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शनिवार, 4 जुलाई 2009

कहाँ नयन मेरे रोते हैं

पलक रोम में लख कुछ बूदें
या टूटे पा मेरे घरौंदे

सोच रहे हों बस इतने से ,नहीं रात भर हम सोते हैं

जो जोडा था वह तोड़ा हैं
मिथ्या सपनों को छोडा हैं

पा करके अति ख़ुशी नयन ये,कभी-कभी नम भी होते हैं

बीते पल के पीछे जाना
हैं मृग-जल से प्यास
बुझाना

खोकर जीने में भी साथी,कुछ अनजाने सुख होते हैं


vikram

1 टिप्पणी:

  1. खोकर जीने में भी साथी,कुछ अनजाने सुख होते हैं
    मृग जल से प्यास बुझाने की यह अदा अच्छी लगी.
    सुन्दर रचना

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