साथी थोड़ी सी मधु पी है
निर्मम था ,वह एकाकीपन
जिह्वा हीन कंठ सा क्रंदन
आयें रुदन श्रवन कर मेरे, उर-मधु से पीडा हर ली है
साथी थोड़ी सी मधु पी है
नयन स्वप्न को,शून्य हृदय को
मेरे जीवन के हर पल को
चिर अभाव हर तुमने प्रेयसि, सतरंगी आशा निधि दी है
साथी थोड़ी सी मधु पी है
नव कालियां पा उपवन महके
प्रणय स्वप्न नयनों में झलके
तेरे पलक संपुटो की, मदिरा उर प्याले में भर ली है
साथी थोड़ी सी मधु पी है
vikram
Bahut hi sunder.Aap bahut spasht hindi me utkrasht rachanayen likhet hai !
जवाब देंहटाएंसाथी थोड़ी सी मधु पी है
जवाब देंहटाएंbhaut khoob
बहुत खूब!! सुन्दर!
जवाब देंहटाएंविक्रम जी बहुत सुन्दर कविता है
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नये प्रकार के ब्लैक होल की खोज संभावित
बहुत ही सुन्दर कविता लिखते है ............आपकी कविता का स्वरुप
जवाब देंहटाएंबहुत ही सुन्दर है ..........अल्फाज़ कम पड रहे है ...........बधाई