मैं अधेरों में घिरा, पर दिल में इक राहत सी है
जो शमां मैने जलाई ,वह अभी महफिल में है
गम भी हस कर झेलना ,फितरत में दिल के है शुमार
आशनाई सी मुझे ,होने लगी है इनसे यार
महाफिलो में चुप ही रहने की मेरी आदत सी है
मैं....................................................................
एक दर पर कब रुकी है,आज तक कोई बहार
गर्दिशो में हूँ घिरा ,कब तक करे वो इन्तजार
जिन्दगी को मौसमों के दौर की आदत सी है
मैं....................................................................
अपना दामन तो छुडा कर जानां है आसां यहां
गुजरे लम्हों से निकल कर कोई जा सकता कहाँ
कल से कल को जोड़ना भी ,आज की आदत सी है
मैं.....................................................................
बिक्रम
आपकी फ़ितरत को सलाम ! आपके ब्लॉग पर पहली बार आया प्रणाम !
जवाब देंहटाएंबहुत सुन्दर!!
जवाब देंहटाएंएक दर पर कब रुकी है,आज तक कोई बहार
जवाब देंहटाएंगर्दिशो में हूँ घिरा ,कब तक करे वो इन्तजार
जिन्दगी को मौसमों के दौर की आदत सी है
waah shandar geet hai.
एक दर पर कब रुकी है,आज तक कोई बहार
जवाब देंहटाएंसही है. बदलते परिवेशो मे खुद को तो ढालना ही पडता है.
बेहतरीन रचना
जिंदगी को मौसमों के दौर की आदत सी है ...ह्म्म्म्म्म...अच्छी आदत है ..!!
जवाब देंहटाएंbahut bahut khub .........ek ek panktiya mulyawan hai...........badhaee
जवाब देंहटाएंएक दर पर कब रुकी है,आज तक कोई बहार
जवाब देंहटाएंगर्दिशो में हूँ घिरा ,कब तक करे वो इन्तजार
जिन्दगी को मौसमों के दौर की आदत सी है .
bahut hi shaandar .
''मैं अधेरों में घिरा, पर दिल में इक राहत सी है
जवाब देंहटाएंजो शमां मैने जलाई ,वह अभी महफिल में है''
------ पंक्तियाँ अच्छी लगी.बधाई स्वीकारें!