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सोमवार, 14 दिसंबर 2009

एक उदासी इन्ही उनीदीं .पलकों के कर नाम .......

अस्वस्था के कारण लेखन कार्य से दूर रहा,आज अपनी एक पुरानी रचना पुन: प्रकाशित कर रहा हूँ ,शायद पसंद आये।
एक उदासी इन्ही उनीदीं .पलकों के कर नाम
मैनें आज बिता डाली फिर,जीवन की इक शाम


रजनी का तम रवि को
तकता
हौले- हौले दर्द सिमटता


एक करूण शाश्वत जल-धरा,है नयनो के नाम


बिन समझे जीवन की भाषा
की थी बड़ी-बड़ी प्रत्यासा

कितनी लघु अंजली हमारी, आई न कुछ काम


है असाध्य जीवन की वीणा
बन साधक पाई यह पीड़ा

सूनी- साझ न जाने कब आ, देगी इसे विराम

vikram

10 टिप्‍पणियां:

  1. पुरानी रचना बहुत पसंद आई........... और अब आप कैसे हैं? उम्मीद है कि ठीक होंगे...... ख्याल रखियेगा अपना.....

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  2. पुन: प्रकाशित रचना अच्छी लगी। आशा है अब आप स्वास्थ होगें...अपना ध्यान रखें।

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  3. एक उदासी इन्ही उनीदीं .पलकों के कर नाम
    मैनें आज बिता डाली फिर,जीवन की इक शाम
    बहुत सुन्दर. कब से नही आये आप मेरे ब्लॉग पर?

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  4. बहुत सुन्दर।
    घुघूती बासूती

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  5. शीघ्र स्वास्थय लाभ हो, शुभकामनाएँ.

    जवाब देंहटाएं
  6. आपके स्वस्थ होने के लिए प्रार्थनाएं ,आपकी रचना अच्छी लगी ,हमारे लिए तो यह नई थी ।

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  7. रजनी का तम रवि को तकता
    हौले- हौले दर्द सिमटता

    एक करूण शाश्वत जल-धरा,है नयनो के नाम..

    आपकी रचना में छाई उदासी कुछ कहती हुई है ............
    बहुत ही अच्छी रचना दर्द भरे शब्दों से निकली ........
    आशा है आपका स्वास्थ अब ठीक होगा ......

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  8. है असाध्य जीवन की वीणा
    बन साधक पाई यह पीड़ा

    सूनी- साझ न जाने कब आ, देगी इसे विराम
    aapko lambe samya se nahi dekha socha abhi likhna kar diya aaj achnak na aati to jaan nahi pati ,ati sundar

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  9. बहुत खूब सुन्दर रचना
    बहुत -२ धन्यवाद

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