आ कुछ दूर चलें,फिर सोचें
अमराई की घनी छाँव में
नदी किनारे बधीं नाव में
बैठ निशा के इस दो पल में,बीते लम्हों की हम सोचें
आ कुछ दूर चलें,फिर सोचें
मन आंगन उपवन जैसा था
प्रणय स्वप्न से भरा हुआ था
तरुणाई के उन गीतों से,आ अपने तन मन को सीचें
आ कुछ दूर चलें,फिर सोचें
स्वप्नों की मादक मदिरा ले
मलय पवन से शीतलता ले
फिर अतीत में आज मिला के,जीवन मरण प्रश्न क्यूँ सोचें
आ कुछ दूर चलें,फिर सोचें
विक्रम
स्वप्नों की मादक मदिरा ले
जवाब देंहटाएंमलय पवन से शीतलता ले
फिर अतीत में आज मिला के,जीवन मरण प्रश्न क्यूँ सोचें
सीधे साधे शब्दों में गहरे अर्थ छुपाये हुए गज़ब की रचना...बधाई...
नीरज
स्वप्नों की मादक मदिरा ले
जवाब देंहटाएंमलय पवन से शीतलता ले
फिर अतीत में आज मिला के,जीवन मरण प्रश्न क्यूँ सोचें
आ कुछ दूर चलें,फिर सोचें
विक्रम
बेहद खुब्सूरत रचना .........सुन्दर
bahut khoobsurat ahsaso se bhari kavita.....tmaam umar kaha koee sath deta hai,magar thori dur sath chalo...
जवाब देंहटाएंआ कुछ दूर चलें,फिर सोचें
जवाब देंहटाएंअमराई की घनी छाँव में
नदी किनारे बधीं नाव में
स्वप्नो को हवा देते है ये शब्द
कितने मासूम खयाल है.
बहुत सुन्दर
बहुत ही सुंदर ख्यालों से भरी आपकी सुंदर रचना..
जवाब देंहटाएंबधाई..
बेहद खूबसूरत रचना ...
जवाब देंहटाएंये तो सही कहा की जीवन मरण के प्रश्न क्यूँ सोचें पर अतीत के बिना वर्तमान का अस्तित्व कहाँ ....
जवाब देंहटाएंpukhraaj jii, मेरी कविता पर टिप्पणी के किये धन्यवाद "पर अतीत के बिना वर्तमान का अस्तित्व कहाँ ...."बिल्कुल सही कहा आपने.
जवाब देंहटाएंमॆने अपनी कविता मे अतीत को नकारा नही हॆ ,"फिर अतीत में आज मिला के,जीवन मरण प्रश्न क्यूँ सोचें" के सम्बन्ध में इतना ही कहना चाहूगा कि गुजरे कल से आज हॆ ऒर आज से जुडा हॆ आने
वाला कल,जीवन मरण प्रश्न को भुला कर बीते पल के साथ आज, व आने वाले कल को इस चिंता से मुक्त होकर जियें.
'स्वप्नों की मादक मदिरा ले
जवाब देंहटाएंमलय पवन से शीतलता ले
फिर अतीत में आज मिला के,जीवन मरण प्रश्न क्यूँ सोचें'
bahut sudar likha hai...aur aap ki di vyakhya bhi bahut khoob hai.
बहुत सुन्दर अभिव्यक्ति है बधाई
जवाब देंहटाएंआ कुछ दूर चलें,फिर सोचें
जवाब देंहटाएंस्वप्नों की मादक मदिरा ले
मलय पवन से शीतलता ले
फिर अतीत में आज मिला के,जीवन मरण प्रश्न क्यूँ सोचें
आ कुछ दूर चलें,फिर सोचें
bahut hi sundar lines .......
badhaai
अनायास एक गीत याद आ गया ..किशोर दा का लिखा ,संगीत बद्ध किया , उन्हीँ का गया और उन्हीँ पे फिल्माया हुआ.....'आ चल के तुझे मै लेके चलूँ , इक ऐसे गगन के तले .."
जवाब देंहटाएंयहाँ हालात अलग हैं , एक प्रणय निवेदन है ...लेकिन प्यार का एहसास , चाहे किसी के लिए हो , कहीँ न कहीँ उसके अपनत्व में साम्य ज़रूर होता है !
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सच है ..एक राह ,जिसपे चलना और मंजिल पाना वाक़ई कितना कठिन होता है ..!मंजिल तक पहुँच पानेवाले बेहद भाग्य शाली होते हैं ..वरना रिश्ते चंद क़दम चल, दम तोड़ देते हैं ..और पता चलता है ,कितने कमज़ोर थे !वक्त की आँधी उन दीयों को बुझा गयी ..!
जवाब देंहटाएं'Aapkee rachname vilakshan aashawaad aur tapasya jhalaktee hai..!'
जवाब देंहटाएंYe wakya, pahlee tippanee me pata nahee kyon avtarit nahee hua?
sundar rachna!
जवाब देंहटाएंregards,