सच नही कोई परिंदा, जाल मे फँस जायेगा ...
सच नही कोई परिंदा, जाल मे फँस जायेगा
कर हलाले-पाक उसको चाक कर खा जायेगा
रख जुबाँ फिर भी यहाँ तू , बे-जुबाँ हो जायेगा
देखकर शमसीर यदि तू , सच नहीं कह पायेगा
दिल्लगी में दिलकशी हो , दिल कहाँ फिर जायेगा
प्यार और नफरत में यारा , फर्क क्या रह जायेगा
प्यार अपने इम्तिहाँ के , दौर से बच जायेगा
वक़्त की तारीक मे , कैसे पढा वह जायेगा
vikram
प्यार अपने इम्तिहाँ के , दौर से बच जायेगा
जवाब देंहटाएंवक़्त की तारीक मे , कैसे पढा वह जायेगा
आप जब कोई भी रचना को अपना भाव देते है तो वह बेहद सरस और खुबसूरत होते है .........बधाई
बहुत बढिया गज़ल है।बधाई स्वीकारें।
जवाब देंहटाएंरख जुबाँ फिर भी यहाँ तू , बे-जुबाँ हो जायेगा
जवाब देंहटाएंदेखकर शमसीर यदि तू , सच नहीं कह पायेगा
तल्ख स्वर की गज़ल
बेहतरीन
बहुत बढिया गज़ल है...बधाई .
जवाब देंहटाएंबहुत, बहुत बधाई, इस शानदार रचना के लिए...........
जवाब देंहटाएंयह शेर बेहद पसंद आया.........
रख जुबाँ फिर भी यहाँ तू , बे-जुबाँ हो जायेगा
देखकर शमसीर यदि तू , सच नहीं कह पायेगा