित सदा ही रहता है
वह कभी नही कुछ करता है
फिर भी वाणी के बल बूते,जन नायक बनने आया है
वह गगन उठाने आया है ?
विक्रम
bhaasha par aapki pakad kamaal ki hai...likhte rahiye isi shiddat se
जवाब देंहटाएंwww.pyasasajal.blogspot.com
बहुत बढ़िया रचना.
जवाब देंहटाएंबहुत सुंदर. भाव सघन. व्यंग्यमय रचना.
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