दे पिला अब शाकिया,रंग शाम के भर जाम में
जाने कब वो मांग बैठे,खूने दिल पैगाम में
जिन्दगी का हॆ वजू, जीने के इस अंदाज में
इक शमां बन कर जले, गर दूसरो की राह में
साज कोई लय नहीं हैं ,लय बसा हर साज में
हर नई सुबहो छिपी हैं ,इक गुजरती रात में
हैं मुझे भी देखना, अब इस सितम के दौर में
इस गमें-सागर में मिलता हैं सुकूँ किस छोर में
इम्तिहां की इन्तिहां के, हर हदों के पार में
मैं मिलूंगा फिर से उनसे, बस इसी हालत में
vikram
बहुत बहुत ही भावपुर्ण रचना ..........बेहद ही खुबसूरत है आपके आन्दाजे ब्यान ........अतिसुन्दर
जवाब देंहटाएंbahut hi sundar rachna hai aapki.
जवाब देंहटाएंहिन्दीकुंज