कहाँ नयन मेरे रोते हैं
पलक रोम में लख कुछ बूदें
या टूटे पा मेरे घरौंदे
सोच रहे हों बस इतने से ,नहीं रात भर हम सोते हैं
जो जोडा था वह तोड़ा हैं
मिथ्या सपनों को छोडा हैं
पा करके अति ख़ुशी नयन ये,कभी-कभी नम भी होते हैं
बीते पल के पीछे जाना
हैं मृग-जल से प्यास बुझाना
खोकर जीने में भी साथी,कुछ अनजाने सुख होते हैं
vikram [पुन:प्रकाशित ]
कहाँ नयन मेरे रोते हैं
जवाब देंहटाएंपलक रोम में लख कुछ बूदें
या टूटे पा मेरे घरौंदे
सोच रहे हों बस इतने से ,नहीं रात भर हम सोते हैं
जो जोडा था वह तोड़ा हैं
मिथ्या सपनों को छोडा हैं
पा करके अति ख़ुशी नयन ये,कभी-कभी नम भी होते हैं
बहुत सुन्दर vikram ji , काफी दिनों बाद नजर आये !
खोकर जीने में भी साथी,कुछ अनजाने सुख होते हैं..
जवाब देंहटाएंबहुत सही ...
सुन्दर कविता ...बधाई ..!!
in panktiyon dil ko choo liya....
जवाब देंहटाएंजो जोडा था वह तोड़ा हैं
मिथ्या सपनों को छोडा हैं
baht sunder kavita hai......
"पा करके अति ख़ुशी नयन ये,कभी-कभी नम भी होते हैं"
जवाब देंहटाएंबहुत ही भाव पूर्ण पंक्तियाँ है , आपको बहुत बहुत बधाई !!!
banchne ka poora poraa sukh mila...
जवाब देंहटाएंwah
waah
waaah !
abhinandan!
शानदार सुन्दर रचना!
जवाब देंहटाएं"पा करके अति ख़ुशी नयन ये,कभी-कभी नम भी होते हैं"
जवाब देंहटाएंबहुत ही सुंदर ।
खोकर जीने में भी साथी,कुछ अनजाने सुख होते हैं
जवाब देंहटाएंBahut pate ki baat kahi aapne.
खोकर जीने में भी साथी,कुछ अनजाने सुख होते हैं
जवाब देंहटाएंbahut hi achchhi rachna