मनु दाश जी उडिया के जाने माने कवियों में से एक है। अग्रेजी, उडिया के अति संवेदनशील कवि की हिन्दी रुपान्तरण की प्रथम पुस्तक ''खैर, अगली वार फिर आऊँगी'' पढने का अवसर मिला । प्रस्तुत है मनु दाश जी की एक कविता।
कैंसर वार्ड में दीवाली
कोई मोमबत्ती जलाई नहीं गयी
और ना धमाके बाहर
फटाखों के सुने गए
केवल था मौन लबालब
अधरे गर्भ में गलियारों के
मेरे पिता असहाय इंतजार करते रहे
बायोप्सि रिपोर्ट का
जिसे मुंबई से पहुचना था
एक विवश दंडित से
याचना करते फॆसले की
ऊपरी न्यायालय से
भविष्य जकड़ा है
अनिश्चितता के गर्भ में
जीवन गुजरता है
एक बेडे की तरह
विपरीत जलधाराओं में।
भविष्य जकड़ा है
जवाब देंहटाएंअनिश्चितता के गर्भ में
जीवन गुजरता है
एक बेडे की तरह
विपरीत जलधाराओं में।
मार्मिक अभिव्यक्ति दिल को छू गया दिल का दर्द शुभकामनाये
ओह!! मार्मिक रचना मनु दाश जी की.
जवाब देंहटाएंआप आजकल दिख नहीं रहे हैं. इतना कम कैसे? कोई खास बात तो नहीं?
ऊपरी न्यायालय से
जवाब देंहटाएंभविष्य जकड़ा है
अनिश्चितता के गर्भ में
जीवन गुजरता है
एक बेडे की तरह
विपरीत जलधाराओं में।
Bahut sundar !