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गुरुवार, 20 अगस्त 2009

आ फिर राग बसंती ..........


आ फिर राग बसंती छेड़े


है विहान भी रंग ,रंगीला


मलय पवन का राग नशीला


शरमाई सी मुझको तकती,तेरे नयनों को अब छेड़े


आ फिर राग बसंती छेड़े


कितने मधु-रितु ,साथ पुराना


सुखद बहुत ये ,साथ निभाना


तेरे मदमाते अधरों के,जाम अभी भी मुझको छेड़े


आ फिर राग बसंती छेड़े


ईश विनय, मन करे हठीला


बना रहे यह साथ,सजीला


तेरे मेरे मन उपवन में,तान बसंती कोयल छेड़े


आ फिर राग बसंती छेड़े


विक्रम[पुन:प्रकाशित]

6 टिप्‍पणियां:

  1. बसंती के आगमन के साथ ही दिल हिलोरें लेना शुरू कर देता है ................. बस्स्न्ती राग खुशियों का संकेत देत है ..... सुन्दर रचन है आपकी ..........

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  2. मन एक अजीब से उमंग से भर गया जिसमे प्यार ही प्यार की मनुहार है .......सहजता और सरसता है .......वाह वाह बहुत ही खुब्सूरत सी रचना .........मन और आत्मा दोनो को ही छू गयी.........आपका लेखन उत्कृष्ट है......बधाई

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  3. आ फिर राग बसंती छेड़े

    बहुत सुन्दर रचना लगी आपकी यह ..राग यूँ ही छिड़ते रहे ..शुक्रिया

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  4. अनुभूति सघन बासंती उमंग
    अत्यंत सुन्दर रचना

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  5. बहुत सुन्दर रचना और मुझे पसंद भी आई

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